सर्दी की सब्जी की खेती
भारतीय कृषि में सर्दियों का मौसम सब्जी उत्पादन (सर्दी की सब्जी की खेती | sardi me sabji ki kheti) के लिए सबसे उपयुक्त और लाभकारी समय माना जाता है। अक्टूबर से मार्च के बीच का यह समय किसानों के लिए स्वर्णिम अवसर लेकर आता है, जब ठंडी जलवायु में उगाई गई सब्जियाँ न केवल बेहतर गुणवत्ता की होती हैं, बल्कि बाजार में इनकी मांग भी अधिक रहती है।

सर्दी की सब्जी की खेती क्यों फायदेमंद है?
सर्दी के मौसम में सब्जी की खेती के कई महत्वपूर्ण लाभ हैं:
आर्थिक लाभ: सर्दियों में सब्जियों की कीमतें सामान्यतः 40-70% अधिक रहती हैं। उदाहरण के लिए, भिंडी जो गर्मी में ₹15-20 प्रति किलो बिकती है, सर्दी में ₹60-70 प्रति किलो तक बिक सकती है।
कीट-रोग प्रबंधन: ठंडे मौसम में कीट-पतंगों की सक्रियता कम हो जाती है, जिससे रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग 30-40% कम करना पड़ता है।
पोषक मूल्य: ठंडी जलवायु में उगाई गई सब्जियों में विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होती है।
सर्दी में उगाई जाने वाली प्रमुख सब्जियाँ और उनकी पैकेज ऑफ प्रैक्टिसेज
1. पालक की खेती (Spinach Farming)
पालक की खेती (Spinach Farming) के लिए जलवायु और बुवाई समय: पालक के लिए 15-25°C तापमान आदर्श है। अक्टूबर से फरवरी तक इसकी बुवाई की जा सकती है, लेकिन पालक की खेती के लिए दिसंबर का महीना सबसे उत्तम है।
पालक की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन:
- पूसा ज्योति: ये किस्म 25-30 दिनों में तैयार हो जाती है, पूसा ज्योति की पत्तियां मोटी होती है |
- ऑल ग्रीन: ये पालक की किस्म को मुख्य रूप से बार-बार कटाई के लिए उपयुक्त माना जाता है |
- पूसा हरित: ये पालक की किस्म मे विटामिन सी की उच्च मात्रा पाई जाती है |
पालक की खेती के लिए भूमि की तैयारी: पालक की खेती के लिए सबसे जरूरी है की मिट्टी का चुनाव और तैयारी बहुत अच्छी होनी चाहिए | इसके लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी में pH 6.0-7.5 उपयुक्त है। खेत में मुख्य रूप से 2-3 गहरी जुताई करें और 5-6 टन प्रति एकड़ सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं।
पालक की खेती के लिए बीज दर और बुवाई विधि: पालक की खेती के लिए प्रति एकड़ 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है और बीजों को 1-1.5 सेमी गहराई पर बोएं तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 15-20 सेमी रखें।
पालक की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन: पालक की खेती के लिए पहली सिंचाई को बुवाई के तुरंत ही बाद करें। इसके बाद सर्दियों में 10-12 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें।
पालक की खेती के लिए उर्वरक प्रबंधन: पालक के लिए मुख्य रूप से नाइट्रोजन 40 किलो प्रति हेक्टेयर,फॉस्फोरस 30 किलो प्रति हेक्टेयर और पोटाश 20 किलो प्रति हेक्टेयर अच्छे से मिलाकर पौधों मे दे | कटाई के बाद 20 किलो यूरिया का फोलियर स्प्रे करें जिससे की नई पत्तियां तेजी से निकलें।
पालक की खेती की कटाई: बुवाई के 25-30 दिन बाद पहली कटाई करें। जड़ों से 5-6 सेमी ऊपर से काटें ताकि दोबारा पत्तियां निकल सकें। एक फसल से मुख्यत 3-4 बार कटाई हो सकती है।
उपज: प्रति एकड़ 60-80 क्विंटल हरी पत्तियां प्राप्त होती हैं।
2. फूलगोभी की खेती (Cauliflower Farming )
फूलगोभी की खेती के लिए मौसम के अनुसार किस्में:
फूलगोभी की अगेती किस्में (बुवाई: जून-जुलाई, रोपाई: जुलाई-अगस्त):
- पूसा दीपाली: 60 दिन में फसल तैयार हो जाती है |
- पूसा अर्ली सिंथेटिक: सफेद और कॉम्पैक्ट फूल मुख्य लक्षण होता है |
फूलगोभी की मध्यम किस्में (बुवाई: सितंबर, रोपाई: अक्टूबर):
- पूसा हाइब्रिड-2: मुख्य रूप से 80-85 दिन में तैयार हो जाती है |
- हिसार-1: पीली पत्ती रोग प्रतिरोधी के लिए उत्तम होता है |
