घन जीवामृत क्या है
घन जीवामृत बनाने की विधि (ghan jivamrit banane ki vidhi) जानने से पहल ये समझना जरूरी है कि घन जीवामृत क्या है। आज इस बढ़ते और आधुनिक भारत में कृषि के लिए एक मुख्य समस्या है कि कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए किसानों को सही जानकारी और सहायता के साथ ही साथ सही खाद और उर्वरक की आवश्यकता है।
आज इस आधुनिक भारत में जैसे जैसे लोग जागरूक हो रहे वैसे वैसे ही वो जैविक उत्पाद पर अपनी निर्भरता दिखा रहे है। इसको देखेते हुए जैविक खेती का उपयोग को अहमियत दे रहे। इस स्तिथि को देखते हुए सुभाष पालेकर जी द्वारा ज़ीरो बजट नचुराल फ़ार्मिंग का अवधारणा दिया गया। आईए अब हम इस टॉपिक को अच्छे से समझते है।
घन जीवामृत एक जैविक उर्वरक है, जिसे विशेष रूप से कृषि में पौधों की वृद्धि और उत्पादन को बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है। यह एक तरल खाद है, जो जैविक सामग्री जैसे कि गोबर, गोमूत्र, और अन्य जैविक पदार्थों के मिश्रण से तैयार किया जाता है। घन जीवामृत में सूक्ष्मजीवों की वृद्धि मे सहायता प्रदान करता है, जो मृदा की गुणवत्ता को सुधारने और पौधों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करता है।
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घन जीवामृत कैसे बनाएं (Ghanjivamrit Kaise Banaye)
घनजीवामृत बनाना आसान है और यह पूरी तरह से प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करके तैयार किया जाता है। यहाँ घनजीवामृत बनाने की सरल विधि बताई जा रही है:
घन जीवामृत बनाने के लिए उपयोगी सामग्री
सामग्री:
गाय गोबर | 10 किलोग्राम (ताजा या सूखा) |
गुड़ | 2 किलोग्राम |
देशी गौमूत्र | 5 लीटर |
दाल का आटा या बेसन | 2 किलोग्राम |
सजीव मिट्टी (पेड़ के नीचे की मिट्टी या जहां रासायनिक खाद न डाली गयी हो) | 1 किलोग्राम (खेत की उपरी परत से ली गई, जहाँ जीवाणु सक्रिय हों) |
पानी | आवश्यकतानुसार (मिश्रण को गाढ़ा रखने के लिए) |
गोबर: जैसा की सभी जानते है, कि गाय का गोबर आज के आधुनिक खादों से कहीं बेहतर है। गोबर में उपस्थित जैविक पदार्थ, आवश्यक पोषक तत्व और लाभकारी सूक्ष्मजीव भरपूर मात्रा में होते हैं जो की हमारे मृदा के लिए बहुत उपयोगी होते है। यह मृदा की संरचना को सुधारता है, पानी की धारण क्षमता को बढ़ाता है और मृदा की गुणवत्ता को भी निखरता है।
गोमूत्र: गोमूत्र नाइट्रोजन, पोटेशियम और अन्य तत्वों का प्रमुख स्रोत है। यह प्राकृतिक रूप से पौधों की वृद्धि के रूप में कार्य करता है, पौधों के जड़ों के विकास मे सहयोग देता है और साथ ही साथ पोषक तत्वों के अवशोषण को भी बढ़ाताहै। इसमें यूरिया 0.5-1% ,पोटाश 0.02-0.1% और अन्य सूक्ष्म पोषक जैसे तत्व भी होते हैं जो पौधों की जड़ों को मजबूत बनाते हैं।
गुड़: गुड़, जो कि गन्ने के रस से प्राप्त होता है, उपयोगी सूक्ष्मजीवों के लिए भोजन का एक अच्छा स्रोत होता है। यह मृदा मे उपस्थित इन सूक्ष्मजीवों की वृद्धि में सहयोग करता है, जो की पौधों के लिए उपयोगी पोषक तत्वों की उपलब्धता को सुधारते हैं।
चना आटा: चना आटा या बेसन में फास्फोरस और पोटेशियम उच्च मात्रा मे पाए जाते है। जो मिट्टी को जीवन देने वाली नाइट्रोजन को समृद्ध करती हैं।
पानी: यह अन्य जैविक पदार्थों के लिए वाहक के रूप में कार्य करता है, जिससे की उनका प्रभावी वितरण और पौधों द्वारा अवशोषण सुनिश्चित करना है। यह मिट्टी की नमी के स्तर को बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाता है, जो पौधों के विकास के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
