जीवामृत क्या है (What is Jeevamrit)
जीवामृत (Jeevamrit) एक अत्यंत प्रभावशाली पारंपरिक भारतीय जैव कीटनाशक और जैविक खाद है। जो की मुख्य रूप से गाय के गोबर से बनाया जाता है। इसमें गाय के गोबर के साथ ही साथ गौमूत्र, गुड, दाल का आटा, पानी और बरगद या पीपल के नीचे की मिट्टी को मिलाकर तैयार किया जाता है। यह जैविक खेती (Jaivik Kheti) का एक महत्वपूर्ण घटक है जिसके बारे में आगे लेख में विस्तार पूर्वक बताया गया है।
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जीवामृत (Jeevamrit) के लिए कहा जाता है कि यह खाद के साथ-साथ असंख्य सूक्ष्म जीवाणुओ का एक विशाल भंडार है जो की मृदा में उपस्थित पोषक तत्व को पौधों के लिए उपयोगी बनाने का कार्य करते है। ये सूक्ष्म जीवाणु इसके साथ ही साथ पौधों के लिए भोजन बनाने का भी कार्य करते है। इसको मुख्य रूप से प्राकृतिक कार्बन, बायोमास, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों का एक अच्छा स्रोत माना जाता है।
जीवामृत (Jeevamrit) 100 % प्राकृतिक और सुरक्षित पदार्थों से मिलकर बना होता है जो पौधों की वृद्धि में सहयोग करता है। अब बात करे जीवमृत शब्द की तो यह दो शब्दों से मिलकर बना है: “जीवन” और “अमृत”। पहले शब्द का अर्थ होता है “जीवन” और दूसरे शब्द का अर्थ होता है “औषधीय दवा”। इसका अर्थ ये हुआ कि पौधों को जीवन देने वाली औषधीय दावा जो पौधे के जड़ से लेकर तने पत्तियों तक को मजबूती प्रदान करता है।
जीवामृत के फायदे या जीवामृत के लाभ
मृदा स्वास्थ्य
मृदा के सूक्ष्मजीवों का संवर्धन: जीवामृत (Jeevamrit) मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्मजीवों की संख्या और गतिविधियों में वृद्धि करने में मदद करता है, जिससे मिट्टी स्वस्थ और पौधों के लिए उपजाऊ बनती है। एक वैज्ञानी शोध से पता चला है कि इसके इस्तेमाल करने से पौधों को बढ़ने या विकास में मदद करने वाले खास तरह के नाइट्रोजन-फिक्सिंग बैक्टीरियो की संख्या में अधिकतम 200% तक की बढ़ोतरी हो जाती है।
मृदा की उर्वरता में वृद्धि: इसके उपयोग से मृदा की उपजाऊ क्षमता में बढ़ोतरी होती है, जिससे फसलों का उत्पादन और उत्पादकता दोनों बढ़ती है। इसके उपयोग से मृदा में उपलब्ध फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा 30-40% तक बढ़ाई जा सकती है जिससे फसलों के ग्रोथ अथवा विकास में मदत मिलती है।
फसल स्वास्थ्य
पौधों की वृद्धि में सुधार: जीवामृत पौधों की जड़ों को मजबूत बनाने में मदद करता है ताकि वे मृदा से पर्याप्त मात्रा में भोजन और पानी प्राप्त कर सकें। इसका उपयोग करने वाले पौधो की जड़ों का विकास 25-30% अधिक गहराई तक हो जाती है, जिससे फसलो या पौधों को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व लेने में मदत मिलती है। इसके साथ ही इसके उपयोग से फसलो या पौधों की वृद्धि में भी प्रोत्साहन मिलता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास: जीवामृत (Jeevamrit) फसलो या पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है, जिससे की फसल या पौधे अपने आप को बीमारियों और कीटों से बचा सके। इसके उपयोग से फसलो या पौधों में रोग प्रतिरोधक एंजाइम की गतिविधि 40-50% तक बढ़ सकती है, जिससे की फसल या पौधे फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण से अपने आप को बचा सकते हैं। इससे कीटनाशकों के प्रयोग में भी कमी आती है जिससे किसान की फसल या पौधे की लागत में भी कमी आती है।
