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भिंडी की खेती
भिंडी की खेती ( LADY FINGER CULTIVATION ) की बात कर तो किसान भाई चलिए आपको भिंडी से जुडी कुछ महत्वपूर्ण बिंदु और उसके चरणों पर चर्चा करते है | इस भिंडी की खेती की ब्लॉग को लिखने का मात्र उदेश्य यह है कि हम किसान भाई को अपने इस छोटे प्रयास से बेहतर और सटीक जानकारी दे सके |
भिंडी का वैज्ञानिक नाम Abelmoschus esculentus (L.) Moench होता है। भिंडी की कुल (LADY FINGER FAMILY) MALVACEAE होती है | भिंडी की खेती के लिए किसान कृषि वैज्ञानिकों की मदद से कई तरह की नई तकनीकों को अपना कर भिंडी की खेती कर मुनाफा कमा रहा हैं | भिंडी की खेती के लिए कई प्रकार की उन्नत किस्में ( IMPROVED VARIETIES ) भी विकसित हो चुकी हैं जिनसे किसान भिंडी की फसल से ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर सकते हैं |
जैसा की सभी जानते है भारत में किसान मौसम के अनुसार तरह-तरह की सब्जियों की खेती (Vegetable Farming) की जाती हैं | जिनमें से भिंडी (Bhindi) लोकप्रियता काफी है | भिंडी को सामान्य रूप से अंग्रेजी में लेडी फिंगर (Lady Finger) व ओकरा (Okra) के नाम से भी जाना जाता है | भिंडी को भारत में अनेकों नाम से जाना जाता है जैसे कि बात करे बनारस की तो आप सभी वाकिफ होगे तो वहाँ भिंडी को ‘राम तरोई’ नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ में ‘रामकलीय’ के नाम से जानते हैं। बंगला में भिंडी को स्वनाम ख्यात फलशाक, मराठी में ‘भेंडी’, गुजराती में ‘भींडा’, फारसी में ‘वामिया’ कहते हैं।
भिण्डी मुख्य रूप से ग्राीष्मकालीन और वर्षाकालीन फसल है। भिण्डी के उत्पादन में भारत का सम्पूर्ण विश्व में स्थान प्रथम है। आमतौर पर भारत में लगभग सभी राज्यों में भिंडी की खेती की जाती है। प्रमुख भिंडी उत्पादक राज्यों में उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और असम प्रमुख राज्य है।
भिंडी स्वास्थय के लिए बहुत फायदेमंद है और साथ ही साथ भिंडी में कई प्रकार के पोष्टिक तत्व और प्रोटीन मौजुद होते है। भिण्ड़ी में विटामिन ए, बी तथा सी, प्रोटिन, वसा, रेशा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, लौह, मैग्नेशियम और तांबा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
भिण्डी के सूखे हुए फल के अन्दर 13 से 20 % तेल की मात्रा और 20 से 24 % प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। तो ऐसे में आज हम आपको बतायेंगे कि भिंडी की खेती करने के लिए क्या- क्या जरुरी कदम हैं | इस ब्लॉग के जरिये आप लाल भिंडी की खेती , हाइब्रिड भिंडी की खेती , भिन्डी की खेती ( LADY FINGER CULTIVATION ), भिंडी की खेती का समय, भिंडी की खेती कब करें, बरसाती भिंडी की खेती, अक्टूबर महीने में भिंडी की खेती ,गर्मियों में भिंडी की खेती कैसे करें , भिंडी की खेती से कमाई , भिंडी की किस्म , हाइब्रिड भिंडी का बीज,उपयुक्त जलवायु, उपयुक्त भूमि , खेत की तैयारी , उन्नत किस्में , निराई-गुड़ाई , बीज और बीजोपचार , रोग नियंत्रण, बुवाई, सिंचाई, तोड़ाई और उपज के बारे में नीचे दिए लेख में विस्तारपूर्वक से जान सकते हैं|
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भिंडी की खेती के लिए जलवायु व तापमान ( CLIMATE AND TEMPERATURE FOR LADY FINGER CULTIVATION )
लाल भिंडी की खेती वर्ष में दो बार की जा सकती है। फ़रवरी-मार्च व जून-जुलाई में आप लाल भिंडी की खेती कर सकते हैं। गर्म और कम आद्र जलवायु इसकी की खेती के लिए अनुकूल होती है। लाल भिंडी के पौधों के विकास के लिए 5-6 घंटे की धुप आवश्यक होती है और साथ ही इसे ज्यादा पानी की आवश्यकता भी नहीं होती।
भिंडी की खेती कब करें ( WHEN TO CULTIVATE OKARA OR LADY FINGER )
भिंडी की खेती शुरू करने से पहले हमे ये जानना बहुत जरुरी होता है कि इसकी बुवाई कब करे तो किसान भाइयो आपके जानकारी के लिए बता दे की भिंडी ग्रीष्मकालीन और वर्षाकालीन दोनों में लगाने वाली फसल है | अगर भिंडी की बुवाई ग्रीष्मकालीन में करे तो फरवरी-मार्च और वर्षाकालीन में जून-जुलाई में की जाती है। अगर किसी किसान भाई को भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुवाई कर सकते है।
