मधुमक्खी पालन का परिचय ( INTRODUCTION OF BEEKEEPING )
मधुमक्खी पालन ( Beekeeping ) का ब्लॉग लिखने का उद्देश्य केवल यह नहीं कि आपको मधुमक्खी पालन ( Beekeeping ) क्या होता है, मधुमक्खी पालन कैसे करते है , मधुमक्खी पालन का क्या लाभ है जैसी सतही जानकारी के बारे में बताये बल्कि हमारा उद्देश्य इनके साथ-साथ मधुमक्खी पालन ( Beekeeping ) से सम्बंधित सभी जानकारी देने की कोशिश करना है जिसमे मधुमक्खी पालन उपकरण ( Beekeeping Equipment ) क्या-क्या होते है , मधुमक्खी पालन बॉक्स ( Beekeeping Box ) , मधुमक्खी पालक शहद ( Bee Keepers Honey ), मधुमक्खी पालन सूट ( Beekeeping Suits ), मधुमक्खि का छत्ता रखना ( Beehive Keeping ) जैसे बहुत सारी रोचक जानकारिया जो आपके मधुमक्खी पालन ( Beekeeping ) करने के तरीके और जानकारी दोनों में जबरदस्त वृद्धि करेगी तो आएये जानते है कुछ महत्वपूर्ण बिंदु जो आपको मधुमक्खी पालन तथा इसके सम्बंधित जानकारी में सहायता प्रदान करेगी।
मधुमक्खी पालन ( Beekeeping ), जो कि एक रोमांचक दुनिया है जिसमे हम खुद के साथ-साथ व्यावसायिक प्रयोग के लिए अच्छी व उच्च गुणवत्ता वाले शहद का उत्पादन कर मुनाफा कमा सकते है और इतना ही नहीं इसकी खास बात ये है कि मधुमक्खी पालन को हम बिना प्रकृति को नुक्सान पहुचाये करते है । मधुमक्खी पालन व्यवसाय के से जुड़कर हम पुरी तरह से प्राकृतिक के साथ भी जुड़ सकते हैं। अब अगर बात करे की हम इसे कैसे करेगे तो आपको बता दे कि इसे किसी भी फसल या पशुपालन जैसे व्यवसाय के सामान आसानी से कर सकते है। मधुमक्खी पालन की जानकरी के लिए केवल पहला साल ही परिचयात्मक होता है। इसके बाद दूसरे साल से अगर आपको लगता है तो आप बड़े और अच्छे निवेश (समय और पैसे के संबंध में) के लिए सोच सकते है और अपने मधुमक्खी पालन व्यवसाय को बढ़ा सकते है।
अगर बात करे कुछ विशेष महत्वपूर्ण बिंदु की तो आपको यह ध्यान रखना जरुरी है कि कुछ देशों में, मधुमक्खी पालन की शुरुआत करने से पहले अपने राज्य के सम्बंधित विभाग से अनुमति लेना, प्रारंभिक पाठ्यक्रम प्राप्त करना या औपचारिक लाइसेंस लेना या दोनों बेहद जरुरी होता है। मधुमक्खी पालन के लिए कुछ कुछ अन्य बातो का भी ध्यान विशेषरूप से रखना चाहिए जैसे कि किसी को मधुमक्खी के डंक से एलर्जिक है तो ऐसे लोगों को मधुमक्खी पालन सोच समझ कर ही करना चाहिए क्योंकि यह जानलेवा भी हो सकता है।
बात करे मधुमक्खी के उत्पाद की तो शहद और अन्य उत्पादों जैसे रॉयल जेली, प्रोपोलिस, मोम आदि मुख्य उत्पाद होते है इसके साथ ही पौधों के परागण के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
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इतिहास ( HISTORY OF BEEKEEPING )
अठारहवीं सदी के अंत में ही वैज्ञानिक तरीके से विधिवत मधुमक्खी पालन का काम शुरू हो चूका था। इसके पहले की बात करे तो मुख्यतः जंगलों से पारंपरिक तरीके से शहद एकत्र करने का काम किया जाता था। पूरी दुनिया में बात करे तो मधुमक्खी पालन का तरीका लगभग एक जैसा ही था। जिसमें की मुख्य रूप से धुआं करके, मधुमक्खियां भगा दिया जाता था और लोग मौन छत्तों को आमतौर पर उसके स्थान से तोड़ कर फिर उसे निचोड़ कर शहद प्राप्त करते थे, और आज भी जंगलों में हमारे देश में ऐसे ही तरीके से शहद निकाली जाती है।
मधुमक्खी पालन के इतिहास की बात करे तो जो आधुनिक वैज्ञानिक तरीका है वो पश्चिमी देशो की मुख्य देन है। इसका विकाश मुख्यतः निम्न चरणों में हुआ:
- सन् 1789 में स्विटजरलैंड के फ्रांसिस ह्यूबर ने मधुमक्खी पलने का प्रयास किया था इन्होने पहले-पहले लकड़ी की पेटी (मौनगृह) का प्रयोग किया था जिसकी संरचना अंदर से लकड़ी के फ्रेम से बने थे और ये देखने में एकदम किताब के पन्नों की तरह एक-दूसरे से जुड़े थे।
- सन् 1851 में अमेरिका के रहने वाले एक पादरी लैंगस्ट्राथ ने पता लगाया की आमतौर पर मधुमक्खियां अपने छत्तों के बीच 8 मिलिमीटर की जगह छोड़ती हैं। इसी को देखते हुए उन्होंने एक दूसरे से मुक्त या अलग फ्रेम बनाए जिस पर सरलतापूर्वक मधुमक्खियां अपना छत्ते बना सकें।
- सन् 1857 में मेहरिंग ने एक मोमी छत्ताधार बनाया। यह मुख्य रूप से एक मधुमक्खी मोम की बनी सीट होती है। जिस पर मुख्यतः छत्ते की कोठरियों की नाप के उभार बने होते हैं जिस पर ही मधुमक्खियां छत्ते बनाती हैं।
- सन् 1865 में ऑस्ट्रिया के मेजर डी. हुरस्का ने एक अहम भूमिका निभाई जिसमे उन्होंने मधु-निष्कासन यंत्र बनाया। जिसका प्रयोग कर शहद निकाली जाने लगी और मुख्य बात ये है कि इससे फ्रेम में लगे छत्ते आमतौर पर एकदम सुरक्षित रहते हैं। जिन्हें वापस मौन पेटी में रख दिया जाता है।
- सन् 1882 में कौलिन ने एक अहम् भूमिका बाँधी जिसमे की इन्होने रानी अवरोधक जाली का निर्माण किया जिससे की बगछूट और घरछूट की एक मुख्य समस्या का समाधान हो गया। क्योंकि इसके पहले देखा जाए तो मधुमक्खियां, रानी मधुमक्खी दोनों सहित भागने में सफल हो जाती थीं, वाही अब की बात करे तो इसमें रानी का भागना संभव नहीं था।
मधुमक्खी पालन किसे कहते है ? ( WHAT IS BEEKEEPING )
मधुमक्खी पालन ( Bee Keeping) कृषि विज्ञान के शाखा की एक महत्वपूर्ण कड़ी है जिसमे की हम व्यापार की दृष्टि से आधुनिक वैज्ञानिक विधि द्वारा मधुमक्खी का कृत्रिम पालन कर इनके द्वारा उत्पन्न उत्पादों जैसे शहद ( Honey ) व मोम ( Wax ) को प्राप्त करना ही मुख्य रूप से मधुमक्खी पालन ( Beekeeping ) या एपीकल्चर ( Apiculture ) कहलाता है।
अगर दुसरे शब्दों में कहा जाए तो मधुमक्खी पालन के बारे में कहा जाए तो ( Beekeeping ) मधुमक्खी पालन जिसमे की मधुमक्खी कालोनियों का रखरखाव करती है, मधुमक्खियों के जीनस को एपिस ( Apis ), लेकिन मुख्यतः इस तरह के मधुमक्खी या अन्य शहद उत्पादक मधुमक्खियों को मेलिपोना बेडंक मधुमक्खियों में भी रखा जाता है। मुख्यतः मधुमक्खी पालन या “मधुमक्खी यार्ड” ( Bee Yard ) कहा जाता है ।
मधुमक्खी पालन क्यों करे ? ( WHY BEEKEEPING IS DONE )
जैसे कि अगर हम किसी भी व्यवसाय जो की खेती से सम्बन्धित है उसकी बात करते है तो हमारे मन में सबसे पहला प्रश्न यही होता है की हम मधुमक्खी पालन क्यों करे ? इसका उतर जानने के बाद की बात करे तो बहुत सरे प्रश्न मन में आते है और लोग पूछते भी है जैसे कि मधुमक्खी पालन को क्या कहते है ? मधुमक्खी पालन कैसे करते है ? आदि इस सब बिंदु को ध्यान देते हुए ही हम पूरी कोशिश करेगे की अपने इस ब्लॉग के माध्यम से आपको मधुमक्खी पालन से सम्बंधित सभी जानकारी प्रदान करे ।
अगर हम बात करे आधुनिक समाज की तो सभी जानते है बढती जनसख्या तथा रोजगार को देखते हुए अन्य व्यवसायों और उद्योगों को अपनाया जा रहा जो ना तो केवल प्राकृतिक संसाधनों को असंतुलित के साथ-साथ पर्यावरण के संतुलन पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रहा है। ऐसे में ही किसान बहुत सारी रोजगार के साधन में से एक मधुमक्खी पालन का व्यवसाय को भी वरियता दे रहा क्योंकि मधुमक्खी पालन मुख्य रूप से एक पर्यावरण कल्याणकारी (ईकोफ्रेन्डली) उद्योग के रूप उभर कर सामने आया है|वही हम बात करे की मधुमक्खी पालन का व्यवसाय न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य उद्योगों को बढावा देने में एक अहम् प्रभावशाली भूमिका निभा सकता है, बल्कि विदेशों में भारतीय शहद की दिन प्रतिदिन बढती हुई मांग को विशेष रूप देखते हुए विदेशी मुद्रा अर्जित करने में एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है ।
- तो सबसे पहला मधुमक्खी पालन व्यवसाय और आय का एक अच्छा साधन है|
- मधुमक्खी पालन एक सरल और सस्ता उद्योग है |
- मधुमक्खी पालन कम समय तथा कम लागत के साथ ही साथ पूजी निवेश भी कम ही करना पड़ता है |
- मधुमक्खी पालन का पर्यावरण पर भी एक मुख्य सकारात्मक प्रभाव पड़ता है साथ ही इनका कई फूलवाले पौधों के परागण में एक अहम योगदान हैं। जैस कि वे सूर्यमुखी और अन्य फलों की उत्पादन मात्रा बढ़ाने में भी एक अहम् भूमिका निभाती है |
मधुमक्खियां कितने प्रकार की होती हैं? ( HOW MANY TYPE OF BEEKEEPING ?)