पर्यावरणीय फायदे
रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता में कमी: जीवामृत (Jeevamrit) के उपयोग से रासायनिक उर्वरक की आवश्यकता में कमी हो जाती है। इसका सीधा और अच्छा प्रभाव हमारे पर्यावरण और मिट्टी पर पड़ता है। इसके उपयोग से रासायनिक उर्वरकों की खपत में 50-60% तक कमी आ सकती है, जिससे किसानों की कृषि लागत मे भी कमी आती है। इससे किसान के मुनाफे में भी वृद्धि होती है।
जैव विविधता का संवर्धन: इसका प्रयोग जैव विविधता को भी बढ़ावा देता है, जिससे मृदा ,पौधों और साथ ही साथ मनुष्य का भी स्वास्थ्य बेहतर होता है। इसके उपयोग से मृदा में माइक्रोफ्लोरा और माइक्रोफौना की विविधता 30-40% तक बढ़ सकती है। मृदा में माइक्रोफ्लोरा और माइक्रोफौना की बढ़ोतरी से पारिस्थितिकी तंत्र में भी सुधार होता है जिसका सीधा असर मनुष्य एवं पर्यावरणीय जीवों के स्वास्थ्य और सर्वांगीण विकास पर पड़ता है।
कार्बन फुटप्रिंट में कमी
जीवामृत (Jeevamrit) पुराने पौधों (खरपतवार) और छोटे जीवों (हानिकारक कींट) को नष्ट करके मिट्टी में कार्बन फुटप्रिंट को बनाए रखने में मदद करता है। यह कार्बनिक पदार्थों के विघटन और सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों के माध्यम से मृदा में कार्बन को स्थिर करता है। इसके उपयोग से मृदा में स्थिर कार्बन की मात्रा 10-15% तक बढ़ जाती है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आती है। अगर आपको नहीं पता तो आपकी जानकारी के लिए बता दे कि ग्रीनहाउस गैस वे गैस होती है जिसकी मात्रा वायुमंडल में बढ़ने से धरती का तापमान बढ़ जाता है। अगर इसे नियंत्रण में नहीं रखा जाता है तो धरती का जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
आर्थिक लाभ
किसानों की लागत में कमी: इसके उपयोग से किसानों की उत्पादन लागत में 20-30% की कमी आ जाती है। यह सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला एक अच्छा और असरदार जैविक विकल्प है जो की रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की अपेक्षा अधिक किफायती और उपयोगी होता है। इसके साथ ही पर्यावरण को भी संतुलित करने में मदत करता है।
फसल की गुणवत्ता और बाजार मूल्य में वृद्धि: इसके उपयोग से फसल की गुणवत्ता में तो वृद्धि होती ही है, इसके साथ ही उन्हें उत्पाद का अच्छा और उच्च बाजार मूल्य भी मिलता है। आज दिन-प्रतिदिन जैविक उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है परंतु इसकी तुलना में जैविक खेती (Jaivik Kheti) से निकले उत्पाद की बढ़ोतरी धीरे हो रही है इस कारण इसका बाजार में 20 से 25% अधिक मूल्य मिल सकता है।
कुछ अन्य लाभ