भिंडी की खेती के लिए भूमि व खेत की तैयारी ( LAND PREPARATION FOR LADY FINGER CULTIVATION )
भिंडी के खेती के लिए दीर्घ अवधि का गर्म व नम वातावरण को श्रेष्ठ माना जाता है। भिंडी के बीज उगने के लिये आमतौर पर 27-30 डिग्री सेग्रे तापमान उपयुक्त होता है और 17 डिग्री सें.ग्रे से कम पर बीज अंकुरित नहीं होता। भिंडी की खेती ग्रीष्म तथा खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में की जाती है। भिंडी को उचित जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में लगाया जा सकता है। भिंडी के लिए भूमि का पी0 एच मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है। भिंडी के लिए भूमि की जुताई के 4 सप्ताह पहले खेत में 20-30 टन गोबर की खाद अवश्य डालनी चाहिए और साथ ही साथ भूमि की मुख्य रूप से दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए |
भिंडी की उत्तम किस्में ( IMPROVED VARIETIES OF LADY FINGER )
पूसा ए –4 ( PUSA A- 4)
- पूसा ए-4 भिंडी की एक उन्नत किस्म है।
- भिंडी की यह प्रजाति 1995 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,नई दिल्ली द्वारा विकशित की गई हैं।
- भिंडी की इस किस्म एफिड तथा जैसिड ( APHID AND JASSID ) के प्रति सहनशील हैं।
- ये किस्म पीतरोग यैलो वेन मोजैक विषाणु ( YELLOW VEIN MOSAIC VIRUS ) रोधी है।
- इस किस्म की भिंडी का फल मध्यम आकार के गहरे, कम लस वाले, 12-15 सेमी लंबे तथा आकर्षक होते है।
- इस किस्म की खास विशेषता यह है कि बोने के लगभग 15 दिन बाद से ही भिंडी में फल आना शुरू हो जाते है तथा पहली तुडाई 45 दिनों बाद शुरू हो जाती हैं।
- औसत पैदावार ग्रीष्म में 10 टन व खरीफ में 15 टन प्रति है० है।
परभनी क्रांति ( PARBHANI KRANTI )
- यह भिंडी की किस्म पीत-रोग रोधी ( ANTI YELLOW DISEASE ) है।
- यह प्रजाति 1985 में मराठवाडा कृषि विश्वविद्यालय, परभनी द्वारा विकशित की गई हैं।
- भिंडी की इस किस्म में फल बुआई के लगभग 50 दिन बाद आना शुरू हो जाते है।
- इस किस्म के भिंडी के फल गहरे हरे एवं 15-18 सें०मी० लम्बे होते है।
- इसमें भिंडी की पैदावार 9-12 टन प्रति है० है।
पंजाब –7 ( PUNJAB-7 )
भिंडी की ये किस्म भी पीतरोग रोधी ( ANTI YELLOW DISEASE ) है। यह किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा निकाली गई हैं। इस किस्म के फल हरे एवं मध्यम आकार के होते है। इस किस्म की विशेषता यह है कि बुआई के लगभग 55 दिन बाद फल आने शुरू हो जाते है। इस किस्म की पैदावार 8-12 टन प्रति है० है।
अर्का अभय ( ARKA ABHAY )
- भिंडी की यह किस्म भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा विकशित की गई हैं।
- यह भिंडी की किस्म येलोवेन मोजेक विषाणु ( YELLOW VEIN MOSAIC VIRUS ) रोग रोधी है।
- यह भिंडी की किस्म के पौधे ऊँचे 120-150 सेमी सीधे तथा अच्छी शाखा युक्त होते हैं।
अर्का अनामिका ( ARKA ANAMIKA )
- यह भिंडी की किस्म भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा विकशित की गई हैं।
- यह किस्म येलोवेन मोजेक विषाणु रोग ( YELLOW VEIN MOSAIC VIRUS ) रोधी है।
- इस किस्म के पौधे ऊँचे 120-150 सेमी सीधे व अच्छी शाखा युक्त होते हैं।
- इस किस्म की विशेषता यह है कि इसके फल रोमरहित मुलायम गहरे हरे तथा 5-6 धारियों वाले होते हैं।
- इस किस्म के फलों का डंठल लम्बा होने के कारण तोड़ने में सुविधा होती हैं।
- इस किस्म को दोनों ऋतुओं में उगाईं जा सकती हैं।
- इसकी पैदावार 12-15 टन प्रति है० हो जाती हैं।
वर्षा उपहार ( VARSHA UPHAR )
- यह किस्म चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा विकशित की गई हैं।
- भिंडी की यह किस्म येलोवेन मोजेक विषाणु ( YELLOW VEIN MOSAIC VIRUS ) रोग रोधी है।
- इस किस्म के पौधे मध्यम ऊँचाई 90-120 सेमी तथा इंटरनोड़ पासपास होते हैं।
- इस किस्म के पौधे में 2-3 शाखाएं प्रत्येक नोड़ से निकलती हैं।
- भिंडी की इस किस्म की पत्तियों का रंग गहरा हरा, निचली पत्तियां चौड़ी व छोटे छोटे लोब्स वाली एवं ऊपरी पत्तियां बडे लोब्स वाली होती हैं।
