नाडेप कम्पोस्ट ( Nadep Compost ): 100% शक्तिशाली और वरदानी खाद | Nadep Compost : 100% Powerful and Beneficial Compost

Nadep Compost
Nadep Compost

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नाडेप कम्पोस्ट का परिचय  ( Introduction of Nadep Compost )

नाडेप कम्पोस्ट ( Nadep Compost ) या नाडेप ( Nadep ) जिसका फुलफार्म ( Nadep Full Form ) “नारायण देवराव पण्ढ़री पांडे” ( Narayan Deotao Pandharipande ) है, यह जैविक खेती के लिए बहुत ही उपयोगी खाद है। नाडेप कम्पोस्ट बनाने की विधि को ग्राम पुसर, जिला यवतमाल, महाराष्ट्र, भारत के रहने वाले नारायण देवराव पण्ढ़री पांडे जी द्वारा विकसित की गई है।

जैसा की हम सभी जानते है, पूरे विश्व की जनसँख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है तथा बढती हुए जनसंख्या के साथ अजैविक खाद या रासायनिक खाद वाली भोजन सामग्री का बाजार भी बढ़ता जा रहा है जो अपने साथ बहुत सारी बीमारियों को भी बढ़ावा दे रहा है। उसी बीच एक मंद और धीमी गति से प्रगति करती हुई जैविक खेती ( Jaivik Kheti ) को भी लोग अपना रहे है, जो न केवल मानवीय स्वास्थ्य के लिए बल्की पर्यावरण एवं जलवायु के लिहाज से भी अति आवश्यक है।

बीसवी शताब्दी के अंत में कंपोस्टिंग का फिर से आगमन हुआ, जिसमें की हाल के वर्षों में जैविक खेती में लोगो की रुचि धीरे धीरे बढती जा रही है। आज की जैविक खेती के आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों ने दुनिया का नजरिया बदलना शुरू कर दिया है जो की समाज के साथ-साथ उत्पादन और पर्यावरण संबंधी चिंताओ को धीरे-धीरे दूर करने का एक सीधा और सरल उपायबनता जा रहा है।

आज इस लेख के माध्यम से हम आपको जैविक खेती में उपयोग होने वाले नाडेप कम्पोस्ट या नाडेप बनाने की विधि ( Nadep Compost Method in Hindi ) व नाडेप कम्पोस्ट क्या है ( What is Nadep Compost ) तथा नाडेप की पूरी जानकरी सरल भाषा में देने का प्रयास किये है। इस लेख को पढने से पहले आपको ये जानना बहुत जरुरी है, कि जैविक खेती क्या है। तो इसके लिए आपको हमारे जैविक खेती के आर्टिकल या लेख को पढ़ना होगा।

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नाडेप कम्पोस्ट क्या है या नाडेप को समझाइए ( What is Nadep Compost )

नाडेप कम्पोस्ट ( Nadep Compost ) को जानने से पहले नाडेप क्या होता है, नाडेप कैसे बनता है तथा इसको बनाने में क्या- क्या सामग्री की आवश्यकता होती है, इसकी चर्चा करेगे।

नाडेप की संरचना

Nadep Compost Diagram
Nadep Compost Diagram

नाडेप मुख्य रूप से ईटो का एक डब्बा नुमा ढ़ाचा होता है। जिसमे ढ़ाचे ( Nadep Compost Pit Size ) की लम्बाई 3.5 मीटर, चौडाई 2 मीटर तथा उचाई 1 मीटर होता है। नाडेप को लम्बे समय तक प्रयोग में लेन के लिए ढाचे की जुडाई पक्के गोबर से किया जाता है। नाडेप की ढ़ाचे की जुड़ाई करते समय इसके दीवारों में कुछ छेद भी छोड़े जाते है, जिससे की समय- समय पर पानी का छिडकाव किया जा सके और साथ ही साथ इसमें वायु का संचार भी अच्छी तरह से हो सके।