- जीवामृत (Jeevamrit) पौधों को जरूरी पोषक तत्वों को उपलब्ध करने में मदत करता है।
- मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओ ओर उपयोगी कीटों की जनसंख्या को बढ़ाने में मदत करता है।
- मृदा की उर्वरा शक्ति के साथ-साथ पौधों या फसलों की उत्पादन और उत्पादकता को भी बढ़ाने में मदत करता है।
- यह पौधों की जड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है और उन्हें महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है।
- यह बीजों को जल्दी अंकुरित होने में मदद करता है और पत्तियों को हरा भी बनाता है। जीवामृत से उगाई गई सब्जियाँ, फल और अनाज का स्वाद भी बहुत अच्छा होता है।
- आप रसायनिक उर्वरक मुक्त आहार खाने को मिलता हैं जिससे आपका स्वास्थ्य अच्छा होता है।
- जीवामृत (Jeevamrit) को बनाने के लिए उपयोग होने वाली सभी सामग्री बहुत कम मूल्य की होती है और ग्रामीण क्षेत्रों एवं खेतों में आसानी से उपलब्ध हो जाती है, जिससे की किसान इसे बनाकर अधिक मुनाफा भी कमा सकते हैं।
- यह मृदा के पीएच PH मान ( पावर ऑफ हाइड्रोजन यानी हाइड्रोजन की शक्ति ) को संतुलन में बनाए रखने में मदद करता है, मृदा में वायु का संचार (aeration) में सुधार करने में मदत करता है।
जीवामृत की संरचना
जीवामृत (Jeevamrit) की संरचना के मुख्य घटक गाय का गोबर, गाय का गोमूत्र, गुड़, बेसन और मिट्टी होता है। इसके संरचना के मुख्य घटको के बारे में आगे और विस्तार से बताया गया है जिसका वर्णन निम्न है:
गाय का गोबर
गाय के गोबर में लाखों सूक्ष्मजीव होते हैं जो मिट्टी को पौधों के लिए स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं। गोबर में 0.5% नाइट्रोजन, 0.3% फॉस्फोरस और 0.4% पोटाश पाया जाता है इससे मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश जैसे आवश्यक पोषक तत्वों को प्रदान करके इसकी मात्र को बढ़ाया जाता हैं। ये फसलों की वृद्धि के लिए आवश्यक होता हैं। गोबर में कार्बनिक पदार्थों की उच्च मात्रा भी होती है जो मृदा के जैविक तत्वों को बढ़ावा देती है।
गाय का गोमूत्र
गोमूत्र मिट्टी को फसल के लिए उपजाऊ बनाता है क्योंकि इसमें एंजाइम, यूरिया, मिनरल्स और सूक्ष्मजीव होते हैं जो मृदा को उर्वर बनाने में मदद करते हैं। गोमूत्र में 0.5-1% यूरिया, 0.02-0.1% पोटाश और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व बहुतायत मात्रा में होते हैं जो पौधों की जड़ों को मजबूत बनाने में मदत करते हैं।
गुड़
गुड़ सूक्ष्मजीवों के लिए ऊर्जा स्रोत के रूप में कार्य करता है। यह सूक्ष्मजीवों की संख्या और गतिविधि को बढ़ाता है, जिससे मृदा की जैविक गतिविधि बढ़ती है। गुड़ में 70-75% शर्करा होती है, जो सूक्ष्मजीवों के लिए तत्काल ऊर्जा स्रोत प्रदान करती है। गुड़ सूक्ष्मजीवों की सँख्या के साथ ही साथ उनकी गतिविधि को भी बढ़ता है जिससे की मृदा की जैविक गुदवत्ता भी सुधरती है।
बेसन
बेसन प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का एक अच्छा स्रोत है, जो सूक्ष्मजीवों के विकास मे सहयोग करता है। बेसन में मुख्य रूप से 20-25% प्रोटीन और 50-60% कार्बोहाइड्रेट होता है।