- इस किस्म की विशेषता यह है कि वर्षा ऋतु में 40 दिनों में फूल निकलना शुरू हो जाते हैं और इनके फल 7 दिनों बाद तोड़े जा सकते हैं।
- इस किस्म के फल चौथी पांचवी गठियों से पैदा होते हैं और साथ ही इसका औसत पैदावार 9-10 टन प्रति है० होती हैं।
- इस किस्म के साथ आप भिंडी की खेती ग्रीष्म ऋतु में भी कर सकते हैं।
हिसार उन्नत ( HISAAR UNNAT )
- यह किस्म चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा विकशित की गई हैं।
- इसके पौधे मध्यम ऊँचाई 90-120 सेमी तथा इंटरनोड़ पासपास होते हैं।
- इस किस्म के पौधे में 3-4 शाखाएं प्रत्येक नोड़ से निकलती हैं और इस किस्म की पत्तियों का रंग हरा होता हैं।
- इस किस्म की पहली तुड़ाई 46-47 दिनों बाद शुरू हो जाती हैं।
- भिंडी की इस किस्म की औसत पैदावार 12-13 टन प्रति है० होती हैं।
- इस किस्म के फल 15-16 सें०मी० लम्बे हरे तथा आकर्षक होते है।
- इस किस्म को वर्षा तथा गर्मियों दोनों समय में उगा सकते हैं।
वी.आर.ओ. -6 ( V.R.O.-6 )
- भिंडी की इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है।
- यह भिंडी की किस्म भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान,वाराणसी द्वारा 2003 में विकशित की गई हैं।
- यह किस्म येलोवेन मोजेक विषाणु ( YELLOW VEIN MOSAIC VIRUS ) रोग रोधी है।
- इस किस्म की पौधे की औसतन ऊँचाई वर्षा ऋतु में 175 सेमी तथा गर्मी में 130 सेमी होती है।
- इसमें इंटरनोड़ पासपास होते हैं।
- इस किस्म की औसतन 38 वें दिन फूल निकलना शुरू हो जाते हैं ।
- इस किस्म का गर्मी में औसत पैदावार 13.5 टन एवं बरसात में 18.0 टन प्रति है० तक ली जा सकती है।
पूसा-4 ( PUSA-4 )
यह भिण्ड़ी की उन्नत किस्म है। यह भिंडी की किस्म भा0 कृ0 अ0 सं0 नई दिल्ली द्वारा विकशित की गई हैं। यह पितरोग येलोवेन मोजोइक ( YELLOW VEIN MOSAIC VIRUS ) रोधी होती है। इस किस्म के फल मध्यम आकार के गहरे कम लेस वाले तथा आर्कषक होते है। भिंडी की बिजाई के लगभग 15 दिन के बाद से फल आना शुरु हो जाता है और इसकी औसत पैदावार 10-15 टन प्रति हक्टेयर है।
भिंडी की खेती के लिए बीज की मात्रा व बुआई का तरीका ( SEED QUANTITY AND METHOD OF SOWING FOR LADY FINGER CULTIVATION )
- भिंडी की खेती के लिए सिंचित अवस्था ( IRRIGATED CONDITION ) में 2.5 से 3 कि०ग्रा० तथा असिंचित ( UNIRRIGATED ) दशा में 5-7 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर बीज की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों ( HYBRID SEED ) के लिए बीज दर 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर पर्याप्त होती है।
- भिंडी की खेती के लिए आमतौर पर भिंडी के बीज को सीधे खेत में ही बोते है। भिंडी का बीज बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिये 2-3 बार जुताई करनी चाहिए।
- वर्षाकालीन भिंडी के खेती में कतार से कतार दूरी लगभग 40-45 सें.मी. एवं कतारों में पौधे की बीच 25-30 सें.मी. का अंतर रखना बहुत उचित रहता है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की खेती की बुवाई कतारों में ही करनी चाहिए जिसमे कतार से कतार की दूरी 25-30 सें.मी. एवं कतार में पौधे से पौधे के मध्य दूरी 15-20 से.मी. रखनी चाहिए।
- बीज की बुवाई की गहराई 2 से 3 सें०मी० करनी चाहिए। भिंडी के बीजों को मुख्य रूप से पहले 3 ग्राम मेन्कोजेब कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करे उसके बाद ही खेत में बीज की बूवाई करे | भिन्डी के बीज को शीघ्र अंकुरित करने के लिए बिजाई करने से पहले 12-15 घण्टे तक पानी में भिगोना चाहिए और उसे एक घंटा छाया में सुखा ले।
खेत को उचित आकार की पट्टियों में बांट लें जिससे कि आपको सिंचाई करने में सुविधा हो। उठी हुई क्यारियों में भिण्डी की बुवाई आपको वर्षा ऋतु में जल भराव से बचाव हेतु उचित रहता है।
भिंडी की फसल में खाद एवं उर्वरक की मात्रा ( AMOUNT OF MANURE AND FERTILIZER IN THE LADY FINGER )
प्रति हेक्टेयर की दर से-
1. गोबर की खाद की बात करे तो 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टयर |
2. निट्रोजन (NITROGEN) की मात्रा 60 किग्रा.प्रति हेक्टयर |
3. सल्फर (SULPHUR) की मात्रा 30 किग्रा प्रति हेक्टयर | .