घन जीवामृत बनाने की विधि (Ghan Jivamrit Banane Ki Vidhi)
घन जीवामृत बनाने की विधि बहुत ही सरल है और इसे आप घर पर आसानी से बना सकते है। यहाँ पर एक सामान्य विधि दी गई है:
- गोबर का उपयोग: एक बड़ा बर्तन या टंकी लें जिसमें 100 किलोग्राम गाय का गोबर डालें।
- गाय का मूत्र: उसके बाद 5 लीटर गाय का मूत्र डालें , गोबर और गौमूत्र को आपस मे किसी लकड़ी के डंडे की सहायता से अच्छी तरह मिलाएं।
- गुड़ और बेसन:अब इस गोबर और गौमूत्र के तैयार मिश्रण में 2 किलोग्राम गुड़ और 2 किलोग्राम बेसन डालें। ध्यान रहे की गुड़ को पहले से थोड़े पानी में घोलकर रखे | ताकि वह मिश्रण मे अच्छी तरह से मिल जाए।
- मिट्टी:अब इस तैयार मिश्रण में 1 किलोग्राम मिट्टी मिलाएं और ध्यान रहे की यह मिट्टी खेत की उपरी परत से ली गई होनी चाहिए जिससे की इसमें लाभकारी सूक्ष्मजीव मौजूद रहें।
- मिश्रण करना: सारी सामग्री को डंडे की सहायता से अच्छे से मिलाएं। इसमें आप आवश्यकतानुसार पानी डालें ताकि यह तैयार मिश्रण लड्डू बनाने जैसी स्थिरता प्राप्त कर सके।
- ढक कर रखना: इस मिश्रण को ढक कर छायादार जगह पर 7-10 दिनों के लिए रख दें। इसे हर रोज एक बार हिलाएं जिससे की हवा का संचार होता रहे और सूक्ष्मजीव सक्रिय रहें। सूखने के बाद इसको किसी लकड़ी से ठोक कर बारीक करके बोरों में भरकर छाँव में रख दें। इस प्रकार आप घन जीवामृत को 6 महीने तक भंडारण करके रख सकते हैं।
ध्यान दें:
- सुनिश्चित करें कि सभी सामग्री जैविक हो और सभी रासायनिक पदार्थों से मुक्त हों।
- घन जीवामृत का उपयोग हमेशा पानी के साथ मिलकर करना चाहिए ताकि यह पौधों के लिए सुरक्षित हो।
इस प्रकार, आप आसानी से अपने घर पर ही घन जीवामृत बना सकते हैं, जो आपकी फसलों के लिए एक उत्कृष्ट जैविक उर्वरक है।
घन जीवामृत का उपयोग कैसे करें
घनजीवमृत का उपयोग करने से पहले उसकी सही विधि जानना आवश्यक है ताकि इसके आप अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते है | यहाँ इसकी उपयोग विधि दी जा रही है:
खेत की तैयारी में उपयोग
- बुआई से पहले: जब आप किसी फसल की बुआई की तैयारी कर रहे हों, तब घनजीवमृत का उपयोग करना अच्छा होता हैं। प्रति एकड़ खेत में 50-100 किलोग्राम घनजीवमृत का एक समान रूप से छिड़काव करें और इसे मिट्टी में अच्छी तरीके से मिलाएं ताकि यह मिट्टी की अंदर चले जाए। जिससे की ये अपना प्रभाव प्रारंभ कर सके |
पौधों के विकास के दौरान उपयोग
- रोपाई के समय: पौधों की रोपाई के समय आप प्रत्येक पौधे की जड़ के पास थोड़ी मात्रा (लगभग 50-100 ग्राम) में घनजीवमृत डालें। ये पौधों की जड़ों को पोषण प्रदान कर उनकी वृद्धि को बढ़ावा देगा।
- उर्वरक के रूप में: पौधों के विकास और वृद्धि के विभिन्न चरणों में (जैसे, फूल आने से पहले और फल बनने से पहले) घनजीवमृत का उपयोग करना चाहिए | प्रति एकड़ खेत में 50-100 किलोग्राम घनजीवमृत का एक समान रूप से छिड़काव करें और इसे मिट्टी में भी मिला दें।
पानी देने के दौरान उपयोग
- सिंचाई के समय: यदि आपके पास सिंचाई की पर्याप्त सुविधा है, तो इसका पानी में घोलकर उपयोग कर सकते हैं। एक टंकी पानी में लगभग 5-10 किलोग्राम घनजीवमृत अच्छी तरह से मिलाएं और इस मिश्रण का उपयोग सिंचाई के समय करें।
फसलों की सुरक्षा
- रोग और कीट नियंत्रण: घनजीवमृत के नियमित छिड़काव से पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता मे बढ़ोतरी होती है और कीट, फ़तनगो से सुरक्षा मिलती है।