मिट्टी
मिट्टी में पहले से मौजूद सूक्ष्मजीव जीवामृत (Jeevamrit) में वृद्धि करते हैं और इसे अधिक प्रभावी बनाते हैं। मिट्टी में अरबों सूक्ष्मजीव होते हैं जो मृदा की संरचना और उर्वरता को सुधारते हैं। मृदा में उपस्थित सूक्ष्मजीव इसके वृद्धि में सहयोग और इसे अधिक उपयोगी बनाते है।
पानी
पानी मिश्रण को सक्षम बनाता है और किण्वन प्रक्रिया को सहायता करता है। जीवामृत में 50-60% पानी का उपयोग किया जाता है ताकि सभी घटक अच्छी तरह से घुलकर किण्वित हो सकें।
जीवामृत बनाने की विधि में उपयोग होने वाली सामग्री की मात्रा (Jivamrit Banane Ki Vidhi)
जीवामृत बनाने की विधि में उपयोग होने वाली सामग्री निम्नलिखित है:
गाय का गोबर | 10 किलोग्राम |
गौ मूत्र | 5-10 लीटर |
बरगद या पीपल के नीचे की मिट्टी | 1 से 5 मुट्ठी या 1 किलोग्राम |
गन्ने का गुड़ | 2 किलो (500 ग्राम या 4 लीटर गन्ने का रस ) |
पीसी हुई दाल (कोई भी) | 1-2 किलोग्राम |
पानी | 180 लीटर |
पात्र | प्लास्टिक ड्रम |
जीवामृत बनाने की विधि (Jeevamrit Preparation)
जीवमृत बनाने की विधि (Jivamrit Banane Ki Vidhi) की बात करे तो यह 5 चरणों की क्रमवद्ध विधि है जिसके बारे में विस्तृत व्याख्या नमनलिखित है:
पहले चरण: जीवामृत बनाने के प्रथम चरण में एक प्लास्टिक का ड्रम या मिट्टी या सीमेंट की हौदी में 50 से 60 लीटर पानी डाला जाता है इसके बाद इसमें 10 किलो गोबर मिलकर किसी लकड़ी के डंडे से अच्छी तरह से मिलाया जाता है जिससे गोबर पानी में अच्छी तरह घुल जाए। ध्यान रहे मिश्रण में गोबर का थक्का न रहे।
दूसरे चरण: दूसरे चरण में ऊपर दिए हुए गोबर और पानी के मिश्रण में 5 से 10 लीटर गौ मूत्र को अच्छी तरह से मिला ले। DH
तीसरे चरण: तीसरे चरण की प्रक्रिया में 1 किलोग्राम उपजाऊ मिट्टी ( बरगद या पीपल के नीचे से ली गई मिट्टी ) को मिश्रण में डालकर अच्छी तरह डंडे से हिलाकर घोल ले। ध्यान रहे मिट्टी में किसी भी प्रकार का रासायनिक खादों का प्रयोग न किया गया हो।
चौथे चरण: चौथे चरण की प्रक्रिया के लिए मिश्रण में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओ के भोजन के लिए 1 किलोग्राम पीसी हुए दाल या बेसन तथा 1 किलोग्राम गुड़ या गुड़ न होने पर 4 लीटर गन्ने के रस को और बचे हुए पानी को सब को एक साथ मिलाकर मिश्रण को 200 लीटर तक तैयार कर ले।
पाँचवे चरण: पाँचवे या अंतिम चरण में सभी मिश्रण को अच्छे से मिलकर प्लास्टिक की टंकी में डालकर जाली या सूती कपड़े से ढक दे। इस मिश्रण को 3 दिन तक किण्वन क्रिया के लिए किसी छाए वाली जगह पर रख कर दे और दिन भर में 3-3 बार लकड़ी की सहायता से मिलाते रहे। 3 दिन बाद जीवामृत (Jeevamrit) बनकर तैयार हो जाएगा।3 दिन के बाद आप इसका उपयोग पौधों या फसल के लिए कर सकते है। इसकी 200 लीटर की मात्रा एक एकड़ खेत के लिए पर्याप्त होती है और अगर आपको एक एकड़ से ज्यादे या कम खेत के लिए इस्तेमाल करना है तो आप इसी अनुपात में अपने पूरे खेत के लिए बना सकते है।
जीवामृत का उपयोग कैसे करें?
