जैविक खेती : एक नयी सोच | Organic Farming in Hindi

Organic Farming in Hindi
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जैविक खेती ( Organic Farming in Hindi )

जैविक खेती ( Organic Farming in Hindi ) के बारे में जानने से पहले कुछ तथ्य जैसा कि आप जानते है, भारत एक विशाल देश है। यहां की लगभग 60 से 70 प्रतिशत जनसंख्या अपनी जिम्मेदारियों तथा जीविका का निर्वहन के लिए कृषि कार्यों पर पूरी तरह से निर्भर है। हालाँकि हम ये कह सकते है कि आज से कुछ दशक पहले की खेती और वर्तमान में खेती करने की प्रक्रिया में एक बहुत बड़ा अंतर आया है जो बहुत जरुरी भी है, क्योंकि दिन प्रतिदिन जनसंख्या बढ़ने के वजह से लोग खेती के तरीके को बदल रहे।

अगर बात करे स्वतंत्रता से पूर्व भारत में की जाने वाली खेती की तो उस खेती को जैविक खेती कहते थे, क्योंकि इस खेती में किसी प्रकार के रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं किया गया था। लेकिन जैसा मैंने ऊपर के पक्तियां में बताया कि जनसँख्या विस्फोट के कारण अन्न की मांग बढ़ने लगी और धीरे-धीरे लोगो ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए रसायन विज्ञानों का प्रयोग करना शुरू कर दिया। जिसके कारण आज लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ का शिकार हो रहे हैं।

जैविक खेती क्या है, जैविक खेती किसे कहते हैं, जैविक खेती के प्रकार, जैविक या जैविक खेती कैसे करे, इसके बारे में आज हम यहां विस्तार से चर्चा करेंगे।

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जैविक खेती का विकास ( Introduction of Organic Farming )

आज बढ़ती हुई जनसंख्या एक बड़ी और गंभीर समस्या है। इसके लिए भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद्य उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करना। जिसके लिए आज छोटा या बड़ा किसान सब तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का भरपूर प्रयोग कर रहे, जो कि हमारे  प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान-प्रदान के चक्र को बहुत ज्यादा (इकालाजी सिस्टम) प्रभावित करता है। जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति दिन प्रतिदिन ख़राब हो रही है। इसके साथ ही साथ वातावरण प्रदूषित हो रहा, और इतना ही नहीं इसका सीधा प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी दिख रहा।

बात करे प्राचीन काल की खेती की तो इसमें मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे की आदान-प्रदान के चक्र ( Ecological system ) निरन्तर चलता रहा था। भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था। जिसके प्रमाण आप आज भी हमारे ग्रांथों में  प्रभु कृष्ण और बलराम जी है जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित व जानते है, अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से बहुत ज्यादा  लाभदायी था, जो कि न तो केवल प्राणी व वातावरण के लिए भी अत्यन्त उपयोगी था।

परन्तु आज के बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थो के चक्र का संतुलन दिन प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा है।जैविक खेती के लिए आप रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुध्द रहेगा और मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी स्वस्थ रहेंगे।

जैविक खेती ( Jaivik Kheti ) की बात करे तो ये एक ऐसी खेती की पद्धति है, जिसमें रसायनों, जीवाणुनाशकों तथा किटाणुनाशक जैसे रासायनिक का उपयोग मुख्य रूप से ना के बराबर होता है, और इसके परिणामस्वरूप यह स्वास्थ्यवर्धक, पर्यावरण के लिए अनुकूल है, जैसा की ऊपर के पंक्ति में आपको बताया गया है, और जैविक खेती की एक पुरानी तकनीक है। जैविक खेती में खेती के लिए प्राकृतिक तत्वों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि परिणामी विविधता, जल संरचना, स्थिति का पुनर्चक्रण, प्रतिक्रिया की आवश्यकताओं के अनुरूप सरोकार, आलोचनाओं का उपयोग और विविधता को बढ़ावा देना आदि।

जैविक खेती के लाभ बहुत विशाल हैं। इससे न केवल संबद्धता में वृद्धि होती है, बल्कि इससे पर्यावरण भी बना रहता है। जैविक खेती से प्राकृतिक संदेश को संरक्षित रखना संभव होता है, और संगत रूप से परिणाम को बढ़ावा मिलता है। आज अनेको बीमारियों और पर्यावरण को देखते हुए जैविक उत्पादों की मांग में काफी वृद्धि देखा जा सकता है। इसको देखते हुए कई राज्य में सरकार द्वारा आन्दोलन चलाकर जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे।

वर्ष 2001-2002 मध्यप्रदेश में सर्वप्रथम जैविक खेती को एक अभियान के रूप में प्रारम्भ किया गया। इसके अलावा प्रदेश के प्रत्येक जिले के प्रत्येक विकासखंड में 10 गाँव को जैविक खेती ( Organic Farming in Hindi ) हेतु चयनित किया गया जिन्हे जैविक गाँव ( Organic Village ) नाम दिया गया।