कुछ महत्वपूर्ण सुझाव
- घनजीवमृत का उपयोग करते समय इसे किसी छायादार जगह पर रखें ताकि इसके अंदर उपस्थित सूक्ष्मजीव सक्रिय रहें।
- मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर ही मात्रा में बदलाव करें | यदि आपकी मिट्टी पहले से ही अच्छी गुणवत्ता की या तो रसायनमुक्त है, तो घनजीवमृत की मात्रा कम कर सकते हैं।
- आप अपने खेत मे रासायनिक खादों का उपयोग न करें, और खासकर यदि आप जैविक खेती कर रहे हैं, तो रासायनिक खादों का उपयोग बिल्कुल भी न करें क्योंकि यह घनजीवमृत के प्रभाव को कम या खत्म सकते हैं।
इस विधि से घनजीवमृत का उपयोग करने से आपकी फसलें स्वस्थ और अधिक उत्पादक बनेंगी।
घन जीवामृत के प्रभावी उपयोग के सुझाव
घन जीवामृत के प्रभावी उपयोग के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:
- भूमि की तैयारी: घन जीवामृत का उपयोग करने से पहले, आप भूमि को अच्छी तरह से तैयार करें। इसका प्रयोग मिट्टी में करने से मिट्टी की संरचना और पोषण क्षमता में काफी सुधार होता है।
- सही अनुपात में मिलाना: घन जीवामृत को मृदा में सही अनुपात में मिलाना अतिआवश्यक है। आमतौर पर, 1-2 टन प्रति हेक्टेयर घनजीवमृत का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन यह फसल की आवश्यकता और मिट्टी की स्थिति पर निर्भर करता है।
- पौधों के रोपण से पहले: पौधों के रोपण से पहले घन जीवामृत प्रयोग मृदा और पौधों दोनों के लिए उपयोगी है मुख्यतः इसे रोपण से पहले गड्ढों में डालें। जिससे की पौधों की जड़ें जल्दी और अच्छी विकसित होती हैं और उन्हें पर्याप्त मात्रा मे आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं।
- सिंचाई के समय: सिंचाई के समय इसका प्रयोग सीधे पानी में मिलाकर करें। जिससे की पौधों को आवश्यक पोषक तत्व सीधे पानी के माध्यम से मिलते हैं।
- फसल चक्र में उपयोग: अलग-अलग फसलों के लिए घन जीवामृत का उपयोग करें। यह मिट्टी की सेहत और गुणवत्ता को बनाए रखने में मदद करता है और फसल विविधता को भी बढ़ावा देता है।
- संग्रहण: घन जीवामृत को सही तरीके से संग्रहित कर भंडारण करें ताकि इसकी गुणवत्ता बनी रहे । इसे सूखी और ठंडी जगह पर रखें।
घन जीवामृत के फायदे या घन जीवामृत के लाभ
पौधों की वृद्धि: घनजीवमृत का प्रयोग से पौधों मे वृद्धि होती और उनके स्वस्थ को बहतेर रखने में मदद करता है।
मिट्टी की गुणवत्ता: घन जीवामृत के प्रयोग से मिट्टी की संरचना मे काफी हद तक सुधार होती है, जिससे की मिट्टी में नमी और पोषक तत्वों की मात्रा मे बढ़ोतरी होती है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता: यह पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ने के साथ ही साथ उनकी वृद्धि और विकास मे भी सहयोग करता है, और पौधों को प्राकृतिक रूप से बीमारियों और कीटों से भी बचाता है।
पोषक तत्वों की उपलब्धता: घन जीवमृत मे पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व उपस्थित होते हैं जो पौधों के विकाश और वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं, जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम।
पर्यावरण के अनुकूल: यह एक प्राकृतिक उत्पाद द्वारा निर्मित जैविक उर्वरक है, जो आज कल उपयोग होने वाले रासायनिक उर्वरकों के तुलना मे पर्यावरण के लिए बहुत कम हानिकारक होता है।
उत्पादन में वृद्धि: जैविक उर्वरक के नियमित उपयोग से फसलों की उत्पादन क्षमता में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती है।