अगर हम बात करे भारत वर्ष में तो मधुमक्खियों की मुख्यतः पांच प्रजातियां हैं, जैसे-
- भुनगा या डम्भर (Apis Melipona)
- भंवर या सारंग (Apis dorsata)
- पोतिंगा या छोटी मधुमक्खी (Apis florea)
- खैरा या भारतीय मौन (Apis cerana indica)
- यूरोपियन मधुमक्खी (Apis mellifera)
भुनगा या डम्भर ( Apis Melipona )
अगर हम मधुमक्खी के प्रजाति की बात करे तो यह मधुमक्खी मुख्य रूप से अपना एक अलग भूमिका के साथ ही शांत स्वभाव की होती है जैसे इन मधुमक्खी को योरोपियन मक्खी के साथ साथ इस मधुमक्खी को इटेलियन मधुमक्खी भी कहत है| इस मधुमक्खी का आकार और स्वभाव दोनों ही एपिस इंडिका की तरह होती है और यह आकर में सबसे छोटी और सबकी तुलना में कम शहद एकत्रित करने वाली होती है बात करे इस प्रजाति की रानी मक्खी के अण्डे देने की क्षमता अधिक होती है और इनकी मुख्य विशेषता की इसके शहद का स्वाद थोडा खट्टा होता है।
बात करे उत्पादन की तो यह एक वर्ष में दो खण्ड के बक्से से करीब 60 से 80 kg शहद प्राप्त कर सकते है, और इस मधुमक्खी का मुख्य उपयोग की बात करे तो आयुर्वेदिक की दृष्टि बहुत ज्यादा महत्त्व होता है, क्योंकि यह मुख्यतः जड़ी बूटियों के नन्हें फूलों, जहां अन्य मधुमक्खियां आसानी से नहीं पहुच पाती यह मधुमक्खी उस छोटे फूलो से भी पराग एकत्र कर लेती हैं।
भंवर या सारंग ( Apis Dorsata )
यह मधुमक्खी मुख्यतः पुरे भारत में पाई जाती है, और मुख्यतः इस मधुमक्खी को स्थानीय क्षेत्रों में पहाड़ी मधुमक्खी के नाम से भी जाना जाता है और इनकी मुख्य विशेषता यह है कि यह मक्खी मुख्य रूप से लगभग 1200 मीटर की ऊँचाई तक भी पायी जाती है और इसके साथ साथ यह मधुमक्खी अपना छत्ता मुख्य रूप से बड़े वृक्षों, पुरानी इमारतों इत्यादि पर ही निर्मित करती हैं।
इस मधुमक्खियों की खास बात यह है कि इनका स्वभाव बहुत ही भयानक व तेज डंक वाला होता है जिससे कारण इसका पालना करना बहुत ही मुश्किल होता है। इस मधुमक्खी के उत्पादन की बात करे तो वर्षभर में 30-40 kg तक शहद प्राप्त हो जाता है।
पोतिंगा या छोटी मधुमक्खी ( Apis Florea )
यह मधुमक्खी का आकर सबसे छोटे होता है और मुख्यतः इस मधुमक्खी को स्थानीय भाषा में छोटी या लडट मक्खी के नाम से जानते है, इसकी विशेषता की बात करे तो यह मैदानों में झाड़ियों में, छत के कोनो तथा पेड़ की शाखाओ पर अपना छत्ता बनाती है। और अपने आकर में छोटी के कारण ये केवल 200 ग्राम से 2 किलो तक ही शहद एकत्र कर पाती है। यह मधुमक्खी पालने योग होता है किन्तु इन्हें मधुमक्खी पालन बॉक्स ( BEEKEEPING BOX ) में नहीं पाला जा सकता है |
खैरा या भारतीय मौन ( Apis Cerana Indica )
यह मधुमक्खी मुख्य रूप से भारतीय मूल की प्रजाति है, जो आमतौर पहाडी व मैदानी क्षेत्रों में मुख्यतः पाई जाती है| इस मधुमक्खी की विशेषता यह अपना छत्ता का निर्माण समान्तर दूरी पर पेड़ों, गुफाओं, घनी झाड़ियो के अँधेरे तथा इसके साथ ही साथ टूटे फूटे घरो के आलमारी में खास कर करती है|
एक वर्ष में एक छत्ते से 3 से 6 किलो ग्राम तथा लेकिन कभी कभी 10-12 kg तक भी शहद का उत्पादन करती है | बात करे इनके स्वभाव का तो ये शांत और पालतू स्वभाव होने के कारण इनको कृतिम द्वारा बनाए गए मधुमक्खी पालन बॉक्स ( BEEKEEPING BOX ) में आराम से पालन कर कमाई कर सकते है |
यूरोपियन मधुमक्खी ( Apis Mellifera )
यह मधुमक्खी का विस्तार संपूर्ण यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका तक ही है। इस मधुमक्खी की मुख्य रूप से अनेक प्रजातियां जिनमें से एक प्रजाति इटैलियन मधुमक्खी (Apis mellifera lingustica) है। इस मधुमखी का स्वभाव नम्र होता है और साथ ही साथ इस प्रजाति की रानी मक्खी के अण्डे देने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है |
मधुमक्खी के परिवार का विवरण ( DISCRIPTION OF BEES FAMILY )
मधुमक्खिया एक सामाजिक कीट है इनके परिवार मुख्यतः तीन सदस्य पाई जाते है परिवार का मुखिया रानी मधुमक्खी के साथ-साथ श्रमिक (मादा) और ड्रोन (नर) भी परिवार के मुख्य सदस्य होते है और एक साथ रहने वाली सभी मधुमक्खियां मुख्य रूप से एक मौनवंश (कॉलोनी) कहलाती हैं। मधुमक्खी का एक मौन गृह में औसतन 40 से 80 हजार से भी ज्यादा मधुमक्खिया होती है, जिसमे से रानी, नर तथा मादा मधुमक्खी मुख्य होती है |
रानी मधुमक्खी ( Queen Bee )
बात करे घर परिवार के मुखिया तो यह पूण विकशित मादा एवम् परिवार की जननी होती है, इस मौनवंश रानी (Queen) केवल एक होती है। रानी मधुमक्खी का मुख्य कार्य पूरे मौनवंश में अंडे देने का काम करती है। जिससे कि इस रानी मधुमक्खी को अंडे देने वाली मशीन के नाम से भी जाना जाता है, इनका जीवन चक्र 2-3 वर्ष तक का होता है, इसका औसतन अंडे की बात करे तो 2500 से 3000 अण्डे प्रतिदिन देती है, रानी मख्य रूप से सुनहरे रंग एवं लम्बे (15-20 मी-मी.) उदर युक्त होती हैं, यह मुख्यतः दो प्रकार अंडे देती है जिसमे से एक के गर्भित और अगर्भित होता है| युवा रानी, मुख्यतः रानी कोष में ही विकसित होती हैं,
जो विशेषकर अंगुली के शीर्षभाग (मूंगफली के दाने के बराबर) के सामान छत्ते मुख्य रूप से नीचे की ओर लटकी हुई होती है, और अगर बात करे अण्डे से युवा रानी विकसित होने की तो इसका समय लगभग 15 से 16 दिन आमतौर पर लग ही जाता हैं| रानी की मुख्य विशेषताओं की बात करे तो ये अन्य मधुमक्खियों की तुलना में आकर में बड़ी और चमकीली होती है, जिससे इसका झुंड में भी एक अलग और आसानी से पहचान किया जा सकता है। यह मधुमक्खी शहद के एक विशेष भाग रॉयल जेली (Royal jelly) का सेवन करती है |
नर मधुमक्खी | ड्रोन | निख्ट्टू ( DRONE BEE )
नर मधुमक्खी को मुख्य रूप से ड्रोन भी कहते है, और ये मधुमक्खी मुख्यतः मौसम और प्रजनन काल के अनुसार ही इनकी संख्या घटती-बढ़ती रहती है। बात करे प्रजनन काल में तो ये एक मौनवंष में ये ढाई-तीन सौ तक हो जाते हैं और इसके साथ विपरीत परिस्थितियों एकदम उल्टा भी हो जाता है जिससे कि इनकी संख्या शून्य तक हो जाती है। इसका मुख्य काम केवल रानी मधुमक्खी का गर्भाधान करना ही है, और यह मधुमक्खी मुख्यतः रानी से छोटी एवं कमेरी से बड़ी होती है,
और इनका औसत आयुकाल 60 दिन तक का ही होती है। युवा रानी मेटिंग के मुख्य लिए गंध (फेरोमोन) छोडती है, जिसका उद्देश्य विशेष कर नर को आकर्षित करना होता हैं, और मक्खी मेटिंग के लिए उड़ती है तब सभी नर रानी मक्खी का पीछा करते हैं और जो भी नर पहले रानी मक्खी को पकड़ लेता है, उससे ही मेटिंग हो जाती है। खास बात ये है कि जैसे ही रानी मौनगृह में वापस आती है तभी नर की मृत्यु हो जाती है, इस प्रक्रिया को मुख्य रूप से ‘नपरियल फ्लाइट’ कहते हैं।
कमेरी मधुमक्खी ( WORKER BEE )
यह मक्खी मुख्य रूप से अपूर्ण मादा होती है जिसका जन्म विशेष रूप से निषेचित अण्डों से होता है। इनका मुख्य विशेषता यह है कि किसी भी मौनवंश में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका मधुमक्खियां कमेरी (worker) की ही होती हैं। इनके प्रजनन अंग पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते हैं, और ये ‘श्रमिक कोष्ठ’ से ही पैदा होती है। इस मधुमक्खी के स्वभाव में मातृत्व की भावना भी बहुत ज्यादा होती है।