जैविक खेती ( Organic Farming ) को बढ़ावा देने हेतु राज्य सरकार ने वर्ष 2011 में मध्यप्रदेश जैविक कृषि नीति 2011 घोषित की है। जिसके परिणाम स्वरुप मध्यप्रदेश जैविक खेती को बढ़ावा देने के मामले में सिक्किम, कर्नाटक के बाद देश का तीसरा राज्य हो गया है।

मध्यप्रदेश में जैविक खेती के माध्यम से गेंहू, कपास, फल एवं सब्जियों आदि का अच्छा उत्पादन किया जा रहा है। देश में जैविक खेती का प्रामाणिक रकबा अब 2 लाख हेक्टेयर व उत्पादन 5 लाख मीट्रिक टन (देश का 40% ) हो गया है। इसके लिए मध्य प्रदेश को अप्रैल 2013 में बैंगलोर (कर्नाटक) में आयोजित एक कार्यक्रम में Organic Farming Excellence Award 2018 से भी सम्मानित किया गया।

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जैविक खेती का इतिहास ( History of Organic Farming )

जैविक खेती का इतिहास की बात करे तो आप सभी जानते है, इसका इतिहास बहुत पुराना है, और यह खेती प्राचीन समय से चलता आया है। प्राचीन समय में लोगों ने उच्च गुणवत्ता वाले फल और सब्जियों के उत्पादन के लिए मुख्य रूप से इसका उपयोग किया था। इसके अलावा, भी  शास्त्रों में भी जैविक खेती के बारे में उल्लेख मिलता है।

भारत के दार्शनिक और वैज्ञानिक जगत में, इसका प्रचलन बहुत ही पुराना है। आज भी धार्मिक और दार्शनिक शास्त्रों में भी जैविक खेती के बारे में उल्लेख मिलता है, और वेदों में जैविक खेती के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है।

अब बात करे आधुनिक युग में जैविक खेती की शुरुआत की तो ये 20वीं सदी में यूरोप और अमेरिका में हुई। 1920 के दशक में, गर्म युद्ध के बाद, विश्व भर में उत्पादन के लिए मुख्य रूप से रसायनों का उपयोग किया जाने लगा। जिसके कारण पर्यावरण भी प्रभावित होने लगा। इस विकृति को देखते हुए, 20वीं सदी के अंत में जैविक खेती को फिर से लाने की मांग दिन प्रतिदिन बढती जा रही है।

जैविक खेती को फिर से लाने की सबसे पहली शुरुआत शानदार आंदोलनों और उत्पादक संगठनों द्वारा की गई। यह आंदोलन काफी तेजी से फैलता रहा और 1970 और 1980 के दशक में इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई।

भारत में, जैविक खेती ( Organic Farming in Hindi ) की शुरुआत लगभग 1970 के दशक में हुई, तथा भारतीय सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई अन्य योजनाएं शुरू की हैं, जैसे खेती संबंधित संस्थाओं को फाइनेंस करने के लिए ऋण प्रदान करना, जैविक खेती को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को संचालित करना, जैविक उत्पादों को बेचने के लिए नए बाजार खोजना आदि।

जैसा कि सभी जानते है, जैविक खेती की लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। इसका लाभ और फायदा की बात के तो यह बहुत सारे लाभ प्रदान करती है, जैसे कि पृथ्वी के मूल्यवान मिट्टी की रक्षा, फसलों की उच्च गुणवत्ता को बनाये रखना और फसलो को बीमारियों से बचाना जैसे अनेक लाभ है।

जैविक खेती किसे कहते हैं या जैविक खेती क्या है ( What is Organic Farming )

जैसा कि मैंने पहले ऊपर की पंक्ति में जैविक खेती किसे कहते हैं या जैविक खेती क्या है के बारे में थोडा बता रखा है, कि ऑर्गेनिक खेती मुख्य रूप से फसल उत्पादन की एक प्राचीन पद्धति है और ( Organic Farming ) ऑर्गेनिक खेती को ही जैविक खेती भी कहते है।

यूरोपीय संसद ब्रुसेल्स के अधिनियम, 27 अप्रैल 2018, के तहत, जैविक खेती खेत के प्रबंधन और खाद्य उत्पादन की एक समग्र प्रणाली है, जोकि सबसे अच्छे पर्यावरणीय और जलवायु गतिविधि के अभ्यासों, उच्च स्तर की जैव विविधता, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, पशु कल्याण के उच्च मानकों के प्रयोग और प्राकृतिक पदार्थों और प्रक्रियाओं के प्रयोग से उत्पादित उत्पादों के लिए उपभोक्ताओं की बढ़ती हुई संख्या के मांग के अनुरूप उच्च उत्पादन मानक शामिल करती है।