फूलगोभी की पिछेती किस्में (बुवाई: अक्टूबर, रोपाई: नवंबर):
- पूसा स्नोबॉल- मुख्य रूप से 16: 120 दिन में तैयार हो जाती है |
- पंत शुभ्रा: बड़े आकार के फूल मुख्य लक्षण होता है |
फूलगोभी की खेती के लिए नर्सरी प्रबंधन:
फूलगोभी की खेती के लिए बीज उपचार: गोभी के बीजों को गर्म पानी (50°C) में 30 मिनट या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (0.01 ग्राम प्रति लीटर) घोल में 2 घंटे भिगोएं।
फूलगोभी की खेती के लिए नर्सरी बेड: 3 मीटर लंबी, 1 मीटर चौड़ी और 15 सेमी ऊंची क्यारियां बनाएं और गर्मी में नर्सरी मे छप्पर लगाएं।
फूलगोभी की खेती के लिए बीज दर: अगेती किस्मों के लिए 600-750 ग्राम/हेक्टेयर ,मध्यम और पिछेती के लिए 400-500 ग्राम/हेक्टेयर बीज का उपयोग करे |
फूलगोभी की खेती के लिए खेत की तैयारी: 5-6 टन गोबर की खाद, 100 किलो नीम की खली, और 50 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट प्रति एकड़ डालकर अच्छे से मिलाकर खेत की 3-4 बार जुताई करें।
फूलगोभी की खेती की रोपाई: पौधों की दूरी 45×45 सेमी (अगेती) या 60×60 सेमी (पिछेती) रखें। मुख्य रूप से गोभी की शाम के समय रोपाई करें और तुरंत बाद ही सिंचाई करें।
फूलगोभी की खेती के लिए सिंचाई: गोभी की अगेती फसल में मुख्यत 7 दिन के अंतराल पर और पिछेती फसल में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
फूलगोभी की खेती के लिए कीट-रोग प्रबंधन: डायमंड बैक मोथ के लिए बैसिलस थुरिंजेंसिस का 2 मिली/लीटर स्प्रे करें। काला सड़न रोग के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का छिड़काव करें।
फूलगोभी की उपज: अगेती किस्मों से उपज 150-180 क्विंटल/हेक्टेयर और पिछेती से 250-300 क्विंटल/हेक्टेयर उपज प्राप्त होता है |
3. पत्ता गोभी की खेती (Cabbage Farming)
जलवायु आवश्यकता: पत्तागोभी की खेती के लिए 15-20°C तापमान आदर्श है। इससे अधिक तापमान में फूल आ जाते हैं।
पत्तागोभी की खेती के लिए उन्नत किस्में:
- गोल्डन एकर: अगेती, 65-70 दिन की फसल होती है |
- प्राइड ऑफ इंडिया: मध्यम, कॉम्पैक्ट सिर वाली होती है |
- विजेता: उच्च उपज, 2.5-3 किलो वजन वाले सिर की होती है |
पत्तागोभी की खेती के लिए खाद और उर्वरक:
- गोबर की खाद: 20-25 टन/हेक्टेयर
- नाइट्रोजन: 120 किलो/हेक्टेयर (तीन किस्तों में)
- फॉस्फोरस: 60 किलो/हेक्टेयर
- पोटाश: 60 किलो/हेक्टेयर
पत्तागोभी की खेती में विशेष देखभाल: पत्तागोभी के सिर बनते समय नाइट्रोजन की आखिरी खुराक दें। अगर मिट्टी में बोरॉन की कमी होने पर 10 किलो बोरेक्स प्रति हेक्टेयर डालें।
पत्तागोभी की उपज और आय: प्रति एकड़ 100-150 क्विंटल उपज मिलती है। बाजार भाव ₹10-15/किलो होने पर ₹1-1.5 लाख शुद्ध लाभ हो सकता है।
4. मटर की खेती (Green Peas Farming)
मटर की नवीनतम उन्नत किस्में (2026):
सरकार द्वारा अनुमोदित मटर की नई किस्में:
पूर्वांश (IPFD 18-3): 115-120 दिन में पकने वाली, 18-20 टन/हेक्टेयर उपज और 25% से अधिक प्रोटीन वाली होती है |
अर्पण (IPFD 19-3): 100-110 दिन में तैयारऔर फफूंदी रोग प्रतिरोधी होती है |
शिखर (IPFD 19-1): विभिन्न मिट्टी और जलवायु में अनुकूल तथा उपज मुख्य रूप से 15-18 टन/हेक्टेयर तक होता है |
मटर की अन्य प्रमुख किस्में:
पूसा प्रगति: 60-70 दिन में तैयार, चूर्णी फफूंदी प्रतिरोधी तथा 9-10 सेमी लंबी फलियां मुख्य लक्षण होता है |
काशी उदय: 42 क्विंटल/एकड़ उपज मुख्य विशेषता है |
काशी अगेती: 50 दिन में तैयार और 38-40 क्विंटल/एकड़ उपज तक हो जाता है |
मटर की खेती के लिए भूमि की तैयारी: गंगा के मैदानी भागों की गहरी दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है। pH 6.0-7.0 उपयुक्त है। 3-4 बार जुताई करके भुरभुरी मिट्टी तैयार करें।
मटर की बुवाई का सही समय:
- अगेती फसल: सितंबर-अक्टूबर
- मध्यम फसल: अक्टूबर-नवंबर
- पिछेती फसल: नवंबर-दिसंबर