नाडेप बनाने की विधि

नाडेप कम्पोस्ट जिस ढ़ाचे ( Compost Pits ) में बनाते है उस कम्पोस्ट पिट का निर्माण करने के लिए हमें कुछ विशेष बातो को ध्यान रखना होता है। जैसे- भूमि को समतल बनाना और उसे इस तरह से बनाना कि वहाँ जल भराव की समस्या ना हो पाये। ढ़ाचा या गढ्ढे ( टांका ) को बनाने के लिए नाडेप का माप ( Nadep Compost Pit Size )- लम्बाई 10 फीट चौड़ाई 6 फीट और गहराई 3 फीट तथा टांका या ढ़ाचे की दीवार की चौडाई 9 इंच होनी चाहिए।

नाडेप बनाने की विधि में सबसे महत्वपूर्ण बात ढ़ाचा या गढ्ढे ( टांका ) को बनाते समय पहले और आखरी तीन पक्तियों में कोई छेद नहीं होता है। ढ़ाचे में चौथी, छठी, आठवी, दशवी, पंक्ति में एक फुट की दूरी पर 5 इंच की चौड़ाई का छेद बनाये जाते है। अंत में अंदर की जमीन पर ईट बिछाकर दीवार के अंदर व बहार के हिस्सों को गोबर से लीप देते है।

नाडेप कम्पोस्ट बनाने की विधि ( Nadep Composting Method )

नाडेप कम्पोस्ट बनाने की विधि ( Nadep Composting Method ) में कम गोबर का उपयोग करके अधिक मात्रा में अच्छी खाद तैयार करते है। टांके या गढ्ढे नुमा ढ़ाचे ( Nadep Pit ) को भरने के लिये मुख्य रूप से गोबर, कचरा ( बायोमास ) और बारीक छनी हुई मिटटी का उपयोग करते हैं। नाडेप कम्पोस्ट ( Nadep Compost ) को बनने में 90 से 120 दिन का समय लगता है। नाडेप द्वारा तैयार की गई खाद में प्रमुख रूप से ( NPK ratio ) 0.5 से 1.5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.5 से 0.9 प्रतिशत फास्फोरस एवं 1.2 से 1.4 प्रतिशत पोटाश पाया जाता है। इसके अलावा अन्य कई सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते हैं।

टांके या गढ्ढे को भरने के लिये निन्म सामग्री की आवश्यकता होगीः-

  • खेतों पर उपलब्ध कचरा ( सूखे पत्तो, छिलके, डंठल, टहनिया, जड़े आदि )- 1400 से 1600 किलो
  • गाय का गोबर या गोबर गैस टैंक से निकाली हुई स्लरी- 100 से 120 किलो ( 8 से 10 टोकरी )
  • खेत या नाले की मिट्टी जो सूखी और छनी हुई हो 600 से 800 किलो (120 टोकरी) लेते है और खासकर गो-मूत्र से सनी मिट्टी विशेषरूप से लाभदायी होती है।
  • आम तौर पर पानी की लागत 1500 से 2000 लीटर ( लगभग 8-10 ड्रम ) होती है परन्तु मौसम को ध्यान में रखते हुए इसकी मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है।

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नाडेप टांका भरने की विधि

नाडेप टांका (ढ़ाचा) या गढ्ढे ( Nadep Pit ) को भरने के लिए सभी सामग्री को एकत्र कर ले और निचे बताये गए विधि को ध्यान में रखते हुये एक से दो दिन में परत दर परत कर गढ्ढे को भर ले और नाडेप टांका (ढ़ाचा) या गढ्ढे ( Nadep Pit ) के भरने के बाद इसे अच्छे से ढक दे या सील कर दे।

प्रथम भराई

नाडेप टांका (ढ़ाचा) या गढ्ढे ( Nadep Pit ) को भरने से पहले उसकी दीवारों एवं फर्श को 40-50 किलोग्राम गोबर व 100-150 लीटर पानी के घोल को अच्छी तरह से मिला कर ढ़ाचे की अच्छी तरह पोताई कर दे।