जैविक खेती ( Organic Farming in Hindi ) में किसान, मुख्य रूप से अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में सभी इनपुट सीमित करने की और पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, जैविक किसान मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए ज्यादातर फसल चक्रीकरण पर निर्भर रहते हैं। वे मुख्य रूप से खेती के लिए निर्देशित मात्रा में जैविक खाद, और नाइट्रोजन बूस्टर के रूप में नाइट्रोजन-बाइंडिंग बैक्टीरिया का इस्तेमाल करते हैं।

जैविक खेती के सिद्धांत ( Principles of Organic Farming )

जैविक खेती के सिद्धांत
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जैविक के सिद्धांत इस प्रकार हैं:-

स्वस्थ होने का सिद्धांत  ( Principle of Being Healthy )

जैविक खेती ( Jaivik Kheti ) पृथ्वी, पौधों, जानवरों और लोगो की देखभाल का एक प्राचीन खेती है ताकि हर कोई  स्वस्थ रहे। यह सोचना महत्वपूर्ण है कि सब कुछ खेती से जुड़ा है ।

स्वास्थ्य ऐसी स्थितियां हैं, जो जीवन प्रणालियों की अखंडता और निरंतरता सुनिश्चित करती हैं। पारिस्थितिक संतुलन का संरक्षण। जैविक खेती का उद्देश्य उच्च पोषण मूल्य और गुणवत्ता का उत्पादन करना है। यह रासायनिक उर्वरकों और दवाओं के उपयोग से बचा जाता है जो स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करते हैं।

पारिस्थितिकी का सिद्धांत ( Theory of Ecology )

जैविक कृषि जीवित पारिस्थितिक प्रणालियों और चक्रों पर आधारित होनी चाहिए, उनके साथ काम करना ,अनुकरण करना और उन्हें बनाए रखने में मदद करनी चाहिए।

यह सिद्धांत जीवित पारिस्थितिक प्रणालियों के अंदर जैविक कृषि को एक मजबूत जड़ प्रदान करता है। इस सिद्धांत में कहा गया है, कि फसल का उत्पादन पारिस्थितिक प्रक्रियाओं और पुनर्चक्रण पर आधारित होता है ।उदाहरण के लिए, फसलों के मामले में यह जीवित मिट्टी है; जानवरों के लिए यह कृषि पारिस्थितिकी तंत्र है; मछली और समुद्री जीवों के लिए, जलीय पर्यावरण।

जैविक कृषि को कृषि प्रणालियों के डिजाइन, आवासों की स्थापना और आनुवंशिक और कृषि विविधता के रखरखाव के माध्यम से पारिस्थितिक संतुलन को प्राप्त करना चाहिए। जो लोग जैविक उत्पादों का उत्पादन, प्रक्रिया, व्यापार या उपभोग करते हैं, उन्हें परिदृश्य, जलवायु, आवास, जैव विविधता, हवा और पानी सहित सामान्य पर्यावरण की रक्षा और लाभ उठाना चाहिए।

निष्पक्षता का सिद्धांत ( Principle of Fairness )

जैविक कृषि को ऐसे संबंधों पर करना चाहिए। जो सामान्य पर्यावरण और जीवन के अवसरों के संबंध में निष्पक्षता सुनिश्चित करें।

यह सिद्धांत मुख्यतः इस बात पर ज्यादा जोर देता है, कि जैविक कृषि में शामिल लोगों को मानवीय संबंधों को इस तरह से संचालित करना चाहिए जो सभी स्तरों पर और सभी पक्षों – किसानों, श्रमिकों, प्रोसेसर, वितरकों, व्यापारियों और उपभोक्ताओं के लिए निष्पक्षता सुनिश्चित करे। जैविक कृषि से जुड़े सभी लोगों को जीवन की अच्छी गुणवत्ता प्रदान करनी चाहिए।इसका उद्देश्य अच्छी गुणवत्ता वाले भोजन और अन्य उत्पादों की पर्याप्त आपूर्ति का उत्पादन करना है।

यह सिद्धांत मुख्य रूप से जानवरों को जीवन की परिस्थितियों और अवसरों के साथ प्रदान करता है ।जो उनके शरीर विज्ञान, प्राकृतिक व्यवहार और कल्याण के लिए अनुरूप हों।

देखभाल का सिद्धांत ( Principle of Care )

वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों और पर्यावरण के स्वास्थ्य और भलाई की रक्षा के लिए जैविक कृषि को हिफाजत और जिम्मेदार तरीके से प्रबंधित करना बेहद जरुरी हो गया है।

जैविक कृषि एक जीवित और गतिशील प्रणाली है, जो आंतरिक और बाहरी मांगों और स्थितियों के प्रति प्रतिक्रिया करती है। जैविक कृषि के व्यवसायी दक्षता और उत्पादकता बढ़ा सकते हैं, लेकिन इससे स्वास्थ्य और कल्याण को खतरे में डालने का जोखिम नहीं होना चाहिए। नतीजतन, नई तकनीकों का आकलन करने और मौजूदा तरीकों की समीक्षा करने की आवश्यकता है। पारिस्थितिक तंत्र और कृषि की अधूरी समझ को देखते हुए सावधानी बरतनी चाहिए।