मटर की खेती के लिए बीज दर: 35-40 किलो प्रति हेक्टेयर बीज दर उपयोग किया जाता है |
कतार की दूरी: पंक्ति से पंक्ति 30 सेमी और पौधे से पौधे 5-7 सेमी होती है |
मटर की खेती के लिए उर्वरक प्रबंधन:
- नाइट्रोजन: 20-25 किलो/हेक्टेयर
- फॉस्फोरस: 50-60 किलो/हेक्टेयर
- पोटाश: 40-50 किलो/हेक्टेयर
- राइजोबियम कल्चर से बीज उपचार अवश्य करें।
मटर की खेती के लिए सिंचाई: मटर मे फूल आने और फली बनते समय नियमित सिंचाई महत्वपूर्ण है। 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
मटर की कटाई: जब फलियां पूरी तरह विकसित हो जाएं लेकिन दाने मुलायम हों, तब तुड़ाई करें। पहली तुड़ाई के बाद आप 3-4 बार और तुड़ाई हो सकती है।
5. गाजर की खेती (Carrot Farming)
गाजर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी: गाजर के लिए गहरी बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है। मिट्टी भुरभुरी और पत्थर रहित होनी चाहिए।
गाजर के किस्मों का वर्गीकरण:
गाजर की शीतोष्णवर्गीय किस्में:
- पूसा नैनटीस: 100-110 दिन मे फसल तैयार हो जाती है और 10-12 टन/हेक्टेयर उपज होता है |
- पूसा जमदग्नि: मीठी और लंबी गाजर मुख्य विशेषता होती है |
गाजर की उष्णवर्गीय किस्में:
पूसा वसुधा: उत्तर भारत के लिए उपयुक्त होता है |
पूसा रूधिरा: गहरे लाल रंग की होती है |
पूसा केसर: उच्च कैरोटीन पाई जाती है ]
गाजर की खेती के लिए बुवाई का समय: अगस्त-अक्टूबर (अगेती), अक्टूबर-नवंबर (मुख्य फसल)।
गाजर की खेती के लिए बीज दर: 4-5 किलो प्रति हेक्टेयर।
गाजर की खेती के लिए बुवाई की विधि: गाजर के लिए 45 सेमी की दूरी पर मेड़ बनाकर 2-3 सेमी गहराई पर बीज को बोएं। पौधे से पौधे की दूरी 6-8 सेमी रखें।
गाजर की खेती में विशेष देखभाल:
- बीज उपचार: कैप्टान या थिरम (2.5-3 ग्राम/किलो बीज) का उपयोग करे |
- खाद: 30-40 किलो फॉस्फोरस और 20-25 किलो पोटाश प्रति एकड़ मिलाकर |
- खरपतवार नियंत्रण: पेंडीमेथिलीन (3 लीटर/1000 लीटर पानी) का बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव करें।
गाजर की खेती के लिए सिंचाई: 15-20 दिन के अंतराल पर ड्रिप सिंचाई सर्वोत्तम है। पानी का जमाव नहीं होना चाहिए।
गाजर की उपज: 150-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
6. आलू की खेती (Potato Farming)
आलू की खेती के लिए जलवायु: 15-20°C तापमान आदर्श है। कंद बनते समय 20°C से कम तापमान आवश्यक है।
आलू की उन्नत किस्में:
- कुफरी शीतमान: पाला प्रतिरोधी के लिए उपयुक्त होता है |
- कुफरी सिंदूरी: लाल छिलका और उपज 250-300 क्विंटल/हेक्टेयर तक होता है |
- कुफरी देवा: अधिक स्टार्च वाली होती है |
आलू की खेती के लिए बुवाई का सही समय:
- अगेती: 25 सितंबर – 10 अक्टूबर
- मध्यम: अक्टूबर प्रथम-तृतीय सप्ताह
- पिछेती: अक्टूबर अंत तक
आलू का बीज उपचार: बीज को मैंकोजेब (2 ग्राम/लीटर) या थिरम + बाविस्टिन (1+1 ग्राम/लीटर) घोल में 20-30 मिनट भिगोएं।
आलू की रोपाई: 5-7 सेमी गहराई पर कंद को लगाएं। कतार से कतार 50-60 सेमी और कंद से कंद 20-25 सेमी की दूरी रखें।
आलू की खेती के लिए उर्वरक:
- गोबर की खाद: 20-25 टन/हेक्टेयर
- नाइट्रोजन: 120 किलो/हेक्टेयर
- फॉस्फोरस: 80 किलो/हेक्टेयर
- पोटाश: 100 किलो/हेक्टेयर
आलू की खेती में पाले से बचाव के उपाय:
आलू की खेती करते समय सबसे जरूरी है की आप 28 दिसंबर से 13 जनवरी तक विशेष सावधानी बरतें, क्योंकि इस समय पाला पड़ने का खतरा सबसे अधिक होता है:
- प्लास्टिक से ढकना: रात में आलू की पौधों को प्लास्टिक शीट से ढक दें।
- सड़े हुए मट्ठे का छिड़काव: 4 लीटर सड़ा मट्ठा + 100 लीटर पानी का घोल 2-3 बार स्प्रे करें।
- राख का प्रयोग: 10-12 किलो लकड़ी या गोबर की राख प्रति एकड़ छिड़कें।
- हल्की सिंचाई: शाम को हल्की सिंचाई करने से मिट्टी का तापमान बढ़ता है।
- गंधक का स्प्रे: 1 लीटर गंधक को 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर स्प्रे करें।