4. पोटास (POTASH) की मात्रा 50 किग्रा.प्रति हेक्टेयर |
भिंडी की खेती में खाद एवं उर्वरक का उपयोग का तरीका ( METHOD OF USE OF MANURE AND FERTILIZER IN THE CULTIVATION OF LADY FINGER )
भिंडी की खेती के लिये सबसे पहले खेत की साफ सफाई करके लगभग 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की उच्च गुणवत्ता की पकी हुए खाद खेत में अच्छी तरह से मिला लेनी चाहिए।
नाइट्रोजन खाद को तीन हिस्सों में बाँट ले अब पहले हिस्से को तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को बुवाई के पूर्व मिटी में मिला दें। इसके बाद नाइट्रोजन के दुसरे तथा तीसरे हिस्से की मात्रा को दो बार खड़ी फसल में एक समान रुप से डाल दें।
भिण्डी की खेती के लिए सिंचाई ( IRRRIGATION FOR LADY FINGER CULTIVATION )
भिंडी की खेती के लिए सबसे पहले खेत का पलेवा करके या बिजाई से पहले एक बार खेत को अच्छे से सिंचाई अवश्य कर दें। जिससे की भूमि में नमी अधिक हो जाती है और यही कारण से बीज का जमाव अधिक होता है। वर्षा ऋतु में भिण्डी की बिजाई के पश्चात् भिंडी में पानी की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए।
भिण्डी की खेती के लिए निराई व गुड़ाई ( WEEDING AND HOEING FOR LADY FINGER CULTIVATION )
भिंडी की खेती के लिए नियमित निंदाई-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बीज की बुवाई के 15-20 दिन बाद पहला निंदाई-गुड़ाई करना बहुत ही जरुरी रहता है क्योंकि इसका सीधा प्रभाव उत्पादन पर पड़ता है | खरपतवार नियंत्रण हेतु आप रासायनिक कीटनाशकों का भी प्रयोग कर सकते है। खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन के 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है |
हाइब्रिड भिंडी की खेती ( HYBRID LADY FINGER CULTIVATION )
सब्जियों या अनाजो की अच्छी पैदावार और गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए हाइब्रिड एग्रीकल्चर को बड़े जोरो सोरो से प्रोत्साहित किया जा रहा है। हाइब्रिड भिंडी की खेती से जिले के उन छोटे-छोटे किसानों को लाभ पहुंचेगा जो सामान्य तौर पर महंगे हाइब्रिड बीज, खाद और दवा नहीं खरीद सकते हैं। उद्यान निरीक्षक ने बताया गया कि परंपरागत खेती की तुलना में हाइब्रिड खेती से 3 गुना ज्यादा सब्जियों की पैदावार में इजाफा होता है। सब्जियों की गुद्वात्ता भी बेहतर होती है | जिसकी वजह से बाजार में इसका मूल्य भी अच्छे मिलता है। हाइब्रिड बीज से तैयार होने वाली सब्जियों के पौधों में रोग नहीं लगते हैं।
हाइब्रिड भिंडी की फसल से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए किसानों को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिकतम उपज वाली किस्मों का चयन करना जरूरी है | हमारे देश में भिंडी की खेती फ़रवरी-मार्च व जून-जुलाई में की जाती है| अधिक कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उत्पादन तथा मौसम की भिंडी की उपज प्राप्त करने के लिए संकर भिंडी की किस्मों का विकास किया गया हैं। इन किस्में की विशेषता यह है कि ये येलो वेन मोजैक वाइरस रोग को सहन करने की अधिक क्षमता रखती हैं।
- एचबीएच-142
- टी-20
- इंद्रनील
- परमिल
- हिसार नवीन
- वर्षा उपहार किस्म
- लीजा वैरायटी
लाल भिंडी की खेती ( RED LADY FINGER CULTIVATION )
जैसा की आप सभी जानते है बाज़ार में हरी भिंडी की मांग हमेशा बनी रहती है | इसके साथ ही साथ अब लोग लाल भिंडी (Red Okra) की ओर आकर्षित हो रहे हैं। क्यूंकि हरी भिंडी के मुकाबले लाल भिंडी में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है। किसान भिंडी की इस नई किस्म की खेती कर बाज़ार से अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं। लेकिन बहुत ऐसे किसान हैं जो जानते ही नहीं लाल भिंडी की खेती कैसे की जाती है। इस ब्लॉग को पूरा पढ़ने के बाद आप काशी लालिमा की खेती से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर पाएंगे।