पहली परत

पहली परत में हम 6 इंच या आधे फीट की उचाई तक जैविक कचरा जैसे- पत्तिायाँ , खर-पतवार, डंठल, टहनियां आदि गढ्ढे में भर देते है। इसको भरने के लिए 10x6x0.5 या 30 घनफीट में 100-115 किलो तक का जैविक कचरा लग जाता है। इसको सुरक्षित करने व दीमक से बचने के लिए पहली परत में ही 3-4 % नीम या पलाश की ताजा पतियों को मिला दिया जाता है।

दूसरी परत

दुसरे परत में 125 से 150 लीटर पानी में 4 किलोग्राम गोबर घोलकर अच्छी तरह से मिलाकर धीरे-धीरे डालते जाए और ध्यान रहे की इस गोबर और पानी के घोल को इस प्रकार से डाले जिससे की पहली परत का जैविक कचरा पूरी तरह से नम हो जाये या भींग जाये। पानी की मात्रा मौसम के अनुसार कम ज्यादा हो सकती है। अगर आप दूसरी परत में स्लरी का उपयोग कर रहे है तो 10 लीटर स्लरी को 125-150 लीटर ही पानी में अच्छे से घोल कर गोबर और पानी के घोल के तरह ही उपयोग करे।

तीसरी परत

तीसरी परत भरने के लिए पहले 50-60 किलो मिट्टी को अच्छे से साफ कर के छनी से छान कर दूसरी परत के ऊपर एक समान रूप से फैला कर इसपे थोडा पानी का छिडकाव कर दे। नाडेप टांके या गढ्ढे ( Nadep Pit ) के तीसरी परत को भरने के बाद फिर से पहली, दूसरी और तीसरी परत के भरने के प्रक्रिया को दोहराए और लगभग 11-12 परतो में नाडेप टांका या गढ्ढा ( Nadep Pit ) भर जेयेगा। नाडेप टांके को इस प्रकार भरना है जिससे इसकी उपरी छोर या मुहं से लगभग 1.5 फीट ऊपर तक गुम्मद या झोपड़ीनुमा आकार बन जाये।

ढ़ाचे या नाडेप टांके या गढ्ढे ( Nadep Pit ) को भरने के बाद इसके ऊपर साफ व छनी हुए मिट्टी ( 400-500 किलो ) का लगभग 3 इंच मोटा एक परत फैला दे और फिर गोबर के घोल से इसकी लिपाई कर टांके को बंद या सील कर दे। ऐसा देखा गया है की नाडेप टांके या गढ्ढे में सील करने के बाद जब ये सूखने लगते है तो इसमें दरार पड़ने लगता है। अगर ऐसा हो तो इसको दुबारा गोबर या मिट्टी का घोल बनाकर ढक दे या लीप दे।

द्वितीय भराई

पहली भराई के बाद दूसरी भराई हम 15-20 दिन बाद करते है। इतने दिन बाद गढ्ढे में भरे जैविक कचरा तथा अन्य सामग्री सिकुड़ कर 8 से 9 इंच तक नीचे धस जाते है। दूसरी भराई में भी हम पहले भराई की तरह ही जैविक कचरा, गोबर और मिट्टी का इस्तेमाल करते है और पहले के भाति से ढ़ाचे या नाडेप टांके या गढ्ढे ( Nadep Pit ) को उनके मुँह से 1.5 फीट उपर तक भर देते है। उसके बाद पूर्व के भाति ही नाडेप को ऊपर से गोबर के घोल से लीप या बंद कर देते है।

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नाडेप कम्पोस्ट बनाते समय बरती जाने वाली सावधानियां