मिट्टी की संरचना में सुधार: यह मिट्टी की भौतिक और रासायनिक संरचना को सुधारने में उपयोगी है। यह भूमि की जलधारण क्षमता को बढ़ाता है, जिससे पौधों को अधिक मात्रा मे पानी उपलब्ध होता है, और वायु संचार में सुधार करता है, जिससे जड़ों को आवश्यक ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा मे मिलती है।
जीवाणुओं की वृद्धि: घन जीवामृत में भूमि के लिए लाभकारी सूक्ष्मजीव होते हैं, जो मिट्टी में जैव विविधता को बढ़ाते हैं और पौधों के वृद्धि में मदद करते हैं।
सस्टेनेबल कृषि: इसके उपयोग से कृषि को अधिक स्थायी और पर्यावरण के अनुकूल बनाया जा सकता है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों की सुरक्षा होती है और भूमि को बंजर होने से भी बचाया जा सकता है।
कृषि लागत में कमी: घन जीवामृत का उपयोग करने से किसानों को रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता मे काफी हद तक कम करने में मदद मिलती है, जिससे उनकी कृषि लागत में कमी आती है।
स्थायी कृषि प्रथाएँ: घन जीवामृत का उपयोग स्थायी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देता है, जिससे दीर्घकालिक कृषि उत्पादन संभव होता है। यह न केवल किसानों के लिए लाभकारी है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है।
घन जीवामृत के कुछ अन्य लाभ
- घनजीवामृत पौधे को अधिक ठंड और अधिक गर्मी से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।
- इसके प्रयोग से फसलों पर फूलों और फलों में वृद्धि होती है।
- घनजीवामृत सभी प्रकार की फसलों के लिए बहुत ही लाभकारी है। इसमें कोई भी फसलों को नुकसान देने वाला तत्व या जीवाणु नहीं है।
- पौधों में बिमारियों के प्रति लड़ने की शक्ति को बढ़ाता है।
- मिट्टी में से तत्वों को लेने और उपयोग करने की क्षमता को बढ़ती है।
घन जीवामृत के उपयोग के साथ-साथ, किसानों को कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए
शिक्षा और जागरूकता: आज इस आधुनिक समय मे भी किसानों को घन जीवामृत के सही उपयोग और इसके लाभों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है। इसके लिए हमे जमीनी स्तर पर जाके कार्यशालाएँ, सेमिनार और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए, ताकि किसान इस तकनीक को सही तरीके से अपनाएँ और उसने लाभ काम कर अपने आप और दूसरों को भी रोग मुक्त करे।
स्थानीय संसाधनों का उपयोग: घन जीवामृत बनाने के लिए आपको काही बाहर जाके समान लाने की जरूरत नहीं इसमे स्थानीय संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि गोबर, फसल अवशेष, और अन्य जैविक सामग्री। इससे न तो केवल आपके लागत में कमी आती है, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी को भी बढ़ावा मिलता है।
सामुदायिक सहयोग: इसमे किसानों के बीच सामुदायिक सहयोग को बढ़ावा देना भी एक महत्वपूर्ण बिन्दु है। जिसमे की किसान एक-दूसरे के अनुभवों से देखकर और कर के सीख सकते हैं और घन जीवामृत के उपयोग के लिए सामूहिक प्रयास कर सकते हैं।
सरकारी समर्थन: सरकार को भी पहल करनी चाहिए, जैसे कि सब्सिडी, अनुदान और तकनीकी सहायता प्रदान करना, ताकि किसान घन जीवामृत का उपयोग आसानी से कर सकें।
घनजीवमृत की चुनौतियों और सीमाए
जैसा की आप जानते है, घनजीवमृत एक जैविक उर्वरक है | इसके कई लाभ हैं तो साथ ही साथ इसके उपयोग कुछ चुनौतियों और सीमाओं के साथ भी आता है। यहाँ घनजीवमृत की कुच्छ हानियों या सीमाओं का वर्णन किया गया है:
1. अनुपात का सही उपयोग आवश्यक: घनजीवमृत का उपयोग के लिय सही मात्रा और अनुपात होना बेहद जरूरी है। अगर इसे अधिक मात्रा या गलत अनुपात मे प्रयोग किया जाए तो यह तो यह मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने की बजाय उसकी पोषक तत्वों मे असंतुलन पैदा कर सकता है, जिससे फसल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
2. स्थानीय उपलब्धता और तैयारी की कठिनाइयाँ: घनजीवमृत बनाने के लिए आवश्यक सामग्री (जैसे ताजे गाय का गोबर और मूत्र) गाव मे तो आसानी से मिल जाएगी लेकिन शहर मे आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकती है | यह एक चुनौती हो सकती है। किसानों के लिए घनजीवमृत को सही तरीके से तैयार करना भी समय और श्रम-साध्य हो सकता है |
3. सूक्ष्मजीवों की अस्थिरता: घनजीवमृत में पौधों के लिए लाभकारी सूक्ष्मजीव होते हैं जो की समय के साथ अपनी सक्रियता को खो सकते हैं, आमतौर पर तब जब इसे सही तरीके से संग्रहित या भंडारण न किया जाए। इसके अलावा, इनकी सक्रियता तापमान और नमी के बदलावों पर भी निर्भर करती है |
4. उत्पादन में कमी का जोखिम: जैसा की पहले से पता है आज का किसान छोटे से एरिया मे ज्यादा उत्पादन की होड मे लगा है | जिससे की किसान अपने खेतों मे रासायनिक उर्वरकों का भर भर के प्रयोग किया है | उन किसानों के लिए जैविक उर्वरकों पर पूरी तरह से निर्भर होना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। जैसा की जैविक खेती करने वाले किसान बताते है पहले और दूसरे साल मे उत्पादन मे कमी आती है, क्योंकि मिट्टी को जैविक प्रणाली में समायोजित होने में समय लगता है।
5. लंबी अवधि का प्रभाव: घनजीवमृत का मृदा और पौधों पर प्रभाव धीरे-धीरे देखने को मिलता है। इसे इस्तेमाल करने से एकदम तुरंत परिणाम नहीं मिलते, जिससे की किसान निराश हो सकते हैं, खासकर अगर वे त्वरित लाभ की अपेक्षा कर रहे हों।
6. संक्रमण का जोखिम: अगर घनजीवमृत बनाने के दौरान इस्तेमाल किए गए गोबर या मूत्र में हानिकारक बैक्टीरिया या रोगाणु होते हैं, तो यह पौधों और मृदा दोनों के लिए संक्रमण का कारण बन सकता है। इसलिए, ध्यान रहे इसे तैयार करते समय स्वच्छता का विशेष खयाल रखना अति आवश्यक है।
7. नियमित देखभाल और प्रबंधन की आवश्यकता: घनजीवमृत के उपयोग के बाद खेतों की नियमित रूप से देखभाल और प्रबंधन अति आवश्यक होती है। क्योंकि जैविक खेती में आपको निरंतर देखभाल और निरीक्षण की आवश्यकता होती है। घनजीवमृत रासायनिक उर्वरकों की तरह सरल नहीं है, जिसमें की केवल एक बार डालने के बाद ही परिणाम मिल जाता है।
8. अन्य पौधों के लिए अनुपयुक्त: कुछ विशेष पौधों या फसलों के लिए घनजीवमृत का उपयोग नहीं किया सकता है। खासकर उन पौधों के लिए जो उच्च पोषक तत्वों की आवश्यकता रखते हैं और जल्दी से बढ़ते हैं।
किन फसलों के लिए घन जीवामृत उपयुक्त नहीं
घनजीवमृत का उपयोग ज्यादातर फसलों के लिए लाभकारी है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों या फसलों के लिए यह प्रयोग नहीं किया जाता है। यहाँ नीचे कुछ स्थितियाँ और फसलें बताई जा रही हैं जहाँ इसका उपयोग उपयुक्त नहीं हो सकता:
1. उच्च पोषक तत्वों की मांग वाली फसलें: कुछ रबी और खरीफ की फसलें, जैसे चावल, गेहूं, और मक्का, को वृद्धि और उत्पादन के लिए उच्च मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
2. तेजी से बढ़ने वाली फसलें: जैसे हरी पत्तेदार सब्जियाँ (पालक, धनिया) और तेजी से बढ़ने वाले फल (कद्दू, लौकी) जिन्हें तुरंत ही पोषण की आवश्यकता होती है, उनके लिए घनजीवमृत अकेले पर्याप्त नहीं हो सकता।