लाल भिंडी को उत्तरप्रदेश के वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने उगाया और वे ऐसा करने में कामयाब हुए। लाल भिंडी का नाम काशी लालिमा रखा गया। बाजार में लाल भिंडी की बीज उपलब्ध होने के बाद से यह मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में किसानों ने इसकी खेती करना भी शुरू कर दिया है।
अक्टूबर महीने में भिंडी की खेती ( LADY FINGER CULTIVATION IN OCTOBER )
भारत में खेती के हिसाब की बात करे तो रबी के लिए अक्टूबर का महीना बहुत ही महत्वपूर्ण है। अक्टुबर महीने में खरीफ फसलों की कटाई हो जाती है और इसके बाद रबी फसलों की बुवाई शुरू हो जाती है। रबी महीने में भिंडी को 1 अक्टूबर से 30 नवंबर के बीच में बुआई कर देना चाहिए | इसकी फसल अवधि 45 से 70 दिन की होती है और इसके लिए भी हमे आम भिंडी की तरह ही खेत की तयारी से लेकर सिचाई और खाद एक तरह ही देना होता है | अगर किसान अपने खेत की मिट्टी, पानी की उपलब्धता, इलाके का मौसम ध्यान में रखकर खेती का कार्य करें तो ज्यादा मुनाफा कमा सकता है।
भिंडी की फसल की तोड़ाई ( LADY FINGER HARVESTING )
भिंडी के फलों की तुड़ाई (okra plucking) उसकी किस्म पर निर्भर करती है | वैसे अगर बात करे तो इसकी तुड़ाई लगभग 45 से 60 दिनों में शुरू कर देनी चाहिए | ध्यान दें कि इसकी 4 से 5 दिनों के अंतराल पर रोजाना तुड़ाई करें |
भिंडी की खेती से उपज ( CROP YIELD OF LADY FINGER CULTIVATION )
अगर किसान भाई भिंडी की खेती उन्नत किस्मों (Improved varieties of lady finger cultivation) के साथ ही साथ अच्छी देखभाल करते हैं तो आपको बता दे भिंडी की खेती से प्रति हेक्टेयर लगभग 120 से 170 क्विंटल उपज (Yield) मिल सकता हैं और आप सभी जानते है कि इसकी कीमत बाजार में भी अच्छी ही मिलती है| अब आपको कुछ विशेष बिंदु का भरपूर और विशेषरूप से ध्यान देना होगा कि सस्ते और जहरीले रासायनिकों का इस्तेमाल खेतों में न किया जाए |
भिंडी में बीमारियां व उनकी रोकथाम ( LADY FINGER DISEASES AND THEIR PREVENTION )
भिंडी में लगाने वाले सस्कोस्पोरा झुलसा ( SUSCOSPORA BLIGHT )
भिंडी की खेती ( Bhindi Ki Kheti ) की बात करे तो इसमें झुलसा सबसे अधिक नुक़सान पहुँचाता है। इस रोग का सबसे मुख्य लक्षण यह है कि इसके कारण फलों की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है और भिण्डी के पत्तो पर विभिन्न प्रकार के लम्बूतरे धब्बे (LONG SPOTS ) उभर आते हैं और इतना ही नहीं पत्ते किनारों से मुड़ जाते है।
रोकथाम ( PREVENTION )
भिंडी में इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर डायथेन एम-45 (0.25%) 250 ग्राम दवाई का 200-300 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें और 15 दिनों के बाद फिर से उसी दवा का घोल बनाकर छिड़काव करे।
भिंडी में लगाने वाला पीला रोग ( YELLOW MOSAIC )
इस बीमारी में भिण्डी के पत्तो पर मुख्यतः पीली रंग की चितकबरी, प्यालेनुमा,धारियां पड़ जाती है और उसके बाद पूरा पत्ता का रंग पीला हो जाता है | जिसके फलस्वरूप भिंडी के फल का रंग भी धीरे-धीरे पीला हो जाता है | जिससे की फल कम लगने लगते है | भिंडी की फसल के लिए यह सबसे खतरनाक बीमारी है |
रोकथाम ( PREVENTION )