 नाडेप भरने के बाद ध्यान देने वाली कुछ महत्वपूर्ण बाते –

  • नाडेप को भरते समय ध्यान रहे सामग्री में प्लास्टिक, कांच, धातु, पत्थर, प्याज तथा लहसुन का छिलका आदि नहीं रहने चाहिए।
  • नाडेप को पकने के लिए 3-4 महीना ( 90-120 दिन ) लगते है। इसके लिए नमी बनाए रखने के लिए इसमें समयनुसार पानी का छिडकाव करते रहना चाहिए।
  • नाडेप जब सूखने लगता है तो इसमें दरार पड़ने लगती है, उसके लिए गोबर व मिट्टी की घोल बना कर लिपाई करे।
  • नाडेप के ऊपर खर पतवार या घास को जमने न दे और साथ ही साथ तेज धुप हो तो नाडेप के बने ढ़ाचे को घास-फूस से अच्छी तरह से ढक दे।
  • समयनुसार खाद का पलटवार करते रहना चाहिए, जिससे की खाद की सभी परत अच्छे से पक सके।
  • नाडेप के अंदर के प्रदार्थ का तापमान और नमी को समय समय पर एक छड़ी की सहायता से चेक करते रहना चाहिए। एक सप्ताह में छड़ी को गढ्ढे के अंदर डालके देखे अगर छड़ी गर्म और गंध अच्छी है तो खाद के लिए तापमान सामान्य है और सही से अपघटन शुरू हो गया है।
  • यदि छड़ी ठंडी लगती है और थोड़ी गंध भी आती है, तो अंदर का तापमान बहुत कम है। इसके लिए हमे पानी और/या गौ-मूत्र समय पर डाल देना चाहिए।
  • पके खाद को गढ्ढे से निकाल कर खुली जगह में नहीं रखना चाहिए।
  • जब भी खाद का प्रयोग करे तो उसे छान ले उसके बाद ही उपयोग करे।

नाडेप के प्रकार ( Types of Nadep )

पका नाडेप ( Pakka Nadep )

ये नाडेप को ईटों के द्वारा बनाया जाता है। नाडेप के टांके ( ढ़ाचा ) का आकार ( Nadep Compost Pit Size ) मुख्यतः 10 फीट लंबा, 6 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊंचा बनाया जाता है। ईटों को जोडते समय टांके को तीसरे, छठवे एवं नवें रद्दे में मधुमक्खी के छत्ते के समान 6”-7” के ब्लाक/छेद छोड़ दिये जाते है। जिससे की टांके के अन्दर वायु प्रवाह होती रहे। पका नाडेप के एक वर्ष में मात्र एक ही टांके से तीन बार खाद तैयार किया जा सकता है।

कच्चा नाडेप या भू नाडेप

भू-नाडेप को जमीन के ऊपर एक निश्चित आकर (जिसकी लम्बाई 12फीट, चौड़ाई 5फीट और उचाई 3फीट अथवा लम्बाई 10फीट, चौड़ाई 6फीट और उचाई 3फीट) का ढ़ाचा ( Nadep Compost Pit Size ) बना कर तैयार की जाती है। इसको भी नाडेप टांके ( ढ़ाचा ) के अनुसार ही भरते है।

भू नाडेप की संरचना सामग्री भरने का तरीका

भू नाडेप में 5 से 6 फीट तक कचरा इकठ्ठा किया जाता है उसके बाद ढ़ाचे को चारों तरह से गीली मिट्टी व गोबर से लिपाई कर नाडेप को बंदकर कर दिया जाता है। हवा तथा पानी के लिए इसमें दुसरे या तीसरे दिन नाडेप में गोलाकार अथवा आयताकार टीन के डिब्बे से नाडेप की लंबाई व चौड़ाई में 9-9 इंच के अंतर पर 7-8 इंच के गहरे छिद्र बनाते है। नाडेप की खाद 3 से 4 माह के भीतर भली-भांति पक जाती है। खाद पका है या नहीं इसको पहचानने का बेहद सरल तरीका यह है कि पकी खाद भुरभुरी र्दुगंध रहित भुरे रंग की होती है।

टटिया नाडेप

टटिया नाडेप भी भू नाडेप की तरह ही बनते है, लेकिन इसमें आयताकार ढेर को चारो तरफ से बांस, बेशरम की लकड़ी एवं तुअर के डंठल आदि से टटिया या ढ़ाचा बनाकर चारों ओर से बंद कर दिया जाता हैं।