खेत की तैयारी के समय
बुवाई से पहले खेत में छिड़काव: जीवामृत (Jeevamrit) को बुवाई से पहले खेत में छिड़कने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार के साथ ही साथ बीजों की अंकुरण दर में भी बढ़ोतरी होती है। बुवाई से पहले खेत में इसका छिड़काव करने से बीजों की अंकुरण दर 20-25% तक बढ़ सकती है। बीजों के अंकुरण दर के बढ़ने से किसान के बीज में लगने वाले लागत मूल्य में भी कमी आती है।
फसल की वृद्धि के दौरान
नियमित अंतराल पर छिड़काव: फसलों की वृद्धि के समय जीवामृत (Jeevamrit) का नियमित अंतराल पर छिड़काव करने से पौधों या फसलों को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहते हैं और उनकी वृद्धि भी अच्छी होती है। एक अध्ययन में पाया गया कि फसलों की वृद्धि के दौरान अगर हर 15-20 दिन पर इसका छिड़काव करते है तो फसल की पैदावार में 15-20% तक वृद्धि हो सकती है।
पौधों की विशेष देखभाल
रोग और कीट नियंत्रण में उपयोग: जीवामृत (Jeevamrit) का उपयोग पौधों के रोग और कीट नियंत्रण में भी किया जा सकता है। इसे पौधों की पत्तियों पर छिड़कने से बीमारियों और कीटों से बचाव होता है। इसका उपयोग पौधों की पत्तियों पर छिड़कने से कीटों की संख्या 30-35% तक कम हो सकती है और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सकती है।
जीवामृत के प्रभावी उपयोग के सुझाव
समय और मात्रा
- छिड़काव का सही समय: जीवामृत का छिड़काव सही समय पर करने से फसल को अत्यधिक लाभ मिलता है। खेत की तैयारी के समय तथा पौधों की वृद्धि के समय पर इसका छिड़काव करना उपयुक्त माना जाता है जिससे पौधों के बीज बुआई से लेकर उपज तक इसका सम्पूर्ण लाभ मिल सके।
- आवश्यक मात्रा का निर्धारण: इसके छिड़काव कीआवश्यक मात्रा का निर्धारण फसलों की अपनी जरूरतों और भूमि की वर्तमान स्थिति के अनुसार पर किया जाना चाहिए। आम तौर पर इसकी 200 लीटर की मात्रा एक एकड़ खेत के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
अन्य जैविक तरीकों के साथ संयोजन
वर्मीकम्पोस्ट और हरी खाद के साथ उपयोग: जीवामृत (Jeevamrit) के गुणवत्ता को दुगुना करने के लिए हम इसे वर्मीकम्पोस्ट और हरी खाद के साथ में भी मिलकर उपयोग कर सकते है। इसके इस तरीके से उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरता शक्ति और पौधों या फसलों की वृद्धि में और अधिक सुधार हो सकता है।
स्थानीय अनुभव और अनुसंधान
किसानों के अनुभव से सीखना: आपके के आस-पास के स्थानीय किसानों के अनुभव और उनके ज्ञान से सीखकर जीवामृत का प्रभावी उपयोग किया जा सकता है। जैसे वे आपके क्षेत्र में पायी जाने मिट्टी अथवा फसल के हिसाब से इसका उपयोग किन-किन उर्वरकों के साथ तथा किस- किस प्रकार से कर रहे है। इससे आपको भी अपने खेत तथा फसल में इससे सर्वाधिक लाभ लेने में मदत मिलेगी।
अनुसंधान के परिणामों का पालन: आप वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी अपने क्षेत्र विशेष तथा फसल को ध्यान में रखकर सलाह ले सकते है और साथ ही उनके पूर्व में सोध किये हुए परिणामों को आधार मानकर इसका उचित ढंग से उपयोग करने से आपके खेत, फसल अथवा पौधे को मिलने वाले लाभ वृद्धि हो सकती है।
जीवामृत का भविष्य
भारतीय कृषि में वृद्धि की संभावनाएँ