आलू की खेती में होने वाला झुलसा रोग (Late Blight) नियंत्रण: मैंकोजेब या रिडोमिल (2.5 ग्राम/लीटर) का 10-12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
आलू की खेती में उपज: 250-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
7. टमाटर की सर्दी में खेती (Tomato Farming in winter)
सर्दी में टमाटर की खेती के फायदे:
- गर्मी की तुलना में 2-3 गुना अधिक उपज होती है |
- ₹30-100 प्रति किलो तक मंडी भाव देखा जाता है |
- सबसे खास बात है की इस समय रोग-कीट कम लगते हैं |
टमाटर की उपयुक्त किस्में:
पूसा रूबी: 60-65 दिन में पक कर तैयार हो जाती है |
पूसा गौरव: वायरस प्रतिरोधी होती है |
पूसा हाइब्रिड-4: अधिक उपज वाली होती है |
टमाटर की खेती के लिए बुवाई का सही समय: टमाटर की नर्सरी को नवंबर-दिसंबर मे लगाई और जनवरी में रोपाई करें।
टमाटर की खेती के लिए खेत की तैयारी: 5 ट्रॉली सड़ी गोबर की खाद, 35 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश, 25 किलो यूरिया, 500 ग्राम फंगीसाइड प्रति एकड़ डालें।
टमाटर की खेती के लिए रोपाई दूरी: 60×45 सेमी या जिगजैग विधि से 3 फीट चौड़े बेड पर दो पंक्तियों में लगाएं।
टमाटर की खेती में सर्दी में विशेष देखभाल:
- फूल झड़ने से बचाव: 1 चम्मच दही + 1 लीटर पानी का घोल को अच्छे से मिलाकर स्प्रे करें।
- फल लगने के लिए: नीम की खली 500 ग्राम + लकड़ी की राख 500 ग्राम + 2 चम्मच दही को पानी में घोलकर पौधों की जड़ों में डालें।
- चूने का स्प्रे: 1 चम्मच चूना + 1 लीटर पानी का घोल महीने में 2 बार स्प्रे करें।
टमाटर की खेती के लिए सिंचाई: टमाटर की सर्दी में कम सिंचाई करें क्योंकि सुबह ओस पड़ने के कारण इसमे नमी पर्याप्त रहती है।
टमाटर की खेती के लिए कीट-रोग प्रबंधन: सिकुड़न रोग के लिए थायोमेथोक्साम का 25% घोल स्प्रे करें और इस प्रक्रिया को 10-12 दिन बाद दोहराएं।
टमाटर की उपज: 400-600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
8. मूली की खेती (Radish Farming)
मूली की खेती में विशेषता: मूली सबसे तेजी से तैयार होने वाली सब्जी है – केवल 40-60 दिन में फसल तैयार।
मूली की उन्नत किस्में:
- पूसा रेशमी: 40-45 दिन मे तैयार हो जाती है और इसकी विशेषता मुख्य रूप से ये सफेद और लंबी होती है |
- पूसा चेतकी: अगेती और 40 दिन में तैयार हो जाती है |
- अर्का निशांत: रोग प्रतिरोधी होती है |
- जैपनीज व्हाइट: 50-60 दिन मे तैयार हो जाती है और साथ ही साथ ये मोटी और मीठी होती है |
मूली की बुवाई का समय: अक्टूबर से दिसंबर तक का समय सबसे सर्वोत्तम होता है।
मूली की खेती के लिए मिट्टी: मुली के लिए आमतौर पर बलुई दोमट मिट्टी जिसका pH 6.0-7.0 होना चाहिए और मिट्टी भुरभुरी और ढीली होनी चाहिए।
मूली की खेती के लिए बीज दर:
- कतार विधि: 1-1.5 किलो/एकड़
- छिटकवां विधि: 4-5 किलो/एकड़
मूली की खेती के लिए बुवाई की विधि: 45 सेमी की दूरी पर कतारें बनाएं। बीज 1-2 सेमी गहराई पर बोएं।
मूली की खेती के लिए उर्वरक:
- फॉस्फोरस: 30-40 किलो/एकड़
- पोटाश: 20-25 किलो/एकड़
- गोबर की खाद: 10-15 टन/हेक्टेयर
मूली की खेती के लिए सिंचाई: हल्की और नियमित सिंचाई करें। ध्यान रहे की पानी का जमाव नहीं होना चाहिए।
मूली की उपज और लाभ: 50-70 क्विंटल/एकड़ तक उपज प्राप्त होता है जिसमे की लागत ₹10,000-15,000 और शुद्ध लाभ ₹30,000 तक हॉट है |
9. भिंडी की सर्दी में खेती (Okra Farming in winter)
भिंडी क्यों लगाएं: सर्दी में भिंडी की कम आवक होने से कीमतें ₹60-70/किलो तक पहुंच जाती हैं। तो ये एक अच्छा अवसर है पैसा कामने का जिससें की किसान भाइयों को एक अच्छा विकल्प मिल सकता है |
भिंडी की ठंड सहनशील किस्में:
- राधिका (एडवांटा): तीनों सीजन में उगाई जा सकती है |
- इंडाम 9821: कम तापमान में भी अच्छी वृद्धि होती है |
- नूनहेम्स सिंघम: ठंड प्रतिरोधी होती है |