जैविक खेती के कुछ सामान्य उद्देश्य Some General Objectives of Organic Farming )

  • एग्रोकेमिकल अवशेषों से रहित, सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य पदार्थ का उत्पादन करना।
  • अच्छे प्रबंधन के माध्यम से पर्यावरण की संपूर्ण सुरक्षा (मिट्टी और जलीय जीवों की सुरक्षा, जैव विविधता का आश्वासन) करना।
  • ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों (जैसे पानी, मिट्टी, जैविक पदार्थ) का सतत प्रयोग करना।
  • उपजाऊपन और मिट्टी की जैविक गतिविधि का संरक्षण और वृद्धि करना।
  • हानिकारक रसायनों के खतरे से किसानों के स्वास्थ्य की रक्षा करना।
  • जैविक खेती की सहायता से जानवरों का स्वास्थ्य एवं कल्याण सुनिश्चित करना।

जैविक खेती के प्रकार ( Types of Organic Farming )

अगर जैविक खेती के प्रकार ( Types of Organic Farming ) की बात करे तो यह दो प्रकार की होती है। शुद्ध जैविक खेती और एकीकृत जैविक खेती। इन कृषि प्रक्रियाओं के अपने फायदे और नुकसान हैं। कुछ किसान शुद्ध जैविक खेती प्रक्रिया का उपयोग करना पसंद करते हैं, जबकि कुछ एकीकृत कृषि प्रक्रिया का विकल्प चुनते हैं।

शुद्ध जैविक खेती ( Pure Organic Farming )

इस खेती में मुख्य रूप से प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। शुद्ध जैविक खेती पूरी तरह से अकार्बनिक रसायनों पर निर्भर करती है। इस प्रक्रिया में, किसान जैविक खाद और प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त जैव-कीटनाशकों का उपयोग करते हैं- उदाहरण के लिए- अस्थि भोजन, रक्त भोजन, आदि।

एकीकृत जैविक खेती ( Integrated Organic Farming )

एकीकृत कृषि प्रक्रिया में पारिस्थितिक आवश्यकताओं को प्राप्त करने और आर्थिक मांगों को भी पूरा करने के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन और पोषक तत्वों का प्रबंधन शामिल है।

जैविक खेती के लाभ ( Advantage of Organic Farming )

किसान की दृष्टि से जैविक खेती के लाभ ( Benefits from Farmer Point of View) 

किसान की दृष्टि से बात करे तो इससे भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृध्दि हो जाती है। सिंचाई अंतराल में वृध्दि होती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है तथा फसलों की उत्पादकता में वृध्दि देखी जाती है। जैविक खेती ( Jaivik Kheti ) की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन देती है।

अर्थात जैविक खेती मुख्य रूप से  मृदा की उर्वरता एवं किसानो की उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णत: सहायक है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में ये विधि और भी अधिक लाभदायक है। जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है इसके साथ ही किसान भाइयों की आय अधिक हो जाती है तथा अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद गुणवत्ता में अधिक खरे उतरते हैं।

जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में कृषक भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन क्षेत्रीय उत्पादों के समर्थन से स्थानीय व्यवसाय को सहायता हर्बिसाइड और पेस्टीसाइड के स्थान पर जैबेटिक, जैविक रूप आदि का उपयोग किया जाता है।

मिट्टी की दृष्टि से जैविक खेती के लाभ ( Benefits from the Point of View of Soil )

अगर हम जैविक खेती को मृदा की दृष्टि से देखे तो जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार तथा भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती हैं। भूमि से पानी का वाष्पीकरण भी बहुत कम होगा।

पर्यावरण की दृष्टि से जैविक खेती के लाभ ( Benefits from the Environment Point of View )

जैविक खेती ( Jaivik Kheti ) पर्यावरण पर बहुत अच्छा प्रभाव डालता है, जिससे कि भूमि के जल के स्तर में वृध्दि होती हैं। मिट्टी खाद पदार्थ और भूमि में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में भी कमी आती है। जैविक खेती में कचरे का उपयोग, खाद बनाने में किया जाता है। जैविक खाद भूमि कि गुणवत्ता बढ़ने के साथ साथ होने से बीमारियों को भी नियत्रित करता है।

जैविक खेती से फसल उत्पादन की लागत में कमी के साथ ही साथ पर्यावरण को संरक्षित करना  एवं आय में दुगना वृध्दि अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का निखर के आना।

 • प्राकृतिक जैविक प्रमाणीकरणों के उपयोग से स्वस्थ पर्यावरण के लिए अच्छा रखरखाव।

• प्राकृतिक प्रकृति और कम संभावनाओं के कारण वास्तविकताएं।

• ये खेती से पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता है, अर्थात पर्यावरण संतुलन बना रहता है।  