ये आमतौर पर फूलों से रस ले आकर शहद में परवर्तित कर देती हैं, और इनकी आयु मौसम के अनुसार बताये तो इनका सक्रिय समय मार्च-अप्रैल तथा सितम्बर-अक्टूबर में इनकी आयु 6 से 7 सप्ताह और वही सर्दियों में 6 माह तक की ही होती है, और यह अपने जीवनकाल का पहला आधा भाग कॉलोनी में रहकर अन्य मुख्य कार्य जैसे-अण्डे, लार्वा का पालन-पोषण, रानी व नरों को भोजन के लिए व्यवस्था, मोम का उत्पादन कर नये छत्ते बनाने, पुराने छत्तों की मरम्मत करने की व्यवस्था, बड़ी मक्खियों द्वारा लाये गये मकरंद को अलग-अलग कोष्ठों में रखना और मकरंद से शहद बनाना और साथ-साथ ही शत्रुओं से कॉलोनी की रक्षा करने में एक अहम् भूमिका निभाती है।
यह मख्ही अपने कॉलोनी का तापमान को सर्दी या गर्मी में अपनी 32-36० से के बिच में रखती है, और मुख्य कार्य भी करती है, जैसे कि अंडे-बच्चों की देखभाल और छत्ते के निर्माण का में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं| वही बात करे एक मधुमक्खी वंश में कुल मादा मधुमक्खियों की संख्या की तो ये 95 % से भी ज्यादा होती है, कॉलोनी के अंदर के साथ साथ ही जीवन के शेष समय में ये कॉलोनी के बहार भी कार्य करती है, जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण है जैसे कि फूलों से पराग एवं मकरंद लाना और उन पौधों की खोज करना जो की अधिक पराग व मकरंद देते है, तथा उनकी दूरी आदि के सम्बद्ध में महत्त्वपूण जानकारी कालोनी के अन्य सदस्यों देना | प्रजनन न कर सकने के कारण से ही इनके अण्डे अनिषेचित ही होते है, जिसके कारण अण्डे से केवल और केवल नर ही पैदा होते है | इस प्रकार की कॉलोनियां धीरे –धीरे करके पूर्णतया नष्ट ही हो जाती है।
मधुमक्खियों का जीवन चक्र ( LIFE CYCLE OF BEE )
मधुमक्खी का जीवन चक्र की बात करे तो यह विभिन्न चरणों से होकर गुजरता है, जिसमे मुख्यतः रानी मधुमक्खी की भूमिका अहम होती है जो कि अण्डे देने से लेकर वयस्क अवस्था तक के सभी चरण शामिल होते है| इनके जीवन चक्र की चार अवस्थाए मुख्यतः (अण्डा, लार्वा, प्यूपा और वयस्क) पायी जाती हैं।
अंडा ( EGG )
मधुमक्खीके जीवन च्रक में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवस्था होती है जिसमे मधुमक्खी के अण्डे की बात करे तो यह छोटे पतले तथा रंग में सफेद होते हैं। अण्डे की अवस्था मुख्यतः तीन दिवस की होती है। अण्डा अगर नर कोष में है, तो मुख्यतः नर ही पैदा होंगे और यदि मादा की कोष में है, तो मुख्य रूप मादा पैदा होगी। रानी मधुमक्खी मुख्यतः छत्ते के षट्कोण नुमा कोष्ठो (कोशिकाओं) पर ही अण्डे दिये जाते है, और रानी मधुमक्खी एक दिन मे अण्डे देने मे सक्षमता लगभग 2,000 होती है, रानी, श्रमिक एवं नर मधुमक्खी में अण्डे की अवस्था मुख्य रूप से मात्र तीन दिवस तक रहती है और साथ ही साथ उनसे वयस्क की बात करे तो ये क्रमशः 15-16 दिन, 20-21 दिन तथा 23-24 दिन में तैयार होते हैं।
पिल्लू या लार्वा ( PUPA OR LARVA )
रानी मधुमक्खी के द्वारा उत्पन्न अण्डे के 3 दिन बाद यह मुख्यतः लार्वा मे विकसित हो जाते है,तथा यह पतला, लम्बा और बर्फीले सफेद दिखाई देते है, और यह कोष में चल फिर सकते है, शुरुआती दिनों में कमेरी मधुमखिया सभी लार्वा को शाही जेली का भोजन खिलाती है (शाही जेली मुख्यतः मधुमक्खियों के सिर मे विशेष ग्रंथियों और मुँह मे लार ग्रंथियों मे बनाया गया एक विशेष पदार्थ होता है) इसमें मुख्य रूप से प्रोटीन,विटामिन,वसा तथा शर्करा होती है|
मादा मधुमक्खियों के जिस लार्वा से रानी को बनाना होता है, उस लार्वा को जीवन भर राज अवलेह ही खिलाया जाता हैं। बचे हुए लार्वा को तीन दिवस तक राज अवलेह और साथ ही साथ चौथे दिन से मधु और पराग की बनी रोटी भी खिलाती हैं। अण्डे देने के मुख्यतः 6 दिन बाद ही लार्वा (रानी,नर व कार्यकर्ता मधुमक्खी) मे स्पष्ट रूप से अंतर किया जा सकता है और 5 से 6 दिन में लार्वा पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है। बाद उसके ऊपर पतली झिल्ली बन जाती है और फिर प्यूपा में परिवर्तित हो जाता है। रानी मधुमक्खी के लिए लार्वा की चरण मुख्यतः 5.5 दिनों तक रहता है, कार्यकर्ता मधुमक्खियों के लिए 6 दिवस और ड्रोन के लिए मुख्यतः 6.5 दिन तक रहता है।
महत्वपूर्ण तथ्य जो कि जानने योग्य यह है कि श्रमिक मधुमक्खियों के द्वारा मोम के आवरण से ढके जाने के समय मे मुख्य अंतर होता है,जो कि इस प्रकार है :-
- रानी मधुमक्खी को प्यूपा मे परिवर्तित होने से एक दिन पहले या अण्डे देने के 7.5 दिन बाद क्रमश मोम का आवरण किया जाता है|
- श्रमिक कोशिकाओं को मोम से लगभग 9 दिनों के पश्चात ढका जाता है|
- प्यूपा मे परिवर्तित होने के थोड़ी देर पहले ड्रोन कोष्ठो को लगभग 10 दिनों मे मोम से ढका जाता है|
प्यूपा ( PUPA )
इस अवस्था में लार्वा अपने शरीर के चारो ओर जेली का आवरण मुख्यतः मोम के आवरण से ढकने के बाद बनाता है, जिससे की वह अंदर में सुरक्षित रहता है,और इसके साथ साथ ही लार्वा मे शरीर के विभिन्न भाग जैसे सिर,आँख,वक्ष,पंख,पैर मुख्य रूप से विकसित होने लगते है|यह चरण मुख्य रूप से रानी मधुमक्खी के लिए 7.5 दिन ड्रोन मधुमक्खियाँ का 12 दिन तथा श्रमिक मधुमक्खियों के लिए 14.5 दिनों तक का रहता है| धीरे धीरे पौढ़ प्यूपा में रंगों का परिवर्तन होने लगता है। जिसमे की मुख्यतः पहले आँखों का रंग गुलाबी उस के बाद बैंगनी और उसके बाद में काला हो जाता है। वक्ष तथा उदर का रंग में भी परिवर्तन देखा जाता है, जिसमे की मुख्य रूप से उसका रंग भूरा हो जाता है, और साथ ही साथ शरीर में शाखायुक्त बाल उगने लगते हैं और त्वचा में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन भी हो जाते हैं।
प्रौढ़ ( MATURE )
इस अवस्था में मुख्यतः मधुमक्खियों के शरीर का पूर्णरूप से विकाश हो चुका होता है, और इतना ही नहीं मधुमक्खी अण्डे देने के लिए भी पूर्ण रूप परिपक्व हो चुकी होती है|एक समुदाय की बात करे तो ये लगभग 50,000 से 60,000 श्रमिक मधुमक्खी और 600 से 1000 ड्रोन मधुमक्खी यद्यपि केवल एक ही रानी मधुमक्खी होती है| प्यूपा के पूर्ण विकास के बाद 15 से 16 दिनों में वयस्क रानी का मुख्य रूप से विकास होता है। 20 स 21 दिनों में श्रमिक मधुमक्खी व 23 -24 दिनों में मुख्य प्रोढ़ नर मधुमक्खी का विकास हो जाता है|
मधुमक्खी पालन उपकरण ( Beekeeping Equipment )
मधुमक्खी पालन हेतु विभिन्न प्रकार के मधुमक्खी पालन उपकरण ( Beekeeping Equipment ) की आवश्यकता होती है, जिसमें की मुख्य रूप से मौन पेटिका, मधु निष्कासन यत्र, स्टैंड, छीलन छुरी, छत्ताधार, रानी रोक पट, हाईवे टूल (खुरपी), रानी रोक द्वार, नकाब, रानी कोष्ठ रक्षण यंत्र, दस्ताने, भोजन पात्र, धुआंकर और ब्रुश इत्यादि आते है |
मौन गृह (SILENT HOUSE)
हम सभी जानते है कि प्राकृतिक रूप से मधुमक्खी अपना छत्ता बनाने के लिए पेड़ के खोखले, दिवार के कोनों, पुराने खंडहरों आदि का सहारा लेती हैं, और बाद में इनमें शहद की प्राप्ति लिए इन्हें काटकर निचोड़ा लिया जाता है, लेकिन इस विशेष बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में अंडा लार्वा व प्यूपा आदि का रस भी पूरी तरह से शहद में मिल जाता है और साथ ही साथ मौनवंश भी पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। मुख्य रूप से प्राचीन काल में जब मधुमक्खी पालन व्यवसाय की तकनीकी विकास नहीं हुआ था | तब यही केवल यही प्रक्रिया शहद प्राप्ति के लिए मुख्य रूप से अपनाई जाती थी। इसको ध्यान में रखते हुए और इस प्रक्रिया से बचने के लिए वैज्ञानिकों ने सम्पुण अध्ययन व अलग-अलग शोधों के बाद में मधुमक्खी पालन के लिए मुख्यतः मौनगृह व मधु निष्कासन यंत्र का एक अच्छा और लाभकारी आविष्कार किया।