इस रोग से बचाव के लिए रोग प्रतिरोधी क्षमता वाली किस्म की बिजाई करनी चाहिए। उदाहरण के लिए हिसार उन्नत या पी-8, पी-7 । सबसे महत्वपूर्ण बात ध्यान देने योग यह है कि भिंडी के जिस भी पौधे में यह रोग लगा हो या किसी पौधे में इसके लक्षण दिखाई दे | तो सबसे पहला काम उस भिंडी के पौधो को खेत से निकाल कर भूमि के अन्दर दबा दे तथा जो भी प्रभावित पौधे है उनसे से बीज न लें।
भिंडी का पौधा और जड़ का गलन ( PLANT AND ROOT ROT )
इस रोग में मुख्यतः भिंडी का पौधा उगते समय भूमि की सतह से गल जाते है | यह रोग भिंडी की उत्पादन पर सीधा प्रभाव डालती है इसलिए इस रोग की रोकथाम करना बेहद ज़रूरी है |
रोकथाम ( PREVENTION )
रोगथाम के लिए बीज को 2.5 ग्राम बाविस्टिन प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करने के बाद ही बोना चाहिए और सबसे सरल तरीका आप बीमार पौधों को खेत से निकालते रहें |
भिंडी में लगाने वाले चूर्णिल आसिता ( POWDERY MILDEW )
इस रोग का मुख्य लक्षण भिंडी की पुरानी निचली पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त हल्के पीले धब्बे दिखाई देते है। ये सफेद चूर्ण वाले धब्बे पत्तो से पौधो तथा फल पर काफी तेजी से फैलते है | इस रोग का नियंत्रण करना बेहद जरुरी होता है क्योंकि अगर रोकथाम नहीं किया गया तो पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो सकती है |
रोकथाम ( PREVENTION )
इस रोग के नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा अथवा हेक्साकोनोजोल 5 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 2 या 3 बार 12-15 दिनों के अंतराल पर छिडकाव करना चाहिए।
भिंडी में लगाने वाले हानिकारक कीड़े व रोकथाम के उपाय ( HARMFUL INSECTS AND PREVENTION MEASURES OF LADY FINGER )
भिंडी में लगाने वाले फली छेदक सुण्डियां (POD BORER )
फली छेदक सुण्डियां भिंडी के पौधो के कलियों के पास के स्थान पर , टहनियों तथा पत्ताों में छेद करती है उसके बाद यह भिंडी के फल में सुराख करके फल को पूरी तरह से नुकसान पहुंचाती है | जिसका सीधा प्रभाव किसान को उचित मूल्य ना मिलना और उसको हानि होना होता है | इस कीट का प्रकोप मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में अधिक होता है। इल्ली प्रारंभिक अवस्था में कोमल तने में छेद करती है | जिससे की तना सूख जाता है। फूलों पर इसके आक्रमण से फल लगने के पूर्व ही इसके फुल गिर जाते है |
रोकथाम ( PREVENTION )
रोकथाम के लिए क्विनॉलफॉस 25 प्रतिशत ई.सी., क्लोरपाइरोफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. अथवा प्रोफेनफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. की 2.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी के मान से छिडकाव करें और आवयकतानुसार छिडकाव को दुबारा दोहराएं।
भिंडी में लगाने वाले सफेद मक्खी ( WHITE FLY )
सफेद मक्खी के व्यस्क कीट पौधों की पतियों की निचली सतह पर चिपके रहने के कारण ये वही से रस चूसना आरम्भ करते है जिसके वहज से पौधे की पत्तिायों में पीला सिरारोग ( YELLOW MOSAIC VIIRUS IN LADY FINGER ) रोग फैल जाता है। सफ़ेद मक्खी सूक्ष्म आकार के कीट पत्तियों, कोमल तने एवं फल से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते है। यह रोग भिण्डी में विषाणु के द्वारा और वर्षा ऋतु में फैलता है।
रोकथाम ( PREVENTION )
सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए 300-500 मि0ली0 मैलाथियान 50 ई0सी0 नामक दवाई को 200-300 लीटर पानी में अच्छी तरह घोलकर एक एकड़ भूमि में छिड़काव कराना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर इसी विधि को 15 दिन के बाद दोबारा दोहराएं।
भिंडी में लगाने वाले हरा तेला (GREEN LEAF HOPPER )