कुछ अन्य जैविक खेती के लाभ ( Some Others Benefits of Organic Farming )

ऑर्गेनिक खेती या जैविक खेती से उत्पन्न अनाज का सेवन करनें से व्यक्ति को किसी प्रकार की बीमारी से ग्रसित होनें का खतरा नहीं होता है।

अगर हम बात करे पारम्परिक खेती की तो इसकी अपेक्षा जैविक खेती में पैदावार कम होती है, परन्तु जैविक खेती में आय अधिक होती है। क्योंकि आज के मार्केट में जैविक खेती से उत्पादित अनाज की मांग दिनप्रतिदिन बढती जा रही  है।

जैविक खेती से कृषि के सहायक सूक्ष्मजीव  सुरक्षित रहने के साथ ही उनकी संख्या में भी बढ़ोतरी होती है।

बात करे स्वाद कि तो जैविक खेती से उपजने वाले खाद्य पदार्थों का स्वाद भी आज कल खेती या रासायनिक खादों से उपजे खाद्य वस्तुओं से बेहतर होता है।

  • जैविक खेती द्वारा उगाए जाने वाले खाद्य वस्तुओं में कई प्रकार के विटामिन भी पाए जाते हैं।
  • जैविक खेती से उपजने वाले खाद्य प्रदार्थ पशु चारा के रूप में भी बहुत अच्छे होते हैं।
  • जैविक खेती का सबसे लाभ हमारे भूमि को मिलता है। इससे मिट्टी के पोषण को भी बढ़ावा मिलता है और साथ ही साथ इससे मिट्टी की उर्वरता में भी सुधार होता है।
  • जैविक खेती हमारे पर्यावरण के बहुत अनुकूल होता है, साथ ही Reduce, Reuse और Recycle को भी बढ़ावा देता है।
  • जैविक खेती ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करता है, जिससे किसानों और मजदूरों की आर्थिक हालातों में भी बहुत सुधार होता है।

जैविक खेती के नुकसान  ( Disadvantage of Organic Farming )

  • पहले वर्ष में इसमें खाद्य पदार्थों की उत्पादकता बहुत कम होती है।
  • जैविक खेती से फसलों की उपज काफी कम होती है।
  • इसमें आधुनिक मशीनों के इस्तेमाल के बजाय मानवीय श्रम की आवश्यकता ज्यादा होती है।
  • जैविक खेती को करने के लिए किसानों को कुशलता के साथ ही जैविक खेती के सभी घटकों का ज्ञान भी रखना जरुरी है।
  • पारंपरिक खेती की तुलना में जैविक खेती में समय ज्यादा लगता है।
  • अगर हम बात करे व्यपारिक खेती में जैविक विधि से खेती के लिए तो लाभदायक नहीं है। क्योंकि इसमें पहले साल तो उत्पादन बढ़ने के बजाय घट जाता है। ये कम से कम तीन से चार साल लेता है उत्पादन को बढ़ाने के लिए।

जैविक खेती में प्रयोग होने वाली प्रमुख खाद एवं दवाईयाँ ( Major Fertilizers and Medicines used in Organic Farming )

जैविक खाद ( Organic Fertilizers )

  • नाडेप
  • बायोगैस स्लरी
  • वर्मी कम्पोस्ट
  • हरी खाद
  • जैव उर्वरक (कल्चर)
  • गोबर की खाद
  • नाडेप फास्फो कम्पोस्ट
  • पिट कम्पोस्ट (इंदौर विधि)
  • मुर्गी का खाद

नाडेप ( Nadep )

कम्पोस्ट बनाने की यह विधि मुख्य रूप से ग्राम पुसर, जिला यवतमाल, महाराष्ट्र के नारायण देवराव पण्ढ़री पांडे द्वारा विकसित की गई है। इस कारण इसे नादेप विधि ( या अंग्रेजी में नाडेप ) कहते हैं। इसकी विशेषता यह है, कि इस प्रक्रिया में जमीन पर टांका बनाया जाता है। नाडेप विधि में कम से कम गोबर का उपयोग करके अधिक मात्रा में अच्छी खाद को तैयार किया जा सकता है।

नाडेप के टांके को भरने के लिए मुख्य रूप से गोबर, कचरा (बायोमास) और बारीक छनी हुई मिट्टी की आवश्यकता रहती है। जीवांश को पकाने क लिए  90 से 120 दिन लगते है, और साथ ही इसमें वायु संचार प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। नाडेप द्वारा उत्पादित की गई खाद में प्रमुख रूप से 0.1 से 1.5 नत्रजन, 0.5 से 0.9 स्फुर (फास्फोरस) एवं 1.2 से 1.4 प्रतिशत पोटाश के अलावा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते है।

वर्मी कम्पोस्ट ( Vermi Compost )

जैसा कि आप जानते होगे कि केंचुआ को कृषकों का मित्र एवं भूमि की आंत कहा जाता हैं। यह सेन्द्रिय पदार्थ ह्यूमस व मिट्टी को एकसार करके जमीन के अंदर अन्य परतों में फैलाता हैं। इससे जमीन में हवा का आवागमन बढ़ जाता है और साथ ही साथ जलधारण क्षमता में बढ़ोतरी होती है।