बात करे मौनगृह की तो यह मुख्यतः एक लकड़ी से बना एक विशेष प्रकार बक्सा होता है। यह एक महत्वपूण मधुमक्खी पालन उपकरण ( Beekeeping Equipment ) है, जिसकी सहायता से हम मधुमक्खी पालन करते है।
बात करे इसकी संरचना की तो मौनगृह का मधुमक्खी पालन के लिए बक्शे का पहला सबसे निचला भाग तलपट कहलाता है, यह मुख्य रूप से लगभग 381+2 मि.मी. लम्बे, 266+2 मि.मी. चौड़ाई व 50 मि. मी. ऊँचाई वाले लकड़ी के पट्टे से बना होता है और तलपट के ठीक ऊपर वाला जो भाग होता है, उसे शिशु खंड कहते है, जिसकी बाहरी माप मुख्यतः लगभग 286 +2 मि.मी. लम्बी, 266+2 मि.मी. चौड़ी और 50 मि.मी. ऊँची होती है। शिशु खंड की आन्तरिक की बात करे तो माप मुख्यतः 240 मि.मी. लम्बी, 320 मी. चौड़ी तथा 173 मि. मी. ऊँची होती है, और शिशु खंड में मुख्यतः अंडा, लार्वा, प्यूपा के साथ साथ मौन वंश के तीनों सदस्य मुख्य रूप से श्रमिक रानी व नर भी रहते हैं।
मौन गृह के मुख्यतः दस भाग में 10 फ्रेम होते हैं, जहा पर इसी कछ श्रमिक मधुमक्खी द्वारा शहद का भंडारण भी किया जाता है। इसके अलावा भी मौनगृह में मुख्य रूप से दो ढक्कन होते हैं – आन्तरिक और बाह्य ढक्कन। जहा पर आन्तरिक ढक्कन का आकर मुख्य रूप से एक पट्टी जैसी आकृति का होता है, और साथ में इसके बिल्कुल बिच में एक छिद्र होता है।
विभिन्न ऋतुओं में मधुमक्खियों का प्रबंधन ( MANAGEMENT OF BEEKEEPING IN DIFFERENT SEASON )
मधुमक्खी के प्रबंध की बात करे तो यह एक महत्वपूण विषय है क्योंकि जब हम इसके प्रबंध की बात करे तो मधुमक्खी के परिवारों की सामान्य गतिविधियाँ मुख्य रूप से 100 और 380 सेंटीग्रेट की बीच में होती है, और इतना ही नहीं उचित प्रबंध के माध्यम के द्वारा अनुकूल परिस्तिथियों में इनका बचाव करना भी अति आवश्यक हैं। उचित और अधिक उत्पादन के लिए रखरखाव से परिवार को अधिक शक्तिशाली एवं सक्रीय क्रियाशील बनाये रखे जा सकते है। साथ ही साथ समय समय पर मधुमक्खी परिवार को विभिन्न प्रकार के रोगों एवं शत्रुओं का प्रकोप का खतरा होता रहता है। जिनका सही और क्रम्बंध निदान को उचित प्रबंधन द्वारा ही किया जा सकता है, इह्नी सब स्तिथियों को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित प्रकार वार्षिक प्रबंधन करना चाहिये जो कि इस प्रकार है-
शरदऋतु में मधुवाटिका का प्रबंधन ( MANAGEMENT OF HONEYCOMB IN AUTUMN )
- मधुमक्खी पालन का एक महत्वपूण अंग की बात करे तो इसमें मधुमक्खी प्रबंध एक विशेष भूमिका निभाती है, जैसे हम बात कर रहे ऋतु में मधुमक्खी पालन के प्रबंध की तो शरदऋतु में मुख्य रूप से अत्यधिक ठंढ पड़ती है, जिससे कारण तापमान कभी कभी 10 या 20 सेन्टीग्रेट से भी निचे तक चला जाता है। इस समय हमे मधुमक्खी के मौन वंशो को बचाना जरुरी हो जाता है। आमतौर पर कुछ बहुत ही साधारण बात को जरुर ध्यान देना महत्वपूण है, जैसे कि मुख्यतः मौनपालको को टाट की बोरी का दो तह बनाकर अंदर के ढक्कन के निचे अच्छे तरह से बिछा देना चाहिए, इस कार्य को मुख्य रूप से माह के अक्टूबर में करना चाहिये। इस प्रक्रिया में मौन गृह का तापमान मुख्य रूप से एक समान गर्म बना रहता है। अगर किसान इच्छुक हो तो टाट की बोरी के जगह पोलीथिन का भी प्रयोग करके प्रवेश द्वार को छोड़कर पूरे बक्से को अच्छे से ढक देना चाहिए और साधारण तरीका जो कि किसान के पास आसानी से उपलब्ध हो जैसे कि घास फूस या पुवाल का छापर टाट का भी उपयोग कर के बक्सों को ढक सकते है |
- अब ध्यान देने योग बात यह है कि इसका स्थान ऐसा होना चाहिए जहाँ कि जमीं में नमी न हो जमीन मुख्यतः सुखी हो तथा दिन भर धुप रहता हो | क्योंकि इसका सीधा प्रभाव मधुमक्खियाँ के कार्य पर पड़ेगा यानि कि मधुमक्खिया अधिक समय तक कार्य करेगी ये प्रक्रिया मुख्यतः अक्टूबर में ही देख लेना चाहिये।
- इसके साथ ही साथ हमे रानी मधुमक्खी का भी ध्यान देना होगा जैसे की रानी मधुमक्खी अच्छी हो और साथ ही साथ एक साल से ज्यादा पुरानी तो नही है, और अगर किसी भी कारण वश रानी मधुमक्खी पुरानी है तो इस वंश में नई रानी को वरियता देनी चाहिये| जिसका मात्र एक मुख्य उद्देशय यह है कि शरद ऋतु में श्रमिको की कार्यशील पर कोई प्रभाव ना पड़े और मौन वंस कमजोर न हो | ऐसे क्षेत्र जहाँ शीतलहर मुख्य रूप से पड़ती है वहाँ मौन गृह में आवश्यक शहद और पराग की भरपूर मात्रा है या नही इसका पुष्टिकरण प्रारम्भ होने से पहले ही निश्चित कर लेना चाहिये।
- भोजन में कमी न हो जिसके लिए हमे परिक्षण करना अत्यंत अवश्यक है, और अगर शहद की मात्रा कम है या तो शहद नहीं है तो इसका मुख्य उपाय यह है कि मौन वंशों को 50:50 के अनुपात में चीनी और पानी का घोल बनाकर उबालकर ठंडा होने के बाद मौन गृहों के अंदर रख देना चाहिए |
- मौन गृह का मरम्मत भी एक महत्वपूण कार्य है, इसका मुख्य कार्य मधुमक्खियो को सर्दी से बचाया जा सकता है इसके लिए मरम्मत अक्टूबर नवम्बर तक अवश्य करा लेना चाहिए।
- ठण्ड में मौन वंसो को फुल वाले स्थान पर ही रखना चाहिये, जिससे कि कम समय में ज्यादा से ज्यादा मकरंद और पराग एकत्र किया जा सके और साथ ही ठंढ ज्यादातर होने के कारण मौन गृहों को नही खोलना चाहिए, क्योंकि ठण्ड की वजह से शिशु मक्खियों के मरने का डर रहता है।
बसंत ऋतु में मौन प्रबंधनरू ( SILENT MANAGEMENT IN SRING SEASON )
- यह ऋतु मधुमक्खियों और मौन पालको के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है, क्योंकि आमतौर पर इस ऋतु के समय लगभग सभी स्थानों में भरपूर मात्रा में पराग और मकरंद उपलब्ध रहते है, जिसके परिणाम स्वरूप मौनों की संख्या दुगनी रफ्तार से बढ़ जाती है, और साथ ही साथ शहद के उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है।
- बात करे देख रेख की तो इसको भी समयनुसार देख रेख की बहुत जरूरत होती है, और शरद ऋतु ख़त्म होने पर धीर-धीरे मौन गृह की पैकिंग ( टाट, पट्टी और पुरल के छापर इत्यादि) को मुख्य रूप से हटा देना चाहिए। मौन गृहों को खाली कर के उसकी अच्छी तरह से सफाई कर लेना चाहिए। पेंदी पर लगे मौन को अच्छे तरह से खुरच कर हट देना चाहिए, मुख्य रूप से 500 ग्राम मोम का प्रयोग दरारों में करना चाहिए| जिसका मुख्य उदेश्य माईट को मारा जा सके। मुख्य बात बहार से आने वाली गर्मी में मौन गृहों का तापमान कम करने के लिए मौन गृहों पर बहार से सफेद पेंट लगा देना देना चाहिए |
- अधिक से अधिक उत्पादन, संख्या व क्षमता बढ़ने के लिए मुख्य रूप से बसंत ऋतु के शुरू में ही मौन वंशो को कृत्रिम भोजन देना चाहिए | यही बात करे रानी की तो रानी यदि रानी पुरानि हो गयी हो तो उसे मुख्य रूप से अंडे वाला फ्रेम दे देना चाहिए, जिससे की रानी दुसरे वाला सृजन को प्रारम्भ कर दे, और यही ही नहीं बात करे मौन गृह में मौन की संख्या बढ़ गयी हों तो मुख्यतः मोम लगा हुआ या अतिरिक्त फ्रेम देना चाहिए, जिससे कि मधुमक्खियाँ छत्ते बना सके यदि छत्तों में शहद भर गया हो तो मधु निष्कासन यंत्र से शहद को निकल लेना चाहिए। जिससे मधुमक्खियां अधिक क्षमता के साथ कार्य कर सके| यदि नरो की संख्या बढ़ गयी हो तो नर प्रपंच लगा कर इनकी संख्या को नियंत्रित कर देना चाहिए।
ग्रीष्म ऋतु में मौन प्रबंधन ( SILENT MANAGEMENT IN SUMMER )