- नामधारी NS-862: आकर्षक रंग और आकार दोनों अच्छा होता है |
भिंडी की खेती के लिए बुवाई का समय: नवंबर अंत से 20 दिसंबर तक बुवाई कर सकते है |
भिंडी की लो टनल विधि: सर्दी में पाले से बचाव के लिए प्लास्टिक क्रॉप कवर से ढकें। जिससे की इससे अंदर का तापमान 2-3°C बढ़ जाता है।
भिंडी की प्लास्टिक मल्चिंग: नमी संरक्षण और खरपतवार नियंत्रण के लिए काली प्लास्टिक मल्च बिछाएं।
भिंडी की खेती के लिए रोपाई दूरी: 2.5-3 फीट पौधे से पौधे तथा 3 फीट कतार से कतार की दूरी रखे |
भिंडी की खेती के लिए बेसिक खाद: 2 ट्रॉली गोबर की खाद, 25 किलो DAP और 50 किलो SSP प्रति एकड़ मिलकर दे |
भिंडी की खेती में उत्पादन बढ़ाने का विशेष उपाय: 30 किलो सरसों की खली + 3 किलो गुड़ को 200 लीटर पानी में 4 दिन भिगोकर छोड़ें। इस घोल को सिंचाई के पानी में मिलाकर पौधों को दे जिससे की उत्पादन बढ़ता है |
भिंडी की खेती के लिए सिंचाई: सर्दी में 8-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
भिंडी की तुड़ाई: बुवाई के 45-50 दिन बाद शुरू होती है। हर 2-3 दिन में तुड़ाई करें।
10. बैंगन की सर्दी में खेती (Brinjal Farming in winter)
सर्दी में बैंगन की विशेषताएं: 45-60 दिन में फलन शुरू हो जाता है | इस फसल मे आपको आधे एकड़ से ₹2 लाख तक की कमाई की जा सकती है |
बैगन की उन्नत किस्में:
- पूसा पर्पल लॉन्ग: लंबे और बैंगनी फल होते है |
- पूसा हाइब्रिड-6: अधिक उपज वाली होती है |
- पूसा क्रांति: वायरस प्रतिरोधी होती हिय |
बैगन की खेती के लिए बुवाई का समय:
- नर्सरी: नवंबर महीने में की जाती है |
- रोपाई: जनवरी-फरवरी महीने तक कर लेते है |
बैगन की खेती के लिए रोपाई दूरी: 60 सेमी (दो पौधों के बीच) और 60 सेमी (दो क्यारियों के बीच)।
बैगन की खेती के लिए खाद प्रबंधन: बेड तैयार करते समय 5 ट्रॉली गोबर की खाद, 35 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश, 25 किलो यूरिया, 500 ग्राम फंगीसाइड डालें।
बैगन की खेती का सर्दी में विशेष देखभाल:
- सिकुड़न से बचाव: सर्दी में कम सिंचाई करें।
- तापमान नियंत्रण: खेत के आसपास धुआं करें।
- मैग्नीशियम और जिंक स्प्रे: 19-19-19 घोल या मैग्नीशियम सल्फेट + जिंक सल्फेट का छिड़काव करें।
बैगन की उपज: 300-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
11. धनिया और मेथी की साथ में खेती
धनिया की खेती:
धनिया की किस्में: पूसा डबल, सीएस-6, गुजरात कोरिएंडर-2।
धनिया की बुवाई का समय: अक्टूबर-नवंबर (मुख्य), दिसंबर-जनवरी (अच्छी कीमत के लिए)।
धनिया की खेती के लिए बीज की मात्रा: 10-15 किलो/हेक्टेयर (पत्ती के लिए), 20-25 किलो/हेक्टेयर (बीज के लिए)।
धनिया की खेती के लिए बुवाई विधि: मेड़ विधि से बुवाई करें। बरसात में यह विधि सर्वोत्तम है।
धनिया की खेती में खरपतवार नियंत्रण: भारी केमिकल स्प्रे से बचें, अन्यथा सूखने की समस्या आती है।
मेथी की खेती:
मेथी की खेती की विशेषता: 20 दिन में हार्वेस्टिंग शुरू, 30-40 दिन तक चलती है। ₹6,000 लागत से ₹50,000-70,000 मुनाफा।
मेथी की खेती के लिए बुवाई का उपयुक्त समय: अक्टूबर-नवंबर।
मेथी की खेती के लिए खेत की तैयारी: 100 किलो चूना पाउडर + 50 किलो नीम पाउडर प्रति एकड़ डालकर जुताई करें। यह फफूंद नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है।
मेथी की खेती के लिए बीज उपचार: 2 लीटर गोमूत्र + 250 ग्राम धनिया पाउडर + 250 ग्राम मिर्च पाउडर में बीज उपचारित करें।
मेथी की खेती की विशेषता: न खाद की जरूरत, न कीटनाशक, न खरपतवार की समस्या।
मेथी का उपज: ₹40-80/किलो भाव मिलता है।
मेथी की खेती में सिंचाई: फव्वारे से हल्की सिंचाई करें।
सर्दी की सब्जियों में समेकित कीट-रोग प्रबंधन
प्रमुख कीट और उनका नियंत्रण
1. माहू (Aphids):
- लक्षण: पत्तियों की निचली सतह पर छोटे हरे/काले कीट, पत्तियां मुड़ जाती हैं।