केंचुओं के पेट में जो रसायनिक क्रिया व सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया होती है, जिससे भूमि में पाये जाने वाले नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश एवं अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता को बढ़ती हैं। इसमें बदबू नहीं होती है, और इसके साथ ही साथ इसमें मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है, इतना ही नहीं यह वातावरण प्रदूषित भी नहीं होता है। वर्मी कम्पोस्ट लगभग  डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। वर्मी कम्पोस्ट में मुख्य रूप से  2.5 से 3% नत्रजन, 1.5 से 2% स्फुर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।

हरी खाद ( Green Manure )

आज देश में खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए सघन क्रिया अपनाई जाने लगी है, इससे आपको फसलों का उत्पादन भी अधिक तेजी से बढ़ा है, लेकिन भूमि में पोषक तत्वों का भारी मात्रा में व्हृास हुआ है। जिस कारण से भूमि की उत्पादकता में भी कमी देखने को मिली है। भूमि की उत्पादकता को बनाए रखने और अधिक उत्पादन प्राप्ति के लिए पोषक तत्वों की पूर्ती करना जरूरी होता है। भूमि में पोषक तत्वों को बनाए रखने और उत्पादकता बढ़ाने में कार्बनिक खादों में हरी खाद को विशेष स्थान प्राप्त है।

बायोगैस स्लरी ( Biogas Slurry )

बायोगैस  का उत्पादन के लिए मुख्य रूप से जैविक कचरे को जैव-रासायनिक क्रिया के तहत कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया को उपयोगी बायोगैस में बदला जाता है। बायोगैस सयंत्र में गोबर की पाचन क्रिया के बाद 25 प्रतिशत ठोस पदार्थ का रूपांतरण गैस के रूप में और 75 प्रतिशत ठोस प्रदार्थ को खाद के रूप में होता है। यह खेत के लिए बहुत उत्तम खाद होती है।

जैव उर्वरक ( Bio Fertilizer )

भूमि की उर्वरता को निरंतर बनाए रखने और सतत फसल उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने प्रकति प्रदंत जीवाणुओं से होने वाले लाभ को पहचानकर उनसे बिभिन्न प्रकार के पर्यावरण सहचर उर्वरक तैयार किये हैं। जोकि जैव उर्वरक ( Bio-Fertilizer  ) या ‘जीवाणु खाद’ कहलाता है, यही इसे दूसरे शब्दों में हम ये कह सकते है, कि जैव उर्वरक जीवित उर्वरक होता है, जिनमे की सूक्ष्मजीव विद्यमान होते है। जैसे राईजोबियम (Rhizobium), एसपर्जिलस, पैनिसिलियम, सयूडोमोनॉस, बैसिलस आदि।

गोबर की खाद ( Cow Dung Manure )

प्राचीन काल से ही  गाय का गोबर को प्राकृतिक जैविक उर्वरक के रूप में उपयोग किया जा रहा है। इसमें गाय के साथ ही साथ घोड़े, बकरी व भैंस का गोबर भी खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है। आमतौर पर ऐसा देखा गया है, कि गोबर खाद जितनी पुरानी होती है, वो पौधों के लिए उतनी ही फायदेमंद होती है। गोबर खाद 100 प्रतिशत  प्राकृतिक आर्गेनिक खाद है।

नाडेप फास्फो कम्पोस्ट ( Nadep Phospho-Compost )

नाडेप फास्फो-कम्पोस्ट एक मूल्यवान संशोधन है। जिसे मुख्य रूप से मसूरी रॉक फास्फेट के साथ खेत के कचरे, मवेशियों के गोबर, मिट्टी, कम्पोस्ट, कटी हुई घास, फसल के अवशेषों तथा  पौधों के पत्तों को मिलाकर खाद सामग्री के 3 %  की दर से तैयार किया जा सकता है। इस मिश्रण को सामान्यत घोल में बनाया जाता है, ताकि पर्याप्त मात्रा में नमी प्रदान की जा सके। इस मिश्रण को लगभग 60 से 90 दिनों के लिए खाद के गड्ढे में सड़ने दिया जाता है। कंपोस्टिंग की पूरी अवधि के दौरान नमी 60 प्रतिशत पर बनी रहती है, और 60-90 दिनों में खाद उपयोग के लिए तैयार हो जाएगी।

मुर्गी का खाद ( Manure of chicken )

मुर्गी की बीट से बना खाद भी पूरी तरह जैविक होता है, बीट में मुख्य रूप से नाइट्रोजन 4.55 से 5.46 प्रतिशत, फास्फोरस 2.46 से 2.82 %, पोटैशियम 2.02 से 2.32, कैल्सियम 4.52 से 8.15, मैग्नेशियम 0.52 से 0.73 %  पाया जाता है।