3. पोषक तत्वों की विशिष्ट आवश्यकताएँ: कुछ फसलें जैसे की आलू और टमाटर विशेष पोषक तत्वों की आवश्यकता रखती हैं, जिसमे टमाटर को अधिक मात्रा में कैल्शियम जबकि आलू को पोटेशियम की अधिक आवश्यकता होती है। घनजीवमृत इन आवश्यक पोषक तत्वों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं करा पाता है |
4. बड़ी बागवानी और व्यावसायिक खेती: बड़े पैमाने पर बागवानी या व्यावसायिक खेती, का मुख्य उदेश्य होता है अधिक उपज और गुणवत्ता की आवश्यकता जिसमे की घनजीवमृत का उपयोग सीमित हो सकता है। घनजीवमृत उन फसलों के लिए अधिक उपयुक्त हो सकता है जहाँ उद्देश्य जैविक खेती का हो, लेकिन बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरक या अन्य जैविक उर्वरकों का मिश्रण आवश्यक हो |
5. कमजोर मिट्टी या खराब संरचना वाली मिट्टी: यदि कही की मिट्टी बहुत कमजोर या खराब संरचना है (जैसे, रेतीली या अत्यधिक अम्लीय मिट्टी), तो ऐसे मृदा के लिए घनजीवमृत पर्याप्त पोषण नहीं दे पाएगा। ऐसी मिट्टी में अधिक पोषक तत्वों और संरचना सुधारक तत्वों की अधिक मात्रा मे आवश्यकता होती है |
6. जलवायु और पर्यावरणीय परिस्थितियाँ: ठंडे या अत्यधिक शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में सूक्ष्मजीवों की सक्रियता कम हो जाती है | इन जगह पर घनजीवमृत का उपयोग कठिन हो सकता है |
7. पानी की कमी वाले क्षेत्र: जिन क्षेत्रों में पानी की कमी है, वहाँ इसका उपयोग सीमित हो सकता है, क्योंकि घनजीवमृत को मिट्टी में अच्छी तरह से घुलने और पौधों तक पोषण पहुंचाने के लिए पर्याप्त मात्रा मे नमी की आवश्यकता होती है।
घन जीवामृत का निष्कर्ष
आपको इस ब्लॉग मे घन जीवामृत के बारे मे पूरा विवरण दिया गया है। यह एक प्रभावी, पर्यावरण के अनुकूल, और टिकाऊ उर्वरक है जो की जैविक खेती में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, इसका उपयोग करते समय ध्यान देने योग बात यह है की फसल की आवश्यकताओं और स्थानीय मिट्टी की स्थिति का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। जब आप उचित मात्रा में और सही तरीके से इसका उपयोग करते है, तो ये फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है।
प्रश्न- घन जीवामृत के फायदे ?
उत्तर- घनजीवामृत के कुछ फायदे इस प्रकार है-
1.घनजीवामृत पौधे को अधिक ठंड और अधिक गर्मी से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।
2.इसके प्रयोग से फसलों पर फूलों और फलों में वृद्धि होती है।
3.घनजीवामृत सभी प्रकार की फसलों के लिए बहुत ही लाभकारी है। इसमें कोई भी फसलों को नुकसान देने वाला तत्व या जीवाणु नहीं है।
4.पौधों में बिमारियों के प्रति लड़ने की शक्ति को बढ़ाता है।
प्रश्न- घन जीवामृत क्या होता है?
उत्तर- घन जीवामृत एक जैविक सूखी खाद होती है जोकि गाय के गोबर, गौमूत्र, बेसन, मिट्टी, गुड और पानी के मिश्रण से तैयार किया जाता है।
प्रश्न- पौधों के लिए जीवामृतम का उपयोग कब करें?
उत्तर- अच्छे परिणाम के लिए महीने में कम से कम एक बार इसका उपयोग करें। अगर मिट्टी की मे पोषक मात्रा की कमी है, तो आप महीने में एक से ज़्यादा बार इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, और अधिक जानकारी के लिए बॉग को पूरा पढे।
प्रश्न- घन जीवामृत का उपयोग कैसे करें?
उत्तर- घन जीवामृत को हम किसी भी समय भूमि में डाल सकते हैं। खेत की जुताई के बाद इसका प्रयोग सबसे अच्छा माना जाता है।