- नियंत्रण: नीम तेल (5 मिली/लीटर) या इमिडाक्लोप्रिड (0.5 मिली/लीटर) का छिड़काव।
2. डायमंड बैक मोथ (गोभी वर्गीय सब्जियों में):
- जैविक नियंत्रण: बैसिलस थुरिंजेंसिस (2 ग्राम/लीटर)।
- रासायनिक: स्पाइनोसैड (0.5 मिली/लीटर)।
3. फल छेदक (Fruit Borer):
- लक्षण: फलों में छेद, अंदर सड़न।
- नियंत्रण: फेरोमोन ट्रैप लगाएं (5-6 प्रति एकड़)। साइपरमेथ्रिन (2 मिली/लीटर) का छिड़काव।
4. सफेद मक्खी (White Fly):
- नियंत्रण: पीले स्टिकी ट्रैप लगाएं। थायोमेथोक्साम का छिड़काव।
प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन
1. आर्द्र गलन (Damping Off):
- लक्षण: नर्सरी में पौधे जमीन की सतह से गिर जाते हैं।
- रोकथाम: ट्राइकोडर्मा से बीज उपचार (10 ग्राम/किलो बीज)।
- नियंत्रण: मैटालैक्सिल + मैंकोजेब का छिड़काव।
2. पाउडरी मिल्ड्यू (चूर्णी फफूंदी):
- लक्षण: पत्तियों पर सफेद पाउडर जैसी परत।
- नियंत्रण: गंधक (2.5 ग्राम/लीटर) या कार्बेंडाजिम (1 ग्राम/लीटर) का छिड़काव।
3. डाउनी मिल्ड्यू (मृदु रोमिल आसिता):
- लक्षण: पत्तियों पर पीले धब्बे, नीचे फफूंदी।
- नियंत्रण: मैंकोजेब (2.5 ग्राम/लीटर) या मेटालैक्सिल का छिड़काव।
4. जीवाणु उकठा (Bacterial Wilt):
- लक्षण: पौधा अचानक मुरझा जाता है।
- रोकथाम: फसल चक्र अपनाएं। बीज स्ट्रेप्टोसाइक्लिन से उपचारित करें।
- नियंत्रण: रोगी पौधे उखाड़ कर जला दें। स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (0.5 ग्राम/लीटर) का ड्रेंचिंग करें।
5. झुलसा रोग (Late Blight – आलू, टमाटर में):
- लक्षण: पत्तियों पर गहरे भूरे धब्बे।
- नियंत्रण: मैंकोजेब या रिडोमिल (2.5 ग्राम/लीटर) का 10-12 दिन के अंतराल पर छिड़काव।
समेकित कीट-रोग प्रबंधन (IPM) के सिद्धांत
- ग्रीष्मकालीन जुताई: गर्मी में खेत की गहरी जुताई करने से कीट-रोग जीवों का जीवन चक्र टूट जाता है।
- फसल चक्र: 2-3 वर्ष का फसल चक्र अपनाएं। एक ही परिवार की सब्जियाँ बार-बार न उगाएं।
- प्रतिरोधी किस्में: रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
- स्वच्छता: खेत में पड़े अवशेषों को एकत्र कर नष्ट कर दें।
- जल निकास: उचित जल निकास की व्यवस्था करें।
- जैविक नियंत्रण: ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास, बैसिलस थुरिंजेंसिस जैसे जैविक एजेंटों का प्रयोग करें।
- निगरानी: नियमित रूप से फसल की निगरानी करें। कीट/रोग दिखते ही तुरंत नियंत्रण करें।
मिट्टी की तैयारी और उर्वरक प्रबंधन
सर्दी में मिट्टी की देखभाल
सर्दी में मिट्टी की चुनौतियां:
- माइक्रोबियल गतिविधि धीमी: ठंड में मिट्टी के सूक्ष्मजीवों की क्रिया कम हो जाती है, जिससे पोषक तत्वों का चक्रण धीमा होता है।
- मिट्टी का संकुचन: गीली मिट्टी जमने से कठोर हो जाती है, जड़ों की वृद्धि प्रभावित होती है।
- नमी की कमी: सर्दी में मिट्टी में नमी की कमी हो सकती है।
समाधान:
1. कंपोस्ट का प्रयोग: सर्दी शुरू होने से पहले 5-8 टन अच्छी तरह सड़ी कंपोस्ट प्रति एकड़ डालें। यह माइक्रोबियल गतिविधि को बढ़ाएगी।
2. गहरी जुताई: मिट्टी के संकुचन को रोकने के लिए खरीफ फसल की कटाई के बाद गहरी जुताई करें।
3. मल्चिंग: सूखी घास, पुआल या प्लास्टिक मल्च बिछाने से:
- मिट्टी का तापमान 2-3°C बढ़ता है
- नमी संरक्षण होता है
- खरपतवार नियंत्रण होता है
4. कवर क्रॉप: खाली खेत में बरसीम, मेथी जैसी हरी खाद की फसलें उगाएं।
संतुलित उर्वरक प्रबंधन
मिट्टी परीक्षण: हर 2-3 साल में मिट्टी का परीक्षण कराएं। pH 6.0-7.0 बनाए रखें।
जैविक खाद का महत्व:
- गोबर की खाद: 10-15 टन/हेक्टेयर
- वर्मीकंपोस्ट: 2-3 टन/हेक्टेयर
- नीम की खली: 200-300 किलो/हेक्टेयर
रासायनिक उर्वरक का संतुलित उपयोग:
सामान्य सिफारिश (प्रति हेक्टेयर):
- नाइट्रोजन: 100-150 किलो (3-4 किस्तों में)
- फॉस्फोरस: 60-80 किलो (बेसल)
- पोटाश: 60-80 किलो (बेसल)
सूक्ष्म पोषक तत्व:
- जिंक सल्फेट: 25 किलो/हेक्टेयर (3-4 साल में एक बार)
- बोरेक्स: 10 किलो/हेक्टेयर (गोभी वर्गीय सब्जियों में)
- मैग्नीशियम सल्फेट: फोलियर स्प्रे के रूप में करे |
फर्टिगेशन: ड्रिप सिंचाई के साथ घुलनशील उर्वरकों का प्रयोग करें। यह विधि:
- 30-40% उर्वरक बचाती है |
- समान वितरण सुनिश्चित करती है |
- पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाती है |
सिंचाई प्रबंधन
सर्दी में सिंचाई की विशेषताएं
सिंचाई का समय: सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे के बीच सिंचाई करें। शाम को सिंचाई करने से पाले का खतरा बढ़ सकता है।
सिंचाई अंतराल:
- पत्तेदार सब्जियां: 8-10 दिन
- जड़ वाली सब्जियां: 10-12 दिन
- फलदार सब्जियां: 7-10 दिन
विभिन्न सिंचाई विधियां:
1. ड्रिप सिंचाई:
- लाभ: 40-50% पानी की बचत, उर्वरक के साथ दिया जा सकता है
- उपयुक्त फसलें: टमाटर, शिमला मिर्च, बैंगन, गोभी
2. स्प्रिंकलर/रेन गन:
- लाभ: समान वितरण, सूक्ष्म बूंदों से फूल-फल सुरक्षित रहते हैं
- उपयुक्त फसलें: पालक, धनिया, मेथी, मटर
- सावधानी: फूल आने के समय (सुबह 6-8 और शाम 5-6) स्प्रिंकलर न चलाएं
3. फरो (नाली) सिंचाई:
- मेड़ों के बीच नालियों में पानी दें
- उपयुक्त: आलू, गाजर, मूली
पाले से बचाव के लिए सिंचाई
जब रात में तापमान 4°C से कम होने की संभावना हो, तो शाम को हल्की सिंचाई करें। मिट्टी में नमी पाले के प्रभाव को कम करती है।
बाजार और मांग के अनुसार फसल योजना
2025 में सब्जियों की बाजार मांग
त्योहारी सीजन (नवंबर-जनवरी):
- गोभी, मटर, गाजर की मांग 50-70% बढ़ जाती है
- कीमतें 30-50% अधिक रहती हैं
शादी का सीजन (दिसंबर-फरवरी):
- पालक, मेथी, धनिया की मांग बढ़ती है
- सजावटी सब्जियों (रंगीन गोभी, ब्रोकोली) की मांग
बाजार रणनीति:
1. अगेती खेती: जल्दी बोकर बाजार में पहले पहुंचें। कीमतें 2-3 गुना अधिक मिलती हैं।
2. विविधता: एक ही सब्जी की 2-3 किस्में लगाएं (अगेती, मध्यम, पिछेती) ताकि लंबे समय तक आपूर्ति बनी रहे।
3. अनुबंध खेती: बड़े खरीदारों (होटल, रेस्तरां, सुपरमार्केट) से पहले से अनुबंध करें।
4. मूल्य वर्धन: धुली-साफ, ग्रेडेड सब्जियां बेचने से 10-15% अधिक दाम मिलते हैं।
5. सीधी बिक्री: मंडी के बजाय स्थानीय बाजार में सीधे बेचने से मुनाफा 20-30% बढ़ सकता है।
आर्थिक विश्लेषण और लाभप्रदता
विभिन्न सब्जियों की लागत-लाभ विश्लेषण (प्रति एकड़)
पालक:
- लागत: ₹8,000-10,000
- उपज: 60-80 क्विंटल
- सकल आय: ₹60,000-80,000 (₹10/किलो)
- शुद्ध लाभ: ₹50,000-70,000
फूलगोभी:
- लागत: ₹25,000-30,000
- उपज: 100-150 क्विंटल
- सकल आय: ₹1,00,000-1,50,000 (₹10/किलो)
- शुद्ध लाभ: ₹70,000-1,20,000
मटर:
- लागत: ₹20,000-25,000
- उपज: 70-90 क्विंटल
- सकल आय: ₹1,40,000-1,80,000 (₹20/किलो)
- शुद्ध लाभ: ₹1,15,000-1,55,000
मूली:
- लागत: ₹10,000-15,000
- उपज: 50-70 क्विंटल
- सकल आय: ₹40,000-70,000 (₹8/किलो)
- शुद्ध लाभ: ₹25,000-55,000
भिंडी (सर्दी):
- लागत: ₹35,000-40,000
- उपज: 50-70 क्विंटल
- सकल आय: ₹3,00,000-4,20,000 (₹60/किलो)
- शुद्ध लाभ: ₹2,60,000-3,80,000
बैंगन:
- लागत: ₹30,000-35,000 (प्रति 0.5 एकड़)
- उपज: 120-150 क्विंटल
- सकल आय: ₹1,80,000-2,25,000 (₹15/किलो)
- शुद्ध लाभ: ₹1,45,000-1,90,000 (0.5 एकड़)
मेथी:
- लागत: ₹6,000
- उपज: 70-90 क्विंटल
- सकल आय: ₹56,000-72,000 (₹8/किलो)
- शुद्ध लाभ: ₹50,000-66,000
लाभ बढ़ाने की रणनीतियां
1. मिश्रित खेती: एक ही खेत में 2-3 सब्जियां साथ में उगाएं। उदाहरण: गोभी के साथ पालक, आलू के साथ धनिया।
2. बहु-स्तरीय खेती: ऊंची और नीची फसलें साथ में। उदाहरण: टमाटर के साथ मूली।
3. जैविक खेती: जैविक सब्जियों के 30-40% अधिक दाम मिलते हैं।
4. संरक्षित खेती: पॉली हाउस/शेड नेट में खेती से उपज 2-3 गुना बढ़ती है और मौसम का प्रभाव कम होता है।
सपना की व्यावहारिक सलाह: क्षेत्रीय अनुभव