जैविक पध्दति द्वारा कीट व्याधि नियंत्रण के कृषकों के अनुभव ( Farmers’ Experiences of Insect Pest Control by Biological Methods )

  • गौ-मूत्र
  • नीम-पत्ती का घोल/निबोली/खली
  • मट्ठा
  • मिर्च/लहसु
  • लकड़ी की राख
  • नीम व करंज खली

जैविक खाद तैयार करने के किसानो के अन्य अनुभव ( Other Experience of Farmers in Preparation of Organic Fertilizers )

  • भभूत अमतपानी
  • अमृत संजीवनी
  • मटका खाद

भभूत अमृत पानी

अमृत पानी तैयार करने के लिए मुख्य रूप से 10 kg गाय का ताजा गोबर , नौनी घी 250 ग्राम, 500 ग्राम शहद और 200 लीटर पानी की जरूरत होती है। सवर्प्रथम 200 लीटर के ड्रम में 10 किलोग्राम गाय का ताजा गोबर डाले और साथ ही उसमे घी और शहद डालकर अच्छी तरह से मिलाए इसके बाद ड्रम को पानी से भर ले और किसी बड़े लकड़ी की सहायता से तैयार घोल को अच्छी प्रकार मिलाए।

अमृत संजीवनी

अमृत संजीवनी भी एक जैविक खाद है। इसको बनाने के लिए मुख्य रूप से गोबर, यूरिया, सुपर फास्फेट, पोटास तथा मूंगफली व् पानी की आवश्यकता होती है। एक एकड़ हेतु अमृत संजीवनी बनाने के लिये सामग्री में मुख्यतः 3 किलोग्राम यूरिया, 3 किलोग्राम सुपर फास्फेट एवं 1 किलोग्राम पोटाश तथा 2 किलोग्राम मूंगफली की खली, 80 किलोग्राम गोबर एवं 200 लीटर पानी की जरूरत होती है ।

अमृत संजीविनी बनाने  के लिए उपरोक्त समस्त सामग्री को एक ड्रम में डालकर अच्छी तरह मिला दें, और ड्रम के ढक्कन को अच्छी तरह से बंद कर 48 घंटे के लिए छोड़ दें। प्रयोग के समय ड्रम को पूरा पानी से भर दे। जब खेत में पर्याप्त नमी हो तब फसल बोने के पूर्व इसे एक सामान  रूप से एक एकड़ में अच्छे से छिड़क दे।

मटका खाद       

मटका खाद मुख्य रूप से गौ मूत्र, गोबर एवं अन्य जैविक पदार्थों से तैयार किया जाने वाला एक बेहतरीन जैविक खाद है। इसे सामान्यतया मटके में ही तैयार किया जाता है। मटका खाद में कई तरह के लाभदायक सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं, जो की भूमि के लिए बहुत उपयोगी होते है।

भारत में जैविक खेती ( Organic Farming in India )

भारत में जैविक खेती ( Organic Farming in Hindi ) की बात करे तो अभी ये प्रारंभिक अवस्था में है। केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, मार्च 2020 तक लगभग 2.78 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि जैविक खेती के आश्रित थी। यह देश में 140.1 मिलियन हेक्टेयर शुद्ध बुवाई क्षेत्र का 2%  है। जैविक खेती के तहत 0.76 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र के साथ मध्य प्रदेश सूची में सबसे ऊपर है। जो कि भारत के कुल जैविक खेती क्षेत्र का लगभग 27 % से अधिक है।

शीर्ष तीन राज्यों – मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र – में जैविक खेती के तहत लगभग आधा क्षेत्र है। शीर्ष 10 राज्यों में जैविक खेती के तहत कुल क्षेत्रफल का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा। सिक्किम, उत्तराखंड और त्रिपुरा भारत में जैविक उत्पादों की खेती करने वाले प्रमुख राज्य हैं। जैविक खेती ( Jaivik Kheti ) के लिए अन्य राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र हैं। कुल क्षेत्रफल 7 लाख 29 हजार 900 हेक्टर है, जिसमें से मात्र 10.20 प्रतिशत क्षेत्र कृषि योग्य है। जबकि शेष क्षेत्र वन, बेमौसम भूमि के, शीत मरुस्थल और अल्पाइन क्षेत्र इत्यादि के अंतर्गत आते हैं।

सिक्किम केवल भारत का ही नहीं, बल्कि विश्व का पहला ऐसा जैविक राज्य है, जहाँ पर खेती के लिए किसी भी प्रकार की रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है। ऑर्गेनिक खेती या जैविक खेती  से सिक्किम में लगभग 66 हजार से अधिक किसानो को लाभ हुआ है, और इनकी संख्या  दिन प्रतिदिन लगातार  बढ़ती ही जा रही है।

सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग नें वर्ष 2016 में किसी भी तरह के रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके साथ ही फसलों के उत्पादन में रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल करनें पर एक लाख (1,00,000) रुपये का जुर्माना भी लगा दिया था। इस प्रकार सिक्किम भारत का पहला जैविक राज्य बन गया, और वर्तमान समय में यहाँ के लोग जैविक खाद से फसल और सब्जियों का उत्पादन करते है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न ( FAQs )

प्रश्न-जैविक खेती क्या है इसके प्रकार?