- ग्रीष्म ऋतु में मौनो की देख भाल करना ज्यादा जरुरी होता है, जिन क्षेत्रो में तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेट से उपर तक पहुचने पर मौन गृहों को मुख्यतः किसी छायादार स्थान पर रखना चाहिए। लेकिन सुबह की सूर्य की रौशनी मौन गृहों पर पड़नी अति आवश्यक है, जिससे कि मुख्य रूप से मधुमक्खियाँ सुबह से ही सक्रीय होकर अपना कार्य करना शुरू कर सके| इस समय कुछ स्थानों जहाँ पर बरसीम, सूर्यमुखी इत्यादि की खेती होती है। वहां पर मुख्य रूप से मधुश्राव होने की सम्भावना होती है। इस समय में मुख्य रूप से मधुमक्खियों को साफ और बहते हुए पानी की बहुत ही आवश्यकता होती है। इसलिए विशेष रूप से पानी की उचित व्यवस्था मधुवाटिका के आस पास ही होना चाहिए | इसमें विशेष ध्यान देने योग बात यह है की मौनो गृह को लू से बचने के लिए मुख्यतः छ्प्पर का प्रयोग करना चाहिये, जिससे की गर्म हवा सीधे मौन गृहों के अंदर ना जा सके, इसके अतिरिक्त फ्रेम को बाहर निकाल कर उसका उचितरूप से भण्डारण कर लेना चाहिये।
- जिससे मौन गृह को मोमी पतंगा के महा प्रकोप से बचाया जा सके, और यदि मौन वाटिका में छायादार स्थान न हो तो मुख्यतः बक्से के उपर छप्पर या पुआल डाल कर उसे सुबह शाम समयानुसार पानी से भिगोते रहना चाहिये। जिससे की मौन गृह का तापमान को कम किया जा सकता है | कृत्रिम भोजन के रूप में के मधुमक्खी को 50:50 के अनुपात में चीनी और पानी को उबल कर ठंडा होने के बाद ही मौन गृह के अंदर कटोरी या फीडर में ध्यान से रख देना चाहिए और मौन गृह के स्टैंड की कटोरियों में मुख्य रूप से प्रतिदिन के अनुसार साफ और तजा पानी डालना चाहिए। यदि मौनो की संख्या मुख्य रूप से ज्यादा बढ़ने लगे तो ध्यानपूर्व अतिरिक्त फ्रेम में डालना चाहिए।
वर्षा ऋतु में मौन प्रबंधन ( SILENT MANAGEMENT IN RAINY SEASON )
- वर्षा ऋतु की बात करे तो इस समय में तेज वर्षा, हवा और शत्रुओं जैसे चींटियाँ, मोमी पतंगा, पक्षियों आदि का मुख्यतः प्रकोप होता है, मुख्य रूप से मोमि पतंगों के प्रकोप से बचने के लिए छतो को हटा देना चाहिए , और साथ ही साथ फ्लोर बोड को अच्छी तरह साफ करे और उसपर गंधक पाउडर छिडक देना चाहिय | चीटी के रोकथाम के लिए मुख्यतः स्टैंड को पानी से भरा बर्तन में रखे तथा पानी में दो-तीन बूंदें काले तेल की भी डाले |
- मोमी पतंगों से प्रभावित हुए छत्ते, पुराने काले छत्ते एवं फफूंद लगे छत्तों को मुख्यतः निकल कर अलग ही कर देना चाहिए, या तो उसको पालीथीन से ढख कर रखना चाहिए |
मधुमक्खी पालन में पुष्प पंचाग (फ्लोरल कलेन्डर) का प्रबन्धन एवं भोजन स्रोत वाले पौधें ( MANAGEMENT OF FLORAL CALENDAR AND FOOD SOURCE PLANTS IN KEEPING )
मधुमक्खी पालन आजकल हमारे लिए एक लाभकर और प्रभावकारी व्यवसाय के रूप उभर कर सामने आ रहा है | अगर हम फूलों की खेती के साथ मधुमक्खी पालन का उद्योग कर तो ये हमारे लिए बहुत ही फायदेमंद होता है जिसस हमारे आमदनी में 20 से 80 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है, और बात करे मधुमक्खी पालन की तो ये मुख्य रूप से सुरज मुखी, गाजर, मिर्च, सोयाबीन, पॉपीलेनटिल्स आदि फसलों तथा नींबू, कीनू, आंवला, पपीता, अमरूद, आम, सतरा, मौसंबी, अंगूर, यूकेलिप्टस और गुलमोहर आदि फल-फूल के पेड़ वाले क्षेत्रों आराम से किया जा सकता है।
पोषण की योजना ( NUTRITION PLAN )
मधुमक्खी पालन के लिए सबसे महत्वपूर्ण तथ्य की बात करे तो सभी जानते है, जैसे कि मनुष्य को जीवन जीने और अपना दैनिक दिनचर्या के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार जो भी किसान भाई या तो मधुमक्खी पालक या मधुमक्खी पालन के पूर्व ही इनके पोषण के लिए पूरे वर्ष की कार्य योजना बनाना बहुत ही अनिवार्य है। मधुमक्खी के पोषण की बात करे तो मुख्यतः ये पराग और मकरन्द है, जो कि मुख्यतः इन्हें फूलों द्वारा ही प्राप्त होता है, इस लिए मधुमक्खी पालकों या कृषकों को विशेष ध्यानपूर्व कार्ययोजना बनाना चाहिए, और सबसे पहले मधुमक्खी पालन को अपनाने से पूर्व यह सुनिश्चित कराना बहुत ही महत्वपूर्ण है,
कौन से माह में कौन से वनस्पति से नेक्टर एवं पराग से पर्याप्त मात्रा मिलता है, जिससे की वर्ष भर बिना किसी कारणवश मधुमक्खियों का पालन आसानी से किया जा सके, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर पराग एवं नेक्टर प्राकृतिक रूप से प्राप्त नहीं होते है तो इस अवस्था में मधुमक्खियों को कृत्रिम भोजन के रूप में चीनी के घोल मुख्य रूप से दिया जाता है, जिससे माध्यम से मधुमक्खियां अपना जीवन निर्वाह आसानी से कर पाती हैं, तथा सरसों, तोरिया, धनियां, नींबू, अरहर, लीची, सहजना, करौंदा, बरसीम, कद्दूवर्गीय सब्जी, यूकेलिप्टस, करंज, आंवला, मूंग, शीशम, सूरज मुखी, नीम, खैर, मेंहदी, ज्वार, बाजरा, जवांसा, कटेरी, रोहिडा, लिसोडा, अनार, खेजडी, बांसा इत्यादि वनस्पतियों में पराग व मकरन्द पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
सबसे ज्यादातर ध्यान देने योग बात यह है कि किसानों को चाहिए, सभी किसान भाई अपने क्षेत्र का माहवार पुष्प कलेण्डर तैयार कर लेना चाहिए जो कि उनको मधुमक्खी पालन के लिए बहुत ही लाभकारी साबित होता है |
मधुमक्खियों के भोजन का स्रोत ( SOURCE OF FOOD FOR BEES )
बात करे मधुमक्खी के भोजन की तो अन्य राज्यों की तुलना में बिहार प्रदेश में मधुमक्खियों के लिए प्रचुर मात्रा में बहुतायत में भोजन-स्रोत उपलब्ध होते हैं। इस राज्य में मुख्य रूप से दलहन फसल में (अरहर, मूँग, खेसारी, चना, मटर, मसूर इत्यादि), तिलहन फसल में (सरसों प्रजति, सूरज मुखी, कुसुम, अंडी, तिल, इत्यादि), मसाले वाली फसलों में (धनिया, सौंफ, मेथी, मंगरैला, अजवाइन, इत्यादि), फल वृक्ष में (लीची, अमरूद, नींबू-प्रजतियां, बेर, बेल, आंवला, जामुन, केला, सहजन, इत्यादि), खाद्य फसलें मुख्यतः (धान, मक्का), सब्जी में (कदीमा, करैला, टमाटर, मिर्च, प्याज गाजर, मूली, इत्यादि), शोभाकारी फूल में (गुलाब, थलकमल, जस्टेसिया, हरपतिया, जिनिया, पोरचुलाका, मेंहदी, गोल्डेन रॉड, इत्यादि), चारे वाली फसलें में (ज्वार, बाजरा, मकई, जनेरा, सूबबूल, बरसीम, इत्यादि), रेशे वाली फसलें में (सनई, जूट) व घास वाले पौधे में (मोथा, सुसुमा, धुरमी, वन भिन्डी, भाँग इत्यादि) बहुतायत तथा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है |
निचे दिए गए निम्नलिखित तालिका में विभिन्न महीनों में पुष्पन में रहने वाले फसलों का विस्तारपूर्वक विवरण का उल्लेख किया गया है जिसके माध्यम से किसान और उद्यमी मधुमक्खी पालन को समायोजित करके अधिक लाभ कमा सकते हैं।
तालिकाः विभिन्न महीनों में फूलने वाली मुख्य फसलें
क्रमांक (SERIAL) | महीना (MONTH) | पौधे का नाम ( NAME OF PLANT ) |
1 | जनवरी | सरसों, तोरिया, कुसुम, चना, मटर, राजमा, अनार, अमरुद, कटहल, यूकेलिप्टस |
2 | फरवरी | सरसों, तोरिया, कुसुम, चना ,मटर, राजमा, अनार, अमरुद, कटहल, यूकेलिप्टस, प्याज, धनिया, शीशम |
3 | मार्च | कुसुम, सूर्यमुखी, अलसी, बरसीम, अरहर, मेथी, मटर, भिन्डी, धनियाँ, आंवला, निम्बू, जंगली जलेबी, शीशम, यूकेलिप्टस, नीम |
4 | अप्रैल | सूरजमुखी, बरसीम, अरण्डी, रामतिल, भिन्डी, मिर्च, सेम, तरबूज, खरबूज, करेला, लौकी, जामुन, नीम, अमलतास |
5 | मई | तिल, मक्का, सूरजमुखी, बरसीम, तरबूज, खरबूजा, खीरा, करेला, लौकी, इमली, कद्दू, करंज, अर्जुन, अमलतास |
6 | जून | मक्का, सूरजमुखी, बरसीम, तरबूज, खरबूजा, खीरा, करेला, लौकी, इमली, कद्दू, बबूल, अर्जुन, अमलतास |
7 | जुलाई | ज्वार, मक्का, बाजरा, करेला, खीरा, लौकी, भिन्डी, पपीता |
8 | अगस्त | ज्वार, मक्का, सोयाबीन, मूंग, धान, टमाटर, बबूल, आवला, कचनार, खीरा, भिन्डी, पपीता |