मेरे जिला कृषि प्रबंधक के अनुभव के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण सुझाव:
1. छोटे किसानों के लिए: यदि आपके पास 1 एकड़ से कम जमीन है, तो कम अवधि और अधिक मूल्य वाली फसलें लगाएं – पालक, मेथी, धनिया, मूली। 45-60 दिन में फसल तैयार होने से जल्दी और अच्छा पैसा मिलेगा।
2. मध्यम किसानों के लिए: 2-5 एकड़ में विविधता बनाए रखें। 50% भूमि में मुख्य सब्जियां (गोभी, आलू, मटर) और 50% में त्वरित फसलें लगाएं।
3. बड़े किसानों के लिए: अनुबंध खेती पर ध्यान दें। एक सब्जी के बड़े क्षेत्र में उगाकर थोक बाजार में सीधे बेचें।
4. पानी की कमी वाले क्षेत्रों में: ड्रिप सिंचाई अवश्य लगाएं। शुरुआती निवेश अधिक होता है, लेकिन 2-3 साल में वापस मिल जाता है।
5. कीट-रोग प्रबंधन: हमेशा पहले जैविक विधियों का प्रयास करें। रासायनिक दवाओं का उपयोग अंतिम विकल्प के रूप में करें। यह न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि उत्पाद की गुणवत्ता भी बढ़ाता है।
6. मिट्टी परीक्षण: यह ₹200-500 में हो जाता है लेकिन हजारों रुपये की खाद बचा सकता है। नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र में मुफ्त में भी करा सकते हैं।
7. मौसम पूर्वानुमान: मोबाइल ऐप या स्थानीय कृषि विभाग से नियमित मौसम की जानकारी लें। पाला, ओलावृष्टि की चेतावनी मिलने पर तुरंत बचाव के उपाय करें।
सरकारी योजनाएं और सहायता
1. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई पर 80-90% तक सब्सिडी।
2. राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM): सब्जी खेती के लिए वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और तकनीकी मार्गदर्शन।
3. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: मुफ्त मिट्टी परीक्षण और उर्वरक सिफारिश।
4. पर्मपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): जैविक खेती के लिए ₹50,000 प्रति हेक्टेयर तक सहायता।
5. कृषि बीमा योजना (PMFBY): प्राकृतिक आपदाओं से फसल की सुरक्षा। कम प्रीमियम पर बीमा।
आवेदन: नजदीकी कृषि विभाग कार्यालय या ऑनलाइन पोर्टल (www.agricoop.nic.in) पर जाएं।
निष्कर्ष और कार्य योजना
सर्दी की सब्जी की खेती भारतीय किसानों के लिए सुनहरा अवसर है। सही योजना, वैज्ञानिक तकनीक और बाजार की समझ से यह अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकती है।
तत्काल कार्य योजना (नवंबर-दिसंबर 2025):
सप्ताह 1-2:
- मिट्टी परीक्षण कराएं
- फसल योजना बनाएं (कौन सी सब्जी, कितने क्षेत्र में)
- बीज और खाद की व्यवस्था करें
सप्ताह 3-4:
- खेत की तैयारी (जुताई, खाद)
- नर्सरी तैयार करें (गोभी, टमाटर, बैंगन के लिए)
- सीधी बुवाई वाली फसलें लगाएं (पालक, मूली, धनिया)
दिसंबर:
- रोपाई करें (गोभी, टमाटर)
- अगेती फसलों की देखभाल
- सिंचाई और निराई-गुड़ाई
जनवरी:
- पाले से बचाव के उपाय
- कीट-रोग की निगरानी
- पहली फसल की कटाई शुरू (पालक, मूली)
फरवरी-मार्च:
- मुख्य फसलों की कटाई
- बाजार में बिक्री
- अगली फसल की योजना
याद रखें:
- गुणवत्ता से कभी समझौता न करें
- नियमित निगरानी करें
- नवीनतम तकनीकों को अपनाएं
- जैविक खेती को बढ़ावा दें
- बाजार की मांग को समझें
सर्दी की सब्जी की खेती केवल पैसा कमाने का जरिया नहीं है, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और पोषण में महत्वपूर्ण योगदान है। वैज्ञानिक विधि से खेती करके हम न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि पर्यावरण की रक्षा भी कर सकते हैं।
मेरा संदेश: खेती केवल परंपरा नहीं, विज्ञान भी है। BHU में अपनी पढ़ाई और फील्ड में काम करने के अनुभव से मैंने सीखा है कि सही ज्ञान और लगन से छोटे किसान भी बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इस लेख में दी गई जानकारी को व्यावहारिक रूप से अपनाएं और सर्दी के मौसम को अपनी समृद्धि का मौसम बनाएं।