नाडेप फास्फो कम्पोस्ट

नाडेप फास्फो कम्पोस्ट भी जैविक खाद तैयार करने की विधि में से एक है। नाडेप फास्फो कम्पोस्ट को बनाने के लिए हम जो सामग्री जैसे गोबर, कचरा आदि इस्तेमाल करते है उसके साथ खास तौर पर राक फास्फेट का उपयोग करते है। इससे कम्पोट में फास्फेट की मात्रा बढ़ जाती है।

नाडेप फास्फो कम्पोस्ट को बनाने के लिए प्रत्येक परत के उपर लगभग 12 से 15 किलो रांक फास्फेट की एक परत बिछाई जाती है। ढ़ाचे की भराई पक्के नाडेप टांके ( Nadep Compost Pit ) के अनुसार ही की जाती है और अंत में गोबर तथा मिट्टी से लीप कर बंद कर दिया जाता है। इसमें एक टांके में कम से कम 150 किलो राक फसस्फेट की आवश्यकता होती है।

पिट कम्पोस्ट ( इंदौर विधि )

पिट कम्पोस्ट विधि को हम इंदौर विधि से भी जानते है। पिट कम्पोस्ट ( इंदौर विधि ) को सबसे पहले अलबर्ट हावर्ड और यशवंत बाड ने सन् 1931 में इन्दौर इंस्टिट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री, इंदौर में जैविक खादों पर रिसर्च करते हुये विकसित किया था। इसीलिए पिट कम्पोस्ट को इंदौर सहर में विकसित करने के कारण इसे “इंदौर विधि” कहा गया।

पिट कम्पोस्ट ( इंदौर विधि ) में नाडेप कम्पोस्ट का आकर ( Nadep Compost Pit Size ) कम से कम 9 फीट व अधिक से अधिक 21 फीट लम्बा, 5 फीट चौड़ा एवं 3 फीट गहरा रख सकते है। बने हुए नाडेप टांके या गढ्ढे ( Nadep Pit ) को उसके लम्बाई के माप के अनुसार 3 से 6 सामान भागो में बाट दिया जाता है। इस प्रकार बने प्रत्येक गढ्ढे का आकार 3x5x3 फीट से कम का नहीं होना चाहिये। पिट कम्पोस्ट ( इंदौर विधि ) के गढ्ढे के प्रत्येक हिस्से को अलग-अलग भरे और अंतिम हिस्से को खाद पलटने के लिए खाली छोड़ दे।

खाद बनाने की इंदौर विधि या पिट कम्पोस्ट ( इंदौर विधि ) खाद तैयार करने की विधि

खाद बनाने की इंदौर विधि में पिट कम्पोस्ट के गढ्ढे या टांके के सभी हिस्सों को भरने के लिए इकठ्ठा किया हुआ सामग्री जैसे गाय का गोबर, फसल अवशेष, सूखे पत्ते, सब्जी के छिलके, डंठल, टहनिया, जड़े आदि को इन सभी गढ्ढो के अलग-अलग परतो में भरा जाता है।

पहली परत को भरने के लिए गाय का गोबर, पशु के अपशिष्ट, फसल अवशेष एवं कचरे को गढ्ढे या टांके में डालकर एक सामान 3 इंच की मोटी परत बिछा देते है। उसके बाद दूसरी परत को भरने के लिए गोबर, पशु मूत्र व मिट्टी तीनो को मिलाकर 2 इंच की मोटी परत बिछा दे। इसी प्रकार इस प्रक्रिया को 7 से 8 परत तक करे और अंतिम में खाद को पकने क लिए छोड़ दे। समय-समय पर पानी का छिडकाव करते रहे जिससे की खाद को पकने तथा नमी में सहायता मिले।