9 | सितम्बर | बाजारा, सनई, अरहर, सोयाबीन, मूंग, धान, रामतिल, टमाटर, बरबटी, भिन्डी, कचनार, बेर |
10 | अक्टुबर | सनई, अरहर, धान, अरण्डी, रामतिल, यूकेलिप्टस, कचनार, बेर, बबूल |
11 | नवम्बर | सरसों, तोरिया, मटर, अमरुद, शहजन, बेर, यूकेलिप्टस, |
12 | दिसम्बर | सरसो, तोरियाँ, राई, चना, मटर, यूकेलिप्टस, अमरुद |
मधुमक्खी के परिवारों का विभाजन एवं जोड़ना ( DIVISION AND UNION OF BEE FAMILIES )
मधुमक्खी के परिवार का विभाजन ( DIVISION OF BEE FAMILIES )
अगर हम देखे तो मौसम के अनुसार ही इनकी संख्या में परिवर्तन दिखाए देता है, जैसे कि अगर मौसम अच्छा है तो मधुमक्खियों की संख्या में बढ़ोतरी होती है तो इसके अनुसार मधुमक्खी परिवारों का विभाजन करना सही माना जाता है, और अगर ऐसा नहीं किया जायेगा तो मधुमक्खी मुख्यतः अपना घर छोड़कर भाग सकती है।
अब बात करे इसके लिए क्या-क्या करना चाहिये तो सबसे पहले मूल परिवार के पास दूसरा खाली बक्सा रखे और मूल मधुमक्खी परिवार से 50 % ब्रुड, शहद व पराग वाले फ्रेम को रखे, और साथ ही रानी वाला फ्रेम को भी नये बक्से में रखे, और विशेष बात अगर मूल बक्से में मुख्यतः रानी कोष्ठ है तो अच्छा है, वरना कमेरी मक्खियाँ स्वयं ही रानी कोष्ठक बना लेगी तथा 16 दिन बाद ही रानी भी बन जाएगी। यही प्रक्रिया को मुख्यतः रोज दोनों बक्सों एक फीट एक दुसरे से दूर करते जाये जिससे की नया बक्सा तैयार हो जायेगा।
मधुमक्खी के परिवार को जोड़ना ( UNION OF BEE FAMILIES )
जब भी मधुमक्खी का परिवार कमजोर और रानी रहित हो तो हमे मुख्य रूप से ऐसे परिवार को दुसरे परिवार में जोड़न उचित माना जाता है। इसके लिए हमे मुख्यतः एक अखबार में छोटे छोटे छेद बनाकर रानी वाले परिवार के शिशु खण्ड के उपर रखना होता है, तथा साथ ही मिलाने वाले परिवार के फ्रेम को एक सुपर में लगाकर इसे रानी के परिवार के उपर ही रख दिया जाता है। मुख्यतः अखबार के उपर थोडा सा शहद छिडक दिया जाता है, जिसका मुख्य उदेश्य यह है कि 10-12 घंटों के अंतराल में दोनों परिवारों की गंध आपस में मिल जाए, इसके बाद में सुपर और अखबार को अच्छे से हटाकर और फ्रेमो को शिशु खण्ड में रखते है, जिसके परिणामस्वरूप परिवार मुख्य रूप से जुड़ जाते है |
मधुमक्खी के परिवारों का स्थानांतरण ( TRANSEFER OF BEE FAMILIES )
जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि स्थानान्तरण मतलब एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की प्रक्रिया को कहते है इस प्रक्रिया में मधुमक्खी के परिवारों स्थान परिवर्तन करते है| क्योंकि जब एक स्थान पर पराग और नेक्टर के स्त्रोत पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं, तो मुख्य रूप से यह कार्य करना बेहद जरूर हो जाता है। जिसकी वजह से मधुमक्खियों का स्वास्थ भी बहुत हद तक ठीक रहता है और उत्पादन का कार्य भी नियमितता से होता रहता है। विभिन्न प्रकार के शहद उत्पादन का कार्य भी इसी प्रक्रिया द्वारा ही सम्भव हो सकता है।
मधुमक्खी परिवार का स्थानान्तरण करते समय निम्नलिखित बिन्दुओं का विशेष ध्यान रखें।
क) सबसे पहला और महत्वपूर्ण बिंदु स्थानांतरण की जगह को पहले से ही सुनिश्चित करना उचित होता है।
ख) अगर स्थानांतरण की जगह ज्यादा दूरी पर है, तो मौन गृह में भोजन की प्रचुर व्यवस्था करें।
ग) प्रवेश द्वार पर मुख्य रूप से लोहे की बनी जाली लगा दें और अगर छत्तों में अधिक शहद है तो उस दशा में छत्तों को निकल लें और बक्सों को ध्यान पूर्व बोरी से कील लगाकर सील कर दें।
घ) बक्सों को रखते समय विशेष ध्यान दे की उसकी दिशा गाड़ी में लम्बाई की तरफ ही हो, और ध्यान दे की परिवहन के समय कम से कम झटके लगे, जिससे की छत्ते को किसी प्रकार की क्षति न पहुँचे और उसके साथ ही साथ मधुमक्खियां भी सुरक्षित रहें।
ङ) अगर आप गर्मी में स्थनान्तरण कर रहे तो ध्यान रहे की समय-समय पर बक्सों के ऊपर पानी छिडकते रहें और अगर जहा तक सम्भव हो यात्रा मुख्यतः रात के समय ही करें।
च) नई जगह पर मुख्यतः बक्सों को लगभग 8-10 फीट की दूरी पर रखे और साथ ही उनका मुँह पूर्व-पश्चिम दिशा की तरफ रखें।
मधुमक्खी के छत्तों की देख भाल एवं रखरखाव ( BEE HIVE CARE AND MAINTENANACE )
हम सभी जानते है की मधुमक्खियां एक जीवित प्राणी हैं अतः जैसे मनुष्य के लिए उनके स्वास्थ, रहन-सहन, व्यवस्था, खान-पान ए वं अन्य जरूरी चीजों का ख्याल रखना अत्यंत आवश्यक होता है, ठीक उसी प्रकार मधुमक्खी का भी स्वास्थ, रहन-सहन, व्यवस्था, खान-पान ए वं अन्य जरूरी चीजों का ख्याल रखना अति आवश्यक होता है तो आएये हम आपको उनके रखरखाव के बारे में कुछ बात बताते है उम्मीद है आप को समझ आएयेगा और आप भी इसका बिंदु का पालन करेगे |
- बात करे इनके रखरखाव की तो मधुमक्खी के छत्ते लिए मुख्यतः छाया वाला स्थान का चिन्हांकन अत्यंत जरुरी है,और मुख्यतः सर्दी के मौसम में धूपदार और तेज हवाओं से भी सुरक्षित रखना और सबसे ज्यादा और जरुरी पानी की अच्छी निकासी वाले क्षेत्र का ही चयन करना चाहिए ।
- आमतौर पर छत्तों को सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए , क्योंकि मधुमक्खी के छते को नमी प्रभावित करेगी।
- ऐसे खेत जहा पर बहुत ज्यादा कीटनाशकों का छिड़काव किया गया हो और अन्य मधुमक्खी पालकों के छत्तों के आस पास मधुमक्खी के छते को मुख्यतः नहीं रखना चाहिए।
- छत्तों के लिए स्थानान्तरण की व्यवस्था करना भी बहुत ज्यादा जरुरी है, क्योंकि मधुमक्खी को शहद के लिए मुख्य रूप से वर्ष में दो बार फूलों वाले क्षेत्रों में ले जाने की जरुरत पड़ती है।
- मधुमक्खियों के लिए मुख्यतः जीवित रहने और विकसित होने के लिए निरंतर ताजे और साफ पानी के सुर्ल्भ स्रोत की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है, इसलिए चिन्हाकीत किये हुए स्थान के आस पास प्राकृतिक या कृत्रिम जल का एक मुख्य स्रोत होना अत्यंत आवश्यक है।
शहद का निष्कासन तथा प्रसस्करण ( HONEY EXTRACTION AND HONEY PROCCESING )
हम बात करे मधुमक्खी पालन का मुख्य उद्देश्य की तो सभी जानते है कि मधुमक्खी पालन का मुख्य और अहम् उदेश्य तो शहद एवं मोम उत्पादन करना होता है। मधुमक्खी पालन के लिए बहुत ही महत्वपूण बात यह है कि हम शहद और मोम निष्कासन की मुख्य व्यवस्था और जानकारी दोनों रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है|
अगर हम बक्सों में स्थित छत्तों में 75-80 प्रतिशत कोष्ठों को मक्खियों द्वारा मुख्यतः मोमी टोपी से बंद कर दे और यदि उनसे शहद निकला जाता है, तो मुख्य रूप से इन बंद कोष्ठों से निकाला गया शहद परिपक्व होता है, और ये शहद का मूल्य भी बाजार में अच्छा मिलता है, और वही बात करे बिना मोमी टोपी से बंद कोष्ठों का शहद मुख्य रूप से अपरिपक्व होता है, जिनमें पानी की मात्रा अधिक होती है, और इसकी गुद्वत्ता और ये ज्यादा दिन तक नहीं रख सकते है | मधु निष्कासन का कार्य मुख्य रूप से साफ मौसम में दिन के समय में ही छत्तों के चुनाव से आरम्भ करके शाम तक शहद निष्कासन प्रक्रिया को समाप्त करना चाहिए वरना मक्खियाँ इस कार्य में बाधा उत्पन्न करती हैं।
शहद से भरे छत्तों को बक्से में रख देते है, और साथ में ही ऐसे सभी बक्सों को किसी कमरे या खेत में बड़ी मच्छरदानी के अंदर रखकर ही मधु निष्कासन करना चाहिए। अब मुख्यतः छीलन चाकू को गर्म पानी में डुबोकर एवं कपडे से पोंछकर काटते हुए मोम की टोपियाँ को मुख्य रूप से हटा देनी चाहिए। आमतौर पर छत्ते को शहद निकालने वाली मशीन में रखकर मुख्य रूप से यत्र को घुमाकर कर बारी-बारी से छत्तों को पलटकर मुख्य रूप से दोनों ओर से शहद निकाल लेना चाहिए |