उतर- जैविक खेती में किसान, मुख्य रूप से अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में सभी इनपुट सीमित करने की और पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, जैविक किसान मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को कम करने के लिए ज्यादातर फसल चक्रीकरण पर निर्भर रहते हैं। वे मुख्य रूप से खेती के लिए  कानूनी रूप से निर्देशित मात्राओं में जैविक खाद, और नाइट्रोजन बूस्टर के रूप में नाइट्रोजन-बाइंडिंग बैक्टीरिया का इस्तेमाल करते हैं। इसके 2 प्रकार है।

प्रश्न-जैविक खेती की शुरुआत कैसे करें?

उतर- जैविक खेती के शुरुआत करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण बिंदु को ध्यान रखते हुए करना चाहिए। जैसे जैविक खेती के लिए खेत तैयार करते हैं, तो इसमें अधिक से अधिक गोबर मिलाया जाता है। फसल लगाने के बाद खरपतवार और कीट पर ध्यान देना होता है। गाय के गोबर के घोल और प्राकृतिक तौर पर तैयार किये गये खाद को पानी के माध्यम से पौधों को दिया जाता है।

प्रश्न-जैविक खेती का जनक कौन है?

उतर- जैविक खेती के जनक का नाम अल्बर्ट हावर्ड ( Albert Howard ) हैं।

प्रश्न-जैविक खेती के लाभ क्या है?
जैविक खेती के लाभ

1. ऑर्गेनिक खेती से उत्पन्न अनाज का सेवन करनें से व्यक्ति को किसी प्रकार की बीमारी से ग्रसित होनें का खतरा नहीं होता है।
2. जैविक खेती भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने में सहायक है।
3. जैविक खेती में किसान की  लगत कम और मुनाफा बहुत अच्छा होता है।

प्रश्न-जैविक खेती के नुकसान क्या है?

जैविक खेती के नुकसान
1. पहले वर्ष में इसमें खाद्य पदार्थों की उत्पादकता बहुत कम होती है।
2. पारंपरिक खेती की तुलना में जैविक खेती से फसलों की उत्पादन काफी कम होती है।
3. आज के समय में कोमेर्सिअल खेती के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न- जैविक खेती के कितने तरीके हैं?

उतर- जैविक खेती को दो प्रकारों में बांटा गया है, अर्थात्: एकीकृत जैविक खेती। शुद्ध जैविक खेती।

प्रश्न- जैविक खाद कौन कौन से हैं?

उतर- जैविक खाद कुछ इस प्रकार है –
1. देशी खाद या गोबर की खाद
2. हरी खाद
3. कचरे (शहरी व ग्रामीण की खाद/कम्पोस्ट
4. केंचुआ खाद
5. जीवाणु खाद आदि

प्रश्न-भारत में जैविक खेती किसने शुरू की?

उतर- 1940 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में रोडेल, इंग्लैंड में लेडी बालफोर और भारत में सर अल्बर्ट हावर्ड के बुनियादी सैद्धांतिक विस्तार पर विकसित जैविक खेती ने दुनिया भर में लगभग 23 मिलियन हेक्टेयर भूमि को कवर करने के लिए प्रगति की है।

प्रश्न-जैविक खेती ( organic farming in hindi ) करने वाला पहला राज्य कौन सा है?

उतर- माननीय प्रधानमंत्री ने सिक्किम को भारत का पहला जैविक राज्‍य घोषित किया है।

प्रश्न-पहला जैविक देश कौन सा है?

उतर- भूटान विश्व का पहला पूर्ण जैविक देश बन गया है। भूटान के कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 80.8 9% वन क्षेत्र के अधीन है, और भूमि क्षेत्र का 51.40% (16,396.4 वर्ग किमी) हिस्सा संरक्षित क्षेत्रों में आता है ।

प्रश्न-सबसे ज्यादा जैविक खेत किस राज्य में है?

उतर- अमेरिका में जैविक खेती: राज्य द्वारा प्रमाणित खेतों की संख्या 2021।
2021 में, कैलिफोर्निया राज्य में लगभग 3,061 जैविक खेत ( Jaivik Kheti ) और खेत थे। यह संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रमाणित जैविक फार्मों की सबसे बड़ी संख्या थी।

प्रश्न-भारत का पहला जैविक गांव कौन सा है?

उतर-गांवों में दशपारा ( Daspara ) भारत का पहला जैविक गांव (India’s 1st Bio-Village) है।

Reference: https://www.wikipedia.org/

About sapana

Studied MSc Agriculture from Banaras Hindu University and having more than 2 years of field experience in field of Agriculture.

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