हरा तेला षिषु व व्यस्क कीट पत्तियों के नीचे की सतह से कोशिकाओ के रस को चूस लेते है | जिसके वजह से पत्तियों की उपरी सतह छोटे-छोटे हल्के पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं और साथ ही साथ पत्तो ऊपर की तरफ मुड़ने लग जाते है और पीले होकर झड़ जाते है।
रोकथाम ( PREVENTION )
भिण्डी की फसल को तेले से बचाने के लिए मेलाथियान 0.05% (100 मि0ली0 साईथियान/मैलाथियॉन/मासथियॉन 50 ई0सी0) दवाई को 150 से 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए ।
भिंडी में लगाने वाले लालमाईट ( RED MITE )
लालमाईट की बात करे तो यह एक लाल रंग का कीट है। इस कीट के षिषु तथा व्यस्क पत्तो के नीचे की सतह से पूरा रस चूसते है। रस चूसने के वजह से ही पत्तो पर सफेद रंग के छोटे- छोटे आकार के धब्बे बन जाते है। यह कीट भिण्डी के पत्तो पर मकड़ी की तरह जाला बना देते है | इस कीट की संख्या अधिक होने के वजह से लाल माईट पतों की नोंक के ऊपर जमा हो जाती है।
रोकथाम ( PREVENTION )
इसकी रोकथाम हेतु डाइकोफॉल 18.5 ई. सी. की 2.0 मिली मात्रा प्रति लीटर अथवा घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें एवं आवश्यकतानुसार इस विधि को दोहराए ।
भिंडी के फायदे ( BENEFITS OF LADY FINGER )
- भिंडी की बात करे तो यह हमारे लिए बहुत उपयोगी है जैसे कि बालो को सुंदर घना, लंबा, काला बनाने के लिए हरी पतली भिंडी काफी कारगर है। भिंडी से निकलने वाला रेसा बालों को भूरा बनाता है।
- भिंडी खाने से बालो में खुजली, शुष्क बल और रूसी ख़त्म होते हैं और साथ ही साथ बेजान और घुंघराले बालों को सुरक्षा मिलती है।
- भिंडी खाने से आँखों की रोशनी बढ़ने के साथ ही साथ आँखों के नीचे से काले धब्बे हल्के होते हैं।
- भिंडी में एंटीऑक्सीडेंट, बीटा कैरोटीन, जेनथेन, ल्यूटिन और एक्सैथीन पाया जाता है। भिंडी में विटामिन ”A” और “C” प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
- इसमें पाए जाने वाला अघुलनशील फाइबर आंतों के मार्ग को साफ करता है।
- भिंडी मुख्य रूप से रक्त दूषित होने के खतरों को भी कम करता है। इसमें मौजूद उच्च एंटीऑक्सीडेंट हानिकारक मुक्त कणों से हमारे शरीर को सुरक्षा में मदद करता है। भिंडी रक्त में हीमोग्लोबिन का निर्माण करती है। अनीमिया से बचाती है।
- भिंडी में पाया जाने वाला विटामिन ”K” हड्डियों को मजबूत बनाने में भी सहयोगी होता है।
- भिंडी भ्रूण के मस्तिष्क विकास में भी एक अहम भूमिका निभाती है।
- भिंडी उच्च कोलेस्ट्रॉल को नियत्रित करने का कारगर उपाय है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न ( FAQs )
प्रश्न- भिंडी बोने के कितने दिन बाद पानी देना चाहिए ?
उतर- सिंचाई की बात करे तो मार्च में 10-12 दिन, अप्रैल में 7-8 दिन और मई-जून मे 4-5 दिन के अन्तर पर करें। बरसात में यदि बराबर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता आमतौर पर नहीं पडती है ।
प्रश्न- भिंडी का बीज कौन सा अच्छा होता है ?
उतर- भिंडी के बीज की बात करे तो आपको बता दे कोई भी बीज खराब नहीं होता है | बस कुछ बिंदु जो की अच्छे बीज की पहचान बताती है जैसे कि बीज की अकुरण, बीज की व्यवहार्यता और इनकी उत्पादन का अंतर होता है जैसे कि आज कल बाजार में उन्नत किस्म के बीज का मांग बढती जा रही है क्योंकि ये किस्म कम लागत में अच्छा मुनाफा के साथ-साथ इसकी उत्पादन क्षमता भी अधिक होती है |
1.पूसा ए -4 ( PUSA A- 4)
2.अर्का अभय ( ARKA ABHAY )
3.परभनी क्रांति ( PARBHANI KRANTI )
4.हिसार उन्नत( HISAAR UNNAT )
आपके जानकारी के लिये बता दे की भिंडी की उन्नत किस्म के बारे ऊपर ब्लॉग में चर्चा किया गया कृपया ब्लॉग को पूरा पढ़े |
प्रश्न- भिंडी का बीज कितने दिन में अंकुरित होता है ?