शहद को मुख्य रूप से मशीन से निकालकर टंकी में लगभग 48 घंटे तक छोड़ देना चाहिए हैं। ऐसा करने पर मुख्यतः शहद में मिले हवा के बुलबुले तथा मोम इत्यादि शहद की ऊपरी सतह पर तथा मैली वस्तुए मुख्य रूप से पेंदी में बैठ जाती हैं| शहद को मुख्य रूप से पतले कपडे़ से छानकर स्वच्छ एवं सूखी बोतलों में भरकर रख लिया जाता है, और मुख्यतः बाजार बेचा जा सकता है।
मधुमक्खियों के रोग, कीट एवं उनका मुख्य प्रबंधन ( BEE DISEASES, PESTS AND THEIR MAIN MANAGEMENT )
अगर बात करे मधुमक्खियों के सफल प्रबंधन की मुख्य रूप से उनके लिए मधुमक्खी में लगने वाली बिमारियों और उनके शत्रुओं के बारे में एक सम्पूर्ण जानकारी होनी अति आवश्यक है, जिससे उनसे होने वाली क्षति को मुख्य रूप से बचाकर शहद उत्पादन और आय में बढ़ोत्तरी तथा मुनाफा कमाया जा सके। मधुमक्खियों में एक मुख्य माईल नामक बीमारी के रोकथाम के लिए आमतौर पर डिब्बे में दो कली लहसुन डालने से यह रोग नहीं होता है।
यूरोपियन फाउलबु्रड ( EUROPEAN FOULBROOD )
यह मुख्यतः जीवाणु मैलिसोकोकस प्ल्युटान से होने वाला एक संक्रामक विषाणु जनित रोग है। इसके रंग की बात करे तो पहले तो इसका रंग सफ़ेद होता है फिर धीरे-धीरे पिला और अंत में इसका रंग गहरा हो जाता है, और साथ ही साथ इनसे प्रौढ़ मक्खी भी नही निकलती है। अगर इस बीमारी की पहचान करना है तो हमे मुख्य रूप से एक माचिस की तिल्ली को लेकर उसे मरे हुए डिम्भक के शरीर में चुभोकर बाहर की ओर खींचने पर हमे मुख्य रूप से एक धान्गनुमा संरचना दिखाए देती है। यही एक मुख्य और सरल आधर है जिसकी सहायता से हम इस बीमारी की पहचान कर सकते है ।
रोकथाम (PREVENTION)
जो भी प्रभावित वंश है उन्हे मधु वाटिका से आमतौर पर अलग कर देना चाहिए और साथ ही साथ मुख्य रूप से प्रभावित मौन वंश को मुख्यतः रानी विहीन कर देना चाहिये, और कुछ महीनो बाद ही रानी देना चाहिये।आमतौर पर संक्रमित छत्तों को हटा देना चाहिए, और इसका बिकुल भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिय | अगर फिर भी चाहते है तो इसका अच्छा उपाय है कि उन्हें पिघलाकर मुख्य रूप से मोम बना देना चाहिए, और संक्रमित वंशो के रोकथाम के लिए मुख्य रूप से टेरामईसिन की 240 मि.लि.ग्रा. मात्रा प्रति 5 लिटर चीनी के घोल के साथ ही ओक्सीटेट्रासईक्लिन 3.25 मि.ग्रा. प्रति गैलन के अनुसार से देना चाहिये।
अमेरिकन फाउलबु्रड ( AMERICAN FOULBROOD )
यह भी मुख्य रूप से एक जीवाणु बैसिलस लारवी के द्वारा उत्त्पन होने वाला एक संक्रामक रोग है। जो आमतौर पर यूरोपियन फाउलवूड के ही समान होता है और यह बीमारी का प्रकोप प्रमुख रूप से कोष्ठक बंद होने के पहले ही लगती है जिसे परिणामस्वरूप कोष्ठक बंद ही नही होते और अगर यदि बंद भी हो जाते है तो मुख्य रूप से उनके ढक्कन में छिद्र देखे जा सकते है। इसके अंदर आप को मुख्यतः मरा हुआ डीम्भक भी देखा जा सकता है। जिससे कारण आपको सडी हुई मछली की तरह ही दुर्गन्ध आती है और इनका आक्रमण मुख्य रूप से गर्मियों में या उसके बाद होता है।
रोकथाम (PREVENTION)
प्रभावित वंशो का देख रेख मुख्य रूप से यूरोपियन फाउलबु्रड की तरह से किया जाता है |
नोसेमा रोग ( NOSEMA DISEASE )
यह आमतौर पर एक प्रोटोजवा नोसेमा एपिस से उत्पन्न रोग होता है इस बीमारी में मुख्य रूप से मधुमक्खियो की पहचान करने की व्यवस्था बिगड़ जाती है। संक्रमित मधुमक्खियाँ पराग के आलावा केवल मकरंद ही एकत्र करना पसंद करती है और मुख्य लक्षण संक्रमित रानी केवल नर सदस्य ही पैदा करती है और साथ ही कुछ समय बाद ही मर जाती है। इस संक्रमण की मुख्य पहचान जब मधुमक्खियों में पेचिस, थकान, रेंगने तथा बाहर समूह बनाने जैसे प्रमुख लक्षण दिखे तो समझ लेना चाहिए की रोग का प्रकोप हुआ है |
रोकथाम (PREVENTION)
इसका रोकथाम मुख्य रूप से फ्युमिजिलिन-बी का ०-5से 3 मि.ग्रा. मात्रा प्रति 100 मि.लि. घोल के साथ अच्छी तरह से मिला कर देना चाहिए। वाईसईकलो हेक्साईल अमोनियम प्युमिजिल भी ए मुख्य रूप से प्रभावकारी औषध है।
सैकब्रूड ( SACKBROOD )
यह रोग आमतौर पर भारतीय मौन प्रजातियों में मुख्य रूप से बहुतायात में पाया जाता है, इस रोग से ग्रसित सूडियों का रंग मुख्य रूप से सफेद धूल जैसा और अंत में सिर की ओर से काला होकर पूरा शरीर ही काला पड़ जाता है और यह मुख्यतः एक विषाणु जनित रोग है | रोग्रसित वंशों के कोष्ठको में डिम्भक मुख्यतः खुले अवस्था में ही मर जाते है और अंत में इसमें एक थैलिनुमा आकृति भी बन जाती है।
रोकथाम (PREVENTION)
बात करे इस रोग के बारे में तो एक बार इस बीमारी का प्रकोप होने के बाद इसकी रोकथाम करना बहुत कठिन हो जाती है, और मुख्य बात ये है कि इसका कोई कारगर उपोय भी नही है और संक्रमण होने पर ग्रसित वंशों को मुख्य रूप से मधु वाटिका से हटा देना चाहिए | टेरामईसिन की 250 मि. ग्रा. मात्रा प्रति 4 लिटर चीनी के घोल में अच्छी तरह से मिलकर खिलाया जाये तो रोग का नियंत्रण किया जा सकता है, और गंभीर रूप से प्रभावित वंशो को मुख्य रूप से नष्ट कर देना चाहिए।
ट्रोपीलेइलेप्स क्लेरी ( TROPYLEOPS CLARI )
यह मुख्य रूप से माईट जंगली मधुमक्खी या सारंग मौन का एक परजीवी है इसका प्रकोप मुख्यतः इटैलियन प्रजाति में भी होता है। संक्रमित वंश में प्युपा की अवस्था में बंद कोष्ठक में छिद्र भी पाई जा सकते है। कुछ प्यूपा तो मर भी जाते है आमतौर पर जिनको साफ कर दिया जाता है जिससे की कोष्ठक खाली हो जाते है तथा जो भी डिम्भक बच जाते है उनका विकास पूण रूप से विकृत हो जाता है। जैसे पंख, पैर या उदर का अपूर्ण विकास होना इसका एक मुख्य लक्षण माना जाता है।
रोकथाम (PREVENTION)
यह मुख्य रूप से एकेराईन बीमारी की तरह ही है और इसकी रोकथाम भी वैसे ही की जाती है।
वरोआ माईट ( VAROA MITE )
सबसे पहले यह माईट भारतीय मौन के प्रकाश में आई थी लेकिन बात करे अब की तो यह मेलिफेरा में भी पाई जाती है। इसका मुख्य रूप से आकार 1.2 से 1.6 मि.मी. है यह एक बाह्यपरजीवी है जो वक्ष और उदर के मध्य से मौन का रक्त चुसती है और साथ ही मादा माईट कोष्ठक बंद होने से पहले ही इसमें जाकर 2 से 9 अंडे देती है जिससे की 24 घंटे में शिशु लारवा निकलता है और 48 घंटे में यह मुख्य रूप से प्रोटोनिम्फ में बदल जाता है ।
रोकथाम (PREVENTION)
फार्मिक एसिड की 9 मि.लि. आमतौर पर प्रतिदिन तलपट में लगाने से इसका नियंत्रण हो जाता है।
मोमी पतंगा ( WOXY MOTH )
यह पतंगा मधुमक्खी वंश का एक बहुत बड़ा शत्रु है जो मधुमक्खी पालन में बाधा ऊत्पन्न करती है यह मुख्य रूप से छतो की मोम बिना किसी आकार का सुरंग बनाकर धीरे धीरे खाता रहता है जिसके कारण अंदर ही अंदर छत्ता पूरी तरह से खोखला हो जाता है। जिससे की मधुमक्खियाँ अपना छत्ता छोड़कर भाग जाती है इनके द्वारा बनाए गए सुरंगों के उपर टेढ़ी मेढ़ी मकड़ी के जाल जैसी ही संरचना को देखा जा सकता है। अगर इनके प्रकोप की आशंका हो रही है तो सबसे पहला काम छतो को मुख्य रूप से 5 मिनट के लिए तेज धुप में सुरक्षित रख देना चाहिये। जिससे की इनके ऊपर उपस्थित सभी मोमी पतंगा की सुंडियां बाहर आकार धुप में ही मर जाती है। ये एक आसान तरीका है जिससे सहायता से प्रकोप का आसानी से पता लगा लिया जाता है ।
रोकथाम (PREVENTION)
इसका प्रकोप मुख्यतः वर्ष के दिनों में प्रमुख रूप से तब लगता है जब कि मधुमक्खियो की संख्या कम हो जाती है और साथ ही जब भी मौन ग्रगो में आवश्कता से ज्यादा फ्रेम होते है तब भी इसके प्रकोप की संभावना बढ़ ही जाती है।