नाडेप कम्पोस्ट की परिपक्वता

नाडेप कम्पोस्ट ( Nadep Compost ) खाद की परिपक्वता की पहचान उसके रंग और महक से की जाती है। 90- 120 दिन के बाद खाद का रंग बदल कर गहरे भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है और इसके साथ ही साथ इसमें से बदबू भी आनी बंद हो जाती है। तैयार खाद को मोटी तार वाली चलनी से छान कर ही प्रयोग में लाते है। खाद को चलनी में छानने से पके और अधपके खाद को अलग किया जा सकता है। छलनी में अगर कच्चा या खाद पूरी तरह से नहीं पका हो तो उसे आप फिर से खाद बनाने की प्रक्रिया में सामिल कर सकते है।

बात करे की एक नाडेप के गढ्ढे से कितनी खाद निकलेगा तो आपको बता दे की एक नाडेप के गढ्ढे से 6 से 7 एकड़ भूमि के लिए खाद तैयार हो जाता है। एक नाडेप के गढ्ढे से लगभग 160 से 175 घन फीट या 3 टन छना पका खाद व 40 से 50 घन फीट या 0.75 टन कच्चा माल या अधपका खाद मिल जाता है।

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नाडेप कम्पोस्ट की गुणवत्ता में वृद्धि के उपाय

नाडेप कम्पोस्ट ( Nadep Compost ) की गुणवत्ता को बढ़ने के लिए हमे खेत की मिट्टी के बजाय गौशाला की गोमूत्र से सनी मिट्टी का उपयोग करना चाहिए। जिससे की ये खाद की गुणवत्ता को और निखार देती है। केवल गोबर के घोल के बजाय आप गोबर स्लरी का उपयोग कर सकते है।

खाद बनाते समय या गढ्ढे की भराई करते समय सभी परत के ऊपर 4-5 किलो ग्राम रॉक फास्फेट या 5 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट का पाउडर डालने से खाद की गुणवत्ता और भी बढ़ जाती है। सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग मुख्य रूप से मिट्टी में कुछ पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए डाले जाते है। इसमें 16 % फास्फोरस, 11 % सल्फर और 19 % कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है, जो की फसल उत्पादन में उपयोगी है।

नाडेप कम्पोस्ट में NPK की मात्रा

गाय से मिलाने वाली एक साल के गोबर से लगभग 10 टन कम्पोस्ट मिल जाती है जिसमे NPK की मात्रा की बात करे तो 0.5% से 1.5% नाइट्रोजन, 0.5% से 0.9% फास्फोरस तथा 1.2% से 1.4% तक पोटैशियम पाया जाता है।

नाडेप कम्पोस्ट के लाभ

  • नाडेप कम्पोस्ट पर्यावरण की दृष्टि से बहुत ही लाभदायक होता है।
  • नाडेप कम्पोस्ट के उपयोग से भूमि की गुणवत्ता में अद्भुत सुधार होता है।
  • नाडेप कम्पोस्ट से भूमि की जल धारण करने की छमता में वृद्धि होती है।
  • नाडेप कम्पोस्ट खेती के लागत को लगभग 20-30 % तक कम करता है और मुनाफा को ढेड़ से दो गुना तक बढ़ा देता है।
  • इसमें फसलों में कीट अधवा व्याधि के प्रभाव को लगभग 50-75% तक कम किया जा सकता है।
  • इसमें उत्पादित फसलो की गुणवत्ता व स्वाद भी अन्य की तुलना में काफी अच्छा होता है और बाजार मूल्य में लगभग 20-25 % तक की वृद्धि होता है।
  • एक नाडेप से हमे लगभग 2.5 से 3 टन खाद मात्र 3-4 महीने में प्राप्त होता है। जो की 6-7 एकड़ भूमि के लिए पर्याप्त होती है।

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नाडेप कम्पोस्ट से जुड़े अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न- नाडेप को समझाइए ?