उतर- भिंडी केबीजों को अंकुरित होने में लगभग 6-8 दिन लग सकते है |
प्रश्न- भिंडी की खेती कब करें ?
उतर- ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई आमतौर पर फरवरी-मार्च में तथा वर्षाकालीन भिंडी की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है। यदि भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो आप मुख्य रूप से तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुवाई की जा सकती है।
प्रश्न- भिंडी की किस्म ?
उतर– भिंडी की उन्नत किस्मे
1. पूसा ए-4
2. परभनी क्रांति
3. पंजाब-7
4. अर्का अभय
5. वर्षा उपहार
6. हिसार उन्नत
7. वी.आर.ओ.-6
प्रश्न-गर्मी के मौसम में भिंडी की खेती कैसे करें ?
उतर- गर्मी में अधिक पसंद की जाने वाली भिंडी बुआई आमतौर पर फरवरी-मार्च समय में की जाती है। गर्मी में भिंडी को नकदी फसल माना जाता है। जिसके लिए कई उन्नत किस्म के बीज हैं और साथ नर्सरी तैयार करने में सावधानी बरतनी चाहिए। बुआई की भी सारी व्यवस्थाएं अभी कर लेनी चाहिए। अच्छे बीजों के चयन के साथ ही उसका उपचार कर बुआई करने से फसल में कीट और कीड़े लगने की सम्भावना भी कम रहती है। भिंडी की गर्मी की फसल से लगभग 50 क्विंटल और वर्षा की फसल से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज ली जा सकती है।
प्रश्न- 1 एकड़ में भिंडी का बीज कितना लगता है ?
उतर- भिंडी की खेती के लिए सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 कि०ग्रा० तथा असिंचित दशा में 5-7 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर बीज की आवश्यकता होती है। भिंडी की संकर किस्मों के लिए 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की बीजदर पर्याप्त होती है ।
प्रश्न- भिंडी की अगेती खेती कैसे करें ?
उतर- भिंडी की खेती के लिए ग्रीष्मकाल में अगेती खेती के लिए जनवरी के शुरुआत या तो मध्य में बूवाई कर मुनाफा कम सकता है | वर्षाऋतू में अगेती खेती के लिए मई के अंत में या तो शुरूआती जून में भिंडी की बूवाई कर सकता है | अगेती खेती में किसान को उत्पाद का अच्छा मूल्य मिल जाता है |
प्रश्न- भिंडी में कौन सा खाद डालना चाहिए ?
उतर- भिंडी में डाले जाने वाले खाद इस प्रकार है –
प्रति हेक्टेयर की दर से-
1. गोबर की खाद की बात करे तो 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टयर |
2. निट्रोजन (NITROGEN) की मात्रा 60 किग्रा.प्रति हेक्टयर |
3. सल्फर (SULPHUR) की मात्रा 30 किग्रा प्रति हेक्टयर |
4. पोटास (POTASH) की मात्रा 50 किग्रा.प्रति हेक्टेयर |
भिंडी की खेती के लिये सबसे पहले खेत की साफ सफाई करके लगभग 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की उच्च गुणवत्ता की पकी हुए खाद खेत में अच्छी तरह से मिला लेनी चाहिए।
नाइट्रोजन खाद को तीन हिस्सों में बाँट ले अब पहले हिस्से को तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को बुवाई के पूर्व मिटी में मिला दें। इसके बाद नाइट्रोजन के दुसरे तथा तीसरे हिस्से की मात्रा को दो बार खड़ी फसल में एक समान रुप से डाल दें।
प्रश्न- जनवरी में भिंडी की खेती कैसे करें ?
उतर- जनवरी के प्रथम सप्ताह में ही में अपने खेत में भिंडी के बीज अंकुरित करके बुवाई देना चाहिए । खाद-पानी की व्यवस्था बिलकुल आम भिंडी की फसलों की तरह ही करनी है। जल्दी बुआई करने से आपकी फसल मार्च में तैयार हो जाती है। उसे तोड़ने के बाद ही जून के महीने में भिंडी के पौधों को जड़ से चार-पांच इंच छोड़ कर उसकी कलम लगा दीजिये। कुछ दिनों के बाद ही बरसात शुरू हो जाती है और आपके कलम किए गए पौधों में फिर से कल्ले निकल आते हैं और साथ ही साथ दोबारा निकले हुए कल्लो में 40 से 45 दिनों में ही फल उगने लगते हैं। इस तरह आप एक बार ही बीज की बुआई करना है लेकिन आप दोबारा फसल काट सकते हैं। इससे आपकी खाद-पानी बीज की लागत आधे से कम होगी और आपको मुनाफा चार गुना हो सकता है।