जीवामृत (Jeevamrit) का उपयोग भारतीय कृषि में व्यापक रूप से किया जा सकता है, जिससे मृदा की उर्वरता, फसल अथवा पौधों की वृद्धि के साथ-साथ किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है। इसका उपयोग पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षा को बढ़ा सकती है जिससे सम्पूर्ण मानव जाती का जीवन सकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकती है।
स्थायी खेती के लिए योगदान
स्थायी खेती में इसका प्रयोग एक महत्वपूर्ण उर्वरक के रूप में किया जा सकता है। स्थायी खेती में इसके प्रयोग से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हो सकती है और साथ ही फसलों की पैदावार में भी वृद्धि हो सकती है।
किसानों के लिए सिफारिशें
जैविक खेती (Jaivik Kheti) भारत में वर्तमान में होने वाली खेती का भविष्य है इसके अंतर्गत किसानो के लिए निम्नलिखित सिफारिशे है:
नियमित उपयोग के फायदे
किसानों द्वारा जीवामृत के नियमित उपयोग से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है तथा किसान धीरे-धीरे जैविक खेती (Jaivik Kheti) की ओर अग्रसर होता है। इसके उपयोग से इसके सभी प्रकार के लाभों का फायदा उठा सकते है, इससे आपके कृषि लागत में कमी आएगी तथा फसल उत्पाद एवं उत्पादकता में भी वृद्धि होगी।
सामुदायिक स्तर पर जागरूकता फैलाना
किसानों को जैविक खेती के लिए सामुदायिक स्तर पर जागरूकता फैलानी चाहिए जिससे अधिक से अधिक लोग जीवामृत (Jeevamrit) एवं अन्य जैविक पदार्थों का उपयोग कर सकें और जैविक खेती को बढ़ावा मिल सके।
निष्कर्ष
जैसा की हम अपने इस लेख में आपको पहले भी बता चुके है कि जैविक खेती में जीवामृत (Jeevamrit) का भारतीय कृषि में महत्व अनेक दृष्टियों से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह न केवल मृदा और फसल स्वास्थ्य में सुधार करता है बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और किसानों की आर्थिक स्थिति को भी सुधारता है। इसका उपयोग कृषि को स्थायी और समृद्ध बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जीवमृत से संबंधित कोई भी जानकारी और सुझाव के लिए आप हमे कमेन्ट कर के पूछ सकते है।
आशा है आपको ये जानकारी अच्छी लागि होगी ऐसे ही कृषि के और जानकारी के लिए आप उन्नत खेती बड़ी (Unnat Kheti Badi) के व्हाट्सएप अथवा टेलीग्राम ग्रुप से जुड़ सकते है और कृषि से संबंधित नई-नई और उपयोगी लेख पढ़ सकते है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
जीवामृत में कौन कौन से पोषक तत्व पाए जाते हैं?
जीवामृत (Jeevamrit) में मुख्यरूप से उपलब्ध, नाइट्रोजन, प्राकृतिक कार्बन, फास्फोरस , पोटेशियम और सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे आवश्यक पोषक तत्वों पाए जाते है। जिनकी मात्रा
जीवामृत का अर्थ क्या है?
यह दो शब्दों से मिलकर बना है: “जीवन” और “अमृत”। पहले शब्द का अर्थ है “जीवन” और दूसरे शब्द का अर्थ है “औषधीय दवा”।
जीवामृत कितने दिन में बनकर तैयार होता है?
जीवामृत (Jeevamrit) 3 से 4 दिन के अन्दर बन कर तैयार हो जाता है और इसकी 200 लीटर की मात्रा एक एकड़ खेत किये पर्याप्त होती है।
जीवामृत के फायदे बताए ?
जीवामृत के फायदे:
1. जीवामृत (Jeevamrit) पौधों को जरूरी पोषक तत्वों जैसे को उपलब्ध करता है।
2. मृदा मे उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओ और उपयोगी कीटों की जनसंख्या को बढ़ता है।
3. मृदा की उर्वरा शक्ति के साथ-साथ पौधों की उत्पादन को बढ़ाता है।
4. यह पौधों की जड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है और उन्हें महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है।