उतर- नाडेप एक प्रकार का ढाचा या गढ्ढा होआ है। जिसमे की नाडेप खाद को तैयार किया जाता है। नाडेप कम्पोस्ट बनाने की विधि को ग्राम पुसर, जिला यवतमाल, महाराष्ट्र, भारत के रहने वाले नारायण देवराव पण्ढ़री पांडे जी द्वारा विकसित की गई है। इसलिए इसका नाम नाडेप पड़ा। इस ढ़ाचा या गढ्ढे को बनाने के लिए नाडेप का माप 10*6*3 फीट लम्बाई, चौड़ी और गहरी होनी चाहिए। नाडेप के टांका या ढ़ाचे की दीवार की चौडाई लगभग 9 इंच होनी चाहिए। फिर इसमें परत दर परत कचरा को भरा जाता है। उसके बाद 90-120 दिन में नाडेप कम्पोस्ट तैयार हो जाती है।

प्रश्न- नाडेप योजना क्या होती है ?

उतर-

प्रश्न-नाडेप का अर्थ क्या है?

उतर- नाडेप कम्पोस्टिंग ( Nadep Composting ) एक प्राकृतिक और जैविक प्रक्रिया होती है। इसमें मिट्टी केअपशिष्ट और पशु अपशिष्ट आदि को जैविक रूप से खाद में बदला जाता है। इसके अर्थ की बात करे तो साधारण भाषा में लिखे तो नाडेप एक ढ़ाचा या गढ्ढा होता है, जिसको एक निश्चित आकार में बना कर इसका उपयोग खाद उत्पादन के लिए करते है।


प्रश्न-नाडेप खाद कैसे तैयार किया जाता है?

उतर- नाडेप खाद ( Nadep Compost in Hindi ) को बनाने के लिए एकत्र किये हुए जैविक कचरे या बायोमास अपशिष्ट, मिट्टी के अपशिष्ट और पशु अपशिष्ट को परत दर परत में क्रमनुसार भरे। समय-समय पर पानी का छिडकाव करते रहे, इस खाद को पकने के लिए 3-4 महीनो तक छोड़ दे। उसके बाद नाडेप खाद को निकाल कर उपयोग करे।

प्रश्न-सामुदायिक नाडेप क्या है?

उतर– ये नाडेप मुख्य रूप से समुदाय के लिए बनाया जाता है। जिसमे एक समुदाय के लोग को लाभ होता है।

प्रश्न-खाद कितने प्रकार के होते हैं?

उतर- खाद 4 प्रकार के होते है।
1. गोबर खाद (Animal Manures)
2. कम्पोस्ट खाद (Compost)
3. हरी खाद (Plant Manures)
4. रासायनिक खाद ( Chemical Fertilizer )

प्रश्न-सबसे अच्छा जैविक खाद कौन सा है?

उतर- सबसे अच्छा जैविक खाद गोबर की खाद (Cow Dung Manure)  और केचुआ खाद ( Vermi Compost ) है।

प्रश्न-गोबर की खाद FYM क्या है?

उतर- FYM का फुल फॉर्म फार्म यार्ड मैनोर या( Farm Yard Manure ) होता है। FYM को हम खेत या डेयरी पर रहने वाले पशुओं के गोबर, मल-मूत्र तथा बचा हुआ चारा के अपघटन से बनाते है।

प्रश्न-जैविक खाद कितने प्रकार के होते हैं?

उतर- जैविक खाद के मुख्य 4 प्रकार होते है।
1. कम्पोस्ट खाद (Compost)
2. गोबर खाद (Animal Manures)
3. हरी खाद (Plant Manures)
4. केंचुए की खाद (Earthworm Manure or Vermi Compost)

प्रश्न-कम्पोस्ट क्या है इसके दो उपयोग क्या है?

उतर– कम्पोस्ट (Compost) एक प्रकार की जैविक खाद है, जो की जैविक पदार्थों के अपघटन एवं पुनःचक्रण से प्राप्त की जाती है।
उपयोग
1. मृदा की उर्वरता बढ़ने में।
2. पर्यावरण को संरक्षित करने में।

About sapana

Studied MSc Agriculture from Banaras Hindu University and having more than 2 years of field experience in field of Agriculture.

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