चींटियाँ ( ATNS )
इनका प्रकोप की बात करे तो मुख्य रूप से इनका प्रकोप गर्मी और वर्ष ऋतु में अधिक देखा जाता है अगर वंश कमजोर होता है तो इनका नुकसान भी बढ़ जाता है। इनसे बचाव के लिए एकदम आसन रोकथाम है स्टैंड के कटोरियों में पानी भरकर मुख्य रूप से उसमे कुछ बूंद की रोसिन आयल को भी डाल देनी चाहिए। जिससे की चींटियो को मौन गृहों पर चढ़ने से रोका जा सके।
मधुमक्खी पालन से प्रमुख लाभ ( MAJOR BENFITS OF BEEKEEPING )
फसल उत्पादन में वृद्धि ( INCREASING IN CROP PRODUCTION )
मधुमक्खी पालन के लाभ की बात करे तो इसका कृषि और गैर कृषि दोनों में बहुत ही लाभ है जैसे कि बात करे कृषि में तो ऐसी फसलें जिनमें पर परागण के माध्यम से निषेचन होता है, शस्य, उद्यानिकी वानिकी फसलों में पर परागण की मुख्य क्रिया मधुमक्खी द्वारा की जाती है जिसका की सीधा प्रभाव उत्पादन और मुनाफा पर होता है | इस वृधि के लिए की सान को अपने स्त्रोतों से की सी भी प्रकार का कोई निवेश नहीं करना पड़ता और इसके साथ ही साथ मधुमक्खी पालन से शहद और मोम उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है|
शहद या हनी का उत्पादन ( HONEY PRODUCTION )
मधुमक्खियां मुख्य रूप से संग्रहित पुष्प रस को परिवर्तित और परिशोधित करके अपने छत्ते की कोषों में संचय करती हैं, जिसे की मुख्य रूप से त्वरित गति से दोहन करना चाहिए| इसके शहद खण्ड के छत्ते की मधुमक्खियों को अच्छे तरह से शिशु खण्ड में झाड़ देते हैं जिससे की शहद खण्ड का छत्ता पूरी तरह से खाली हो जाता है|तद्पश्चात इन छत्तों को शहद निष्कासन मशीन में रखकर शहद पूरी तरह से निकाल लिया जाता है|
रायल जेली का उत्पादन ( PRODUCTION OF ROYAL JELLY )
रायल जेली की बात करे तो मुख्य रूप से एक प्रकृति का सबसे अधिकतम उच्च प्राकृतिक पौष्टिक पदार्थ है, जिसका नियमानुसार सेवन करने पर मनुष्य की आयु लम्बी होती है और इसके साथ ही साथ पुरूषार्थ भी कायम रहता है|
पराग या पोलन का उत्पादन ( POLLEN )
श्रमिक मधुमिक्खयां का मुख्य काम फूलों से पराग को लाना होता है, जिसे की पराग संग्रह यंत्र द्वारा आसानी से सफलतापूर्वक एकत्रित किया जाता है|
मौन विष का उत्पादन ( PRODUCTION OF SILENT VENOM )
मौना विष का उत्पादन मुख्य रूप से विष संग्रह यंत्र के माध्यम से किया जाता है| इस विष का उपयोग आमतौर पर गठिया जैसी बीमारियों में औषधि के रूप में किया जाता है|
मोम या बी वैक्स का उत्पादन ( PRODUCTION OF BEES WAX )
मोम का उत्पादन मुख्य रूप से मोम निष्कासन और मोम परिष्करण द्वारा किया जाता है| आमतौर पर यह शुद्ध और प्राकृतिक द्वारा उत्पादित मोम होता है, जिसका प्रमुख उपयोग कॉस्मेटिक सामग्री बनाने में किया जाता है और साथ ही साथ मधुमक्खी पालन के लिए मोमी आधार शीट को भी तैयार करने में किया जाता है|
मौन वंश उत्पादन ( SILENT LINEAGE PRODUCTION )
मौन वंश का वृद्धि करके और उसकी नर्सरी बना कर एक कुटीर उद्योग के रूप में मधुमक्खी पालन को स्थापित किया जा सकता है|
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न ( FAQ ):
प्रश्न- मधुमक्खी पालन में की तना खर्चा आता है?
उतर-मधुमक्खी पालन के खरचे की बात हम अपने आने वाले अगले ब्लॉग ( Business Plan of Bee Keeping ) में करेगे तो आपसे निवेदन है की हमारे अगले ब्लॉग को देखे जिसका लिंक निचे दिया गया है | (शुरुआती दौर में मुख्य रूप से पांच कलोनी (पांच बाक्स) से शुरू कर सकते है और एक मधुमक्खी पालन बॉक्स की कीमत की बात करे तो ये में लगभग में चार हजार रुपए का आता है तो अगर आप पांच ऐसे मधुमक्खी पालन बॉक्स लेंगे तो आपको बीस हजार रुपए का खर्चा आता है।
इनकी संख्या को बढ़ाने के लिए मुख्य रूप से समय समय पर इनका विभाजन कर सकते हैं। अगर ठीक से विभाजन से कर लिया तो आमतौर पर एक साल में 20000 हजार बक्से को तैयार की ए जा सकते हैं।
प्रश्न- मधुमक्खी पालन का सबसे अच्छा समय कौन सा है?
उतर- मधुमक्खी पालन के लिए मुख्यतः जनवरी से मार्च का महीना सबसे उपयुक्त है, लेकिन वाही बात करे नवंबर से फरवरी का समय तो आपको बता दे इस व्यवसाय के लिए वरदान साबित होता है, क्योकि आमतौर पर मधुमक्खियों को फूलों की ही आवश्यकता होती है जिसके माध्यम से वे मकरंद व पराग को एकत्रित करके शहद बनाती हैं।
प्रश्न- मधुमक्खी पालन के लिए कितनी जगह चाहिए?
उतर अगर हम महुम्क्खी पालन सोच रहे तो मधुमक्खियों की 100 से 200 पेटियां रखने के लिए मुख्य रूप से दो से ढाई हजार स्क्वायर फीट तक की जमीन उपयोगी होगी, और मुख्य रूप से मधुमक्खी की उस प्रजाति का चयन करें, जो आमतौर पर ज्यादा शहद उत्पादन करती हो।
प्रश्न-मधुमक्खी कौन से महीने में अंडा देती है?
उतर – सर्दियों के मौसम के दौरान, एक रानी मधुमक्खी एक छत्ते के अंदर मुख्यतः प्रत्येक कोशिका के भीतर अंडे देकर एक नई कॉलोनी का निर्माण करती है। निषेचित अंडे महिला कार्यकर्ता को मुख्य रूप से मधुमक्खियों में बदल जाएगा, जबकी अनिशेचित अंडे ड्रोन या शहद मधुमक्खी मुख्य रूप से नर बन जाएंगे।
प्रश्न-एपीकल्चर से आप क्या समझते हैं?
उतर –एपीकल्चर का मतलब मुख्यतः मधुमक्खी पालन, मधुमक्खियों का प्रबंधन और अध्ययन करना होता है. व्यावसायिक स्तर की बात करे तो शहद के उत्पादन और मोम के उत्पादन के मधुमक्खी पालन और उसकी देखभाल की जाती है।
प्रश्न- मधुमक्खी का वैज्ञानिक नाम क्या है?
उतर- मधुमक्खी का वैज्ञानिक नाम एपिस होता है।
प्रश्न- शहद क्या चीज का बनता है?
उतर- शहद मुख्य रूप से एक मीठा पदार्थ है जो की मधु-मक्खी और उसी प्रकार के फूलो के रस से बना होता है। शहद की मीठास की बात करे तो यह मोनोसैकेराईड्स- फ्रक्टोस और ग्लुकोस से मिल कर बनता है जिसकी मीठास तो लगभग शक्कर की तरह ही होती है (97% सुक्रोस की मीठास जो एक मुख्य रूप से डायसैकेराईड है)।
प्रश्न- मधुमक्खी पालन से आप क्या समझते हैं?
उतर- मौन पालन (मधुमक्खी पालन-Bee Keeping) की बात करे तो यह मुख्य रूप से शहद और मोम के उत्पादन के लिए मधुमक्खियों के छत्तों का रख-रखाव ही करना ही मधुमक्खी पालन अथवा मौन पालन (Bee keeping) कहलाता है।
प्रश्न-मधुमक्खी पालन से आप क्या समझते हैं हमारे जीवन में इसका आर्थिक महत्व क्या है?
उतर- मौन पालन (मधुमक्खी पालन-Bee Keeping) की बात करे तो यह मुख्य रूप से शहद और मोम के उत्पादन के लिए मधुमक्खियों के छत्तों का रख-रखाव ही करना ही मधुमक्खी पालन अथवा मौन पालन (Bee keeping) कहलाता है।मधुमक्खी पालन का हमारे दैनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है-
(1) शहद मुख्य रूप से एक उच्च पोषक महत्त्व का आहार है और साथ ही साथ इसका औषधियों में भी प्रयोग किया जाता है। ( 2) मधुमक्खियाँ मोम का भी उत्पादन करती हैं जिसका कांतिवर्धक वस्तुओं को तैयारी तथा विभिन्न प्रकार के पॉलिश और कॉस्मिक वाले उद्योगों में प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न-मधुमक्खी के छत्ते में कौन सा पदार्थ होता है और वह हमारे लिए किस प्रकार लाभदायक है?
उतर –मधुमक्खियां मुख्य रूप से अनेक उत्पाद जैसे शहद, मधुमक्खी का मोम, पराग, प्रापलिस, रॉयल जैली और विष इत्यादि उपलब्ध कराती हैं। छत्तों के विभिन्न उत्पादों के उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी यां मुख्य रूप से अब भारत में उपलब्ध हैं, तथापि इन्हें किसानों के खेतों में मानकीकृत करने की बहुत आवश्यकता है।